जिला अस्पताल गायनी रोग विभाग के रिकार्ड की मानें तो रोजाना औसतन 8 से 10 सर्जरी होती थी, लेकिन चिकित्सकों के अवकाश में जाने के बाद मुश्किल से तीन सर्जरी हो पा रही हैं। वार्ड में अधिकतम तीन से पांच प्रसूताएं ही दाखिल रहती हैं।
चिकित्सकों के अवकाश से सबसे ज्यादा परेशानी गरीब तबके के पीडि़तों को हो रही है। जो कि निजी नर्सिग होम में चालीस से पचास हजार रुपए की शुल्क देने में सक्षम नहीं है। जब उन्हें जिला अस्पताल में चिकित्सकों के मौजूद नहीं होने की जानकारी लगती है तो पैरों तले जमीन खिसक जाती है।
प्रबंधन द्वारा गायनी विभाग के पांच चिकित्सकों के अवकाश निरस्त कर दिए गए हैं। प्रबंधन द्वारा चिकित्सकों के घर भी अवकाश निरस्त की सूचना भेजी गई है। लेकिन कोई भी चिकित्सक ड्यूटी पर नहीं लौटा है। प्रबंधन की सख्ती भी चिकित्सकों पर बेअसर साबित हो रही है।
जिला अस्पताल के जिस वार्ड में एक माह पहले तक अंदर दाखिल होना मुश्किल होता था। पीडि़तों को पलंग तो दूर जमीन के लिए मारामारी करनी पड़ती थी। स्ट्रेचर में पीडि़त वेटिंग में रहते थे। तब घंटों मशक्कत और जुगाड़ के बाद पलंग मिल पाता था। वह गायनी वार्ड वीरान हो गया है। वार्ड के 38 में से 33 पलंग खाली पड़े हुए हैं।