विपरीत परिस्थतियों में रह रहे इन जवानों को न सिर्फ परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि हादसे का भी डर बना रहता है। भवन की खस्ता हालत को लेकर आला अधिकारियों को कई बार अवगत कराया गया, लेकिन ठोस निर्णय नहीं लिए गए, जिससे उनकी परेशानी हल होती नहीं दिख रही।
1975 में थाने की शुरुआत बताया गया कि 1975 में थाने की शुरुआत हुई थी। तभी स्टाफ क्वार्टर भी बनाए गए थे। करीब 43 वर्ष पूर्व बने ये भवन पूरी तरह से जर्जर हो गए हैं। कभी कोई अनहोनी हो सकती है। यहां दो दर्जन पुलिसकर्मी पदस्थ हैं। लेकिन विभाग के पास उतनी मात्रा में भवन नहीं हैं। शुरुआती दौर में जो बैरक बनाए गए थे। वे भी खंडहर में तब्दील हो गईं।
एक बैरक में 4 से 6 जवान एक बैरक में 4 से 6 जवान रहते हैं, लेकिन बारिश सीजन में बहुत परेशानी होती हैं। भोजन बनाने तक की जगह नहीं बचती। पत्रिका टीम से चर्चा करते हुए कुछ जवानों ने बताया कि यहां आराम करना मुश्किल है। बल्ली के सहारे छत अटकी हुई है। दीवारों में दरार पड़ गई। कब धराशायी हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। इतना वेतन भी नहीं मिलता कि भवन बना सकें। परिवार चल जाए वही बहुत है।
शौचालय तक नहीं
स्वच्छता को लेकर शासन स्तर से कई योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन थाना परिसर में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है। महिला पुलिसकर्मियों को मुश्किल होती है। बचने का उपाय नहीं
जर्जर आवास की छत को बचाने के लिए पुलिसकर्मियों ने बांस-बल्ली तो लगा लिए, लेकिन छप्पर से घुसकर बारिश का पानी कमरों में टपकने लगता है। जिससे बचने के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं है।
स्वच्छता को लेकर शासन स्तर से कई योजनाएं शुरू की गई हैं, लेकिन थाना परिसर में शौचालय तक की व्यवस्था नहीं है। महिला पुलिसकर्मियों को मुश्किल होती है। बचने का उपाय नहीं
जर्जर आवास की छत को बचाने के लिए पुलिसकर्मियों ने बांस-बल्ली तो लगा लिए, लेकिन छप्पर से घुसकर बारिश का पानी कमरों में टपकने लगता है। जिससे बचने के लिए उनके पास कोई उपाय नहीं है।