टेरर फंडिंग के मामले में जम्मू कश्मीर में सेना की खुफिया जानकारी पाकिस्तान भेजने वाले वन विभाग के कर्मचारी को धन मुहैया कराने वाला बलराम 2017 में गिरफ्तारी के बाद जब जमानत पर छूटा तो पाकिस्तानी हैण्डलरों ने फिर से उससे संपर्क किया। टेरर फंडिंग के नेटवर्क में बलराम बड़ा नाम है और उस नेटवर्क में इसकी पहचान छोटू भैया के नाम से है। खुफिया एजेंसियों की पड़ताल में यह जानकारी सामने आई कि एटीएम फ्रॉड के जरिए टेरर फंडिंग करने वाले देश के बड़े नेटवर्क में बलराम शामिल है। स्थानीय स्तर पर छोड़ दिया जाए तो टेरर फंडिंग के नेटवर्क में बलराम काफी जाना पहचाना नाम है और उसे यहां छोटू भैया के नाम से पहचाना जाता है। चंद घंटों में बैंक जाने और राशि को इधर से उधर करने के प्रतिदिन की 15 हजार तक की आय बलराम को आसान लगी और वह फिर से जुड़ गया।
सतना पुलिस ने बलराम की साइबर निगरानी की तो पाया कि पाकिस्तान के 17 नंबरों से बलराम की बात हो रही थी। पाकिस्तान के ये नंबर आतंकी समूहों से जुड़े हो सकते हैं। इस बार टेरर फंडिंग के लिए इस गैंग ने वाट्स अप से फाइल ट्रांसफर का तरीका निकाला था।
बलराम से जुड़े सीधी निवासी सौरभ शुक्ला की जब गिरफ्तारी हुई थी तो उसके नेटवर्क में तलाश की गई थी तो पाया गया कि ये लोग वीओआईपी सिस्टम का इस्तेमाल करते थे। वीओआईपी का डुप्लीकेट नेटवर्क सिस्टम बनाना सरल नहीं इस कारण इसकी टैपिंग का खतरा कम होता है और उसे क्रेक भी आसानी से नहीं किया जा सकता है। इसलिए यूपी टेरर फंडिंग नेटवर्क वीओआईपी पर काम करता था। इन्ही की सलाह पर बलराम गैंग ने आईएमओ पर बात करना शुरू कर दिया, क्योंकि इसमें डाटा सेव होने का खतरा नहीं रहता था। या फिर वाट्सऐप पर वाइस फाइल भेज कर संदेश देते थे। यूपी गैंग को राजस्थान से तकनीकि सहायता मिलती थी। एटीएस सूत्रों का कहना है कि पहली बार जब बलराम पकड़ा गया था तो उस वक्त यह माना गया कि लाभ की लालच में उसने यह काम शुरू कर दिया। अब दोबारा जब उसी मामले में पकड़ा गया है तो यह सामान्य बात नहीं है।
तीनों आरोपियों ने मप्र सहित बिहार, प. बंगाल के लोगों के खातों में पैसे जमा करवाए। ये राशि आतंकियों तक पहुंचने की आशंका है। पैसों के एवज में सामरिक महत्व की जानकारियां पाकिस्तान भेजी जा रही थीं। तीनों ने पाकिस्तान के एजेंटों से छतरपुर, सतना-सीधी के 100 से अधिक लोगों के खातों में पैसे जमा करवाए। इन्हें 8% कमीशन मिला। मप्र के 70 खातों में 50 हजार तक का लेन-देन हुआ। अन्य प्रदेशों के बैंक खातों में एक से दो लाख रुपए जमा किए गए।
बलराम ने पाकिस्तान के उन्हीं एजेंटों से संपर्क कर बात की, जिनके साथ वह वर्ष 2017 में काम करता था। इस बार बलराम ने शुभम मिश्रा व सुनील सिंह को आगे कर परदे के पीछे से काम करना शुरू किया। इस बार इंटरनेट कॉलिंग से संपर्क किया गया। बलराम पूर्व में टेलीफोन एक्सचेंज बनाकर काम करता था। संदेह है कि पकड़े गए युवकों के तार मध्य प्रदेश सहित उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से भी जुड़े हो सकते हैं।
सूत्रों के मुताबिक बलराम सिंह, सुनील सिंह व शुभम मिश्रा को बैंक खातों में रकम ट्रांसफर करने के मामले में पकड़ा गया है। आशंका है कि यह पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर रकम को इधर से उधर करने का काम कर रहे थे। इस काम के लिए इन्हें 8 फीसदी कमीशन मिलता था। कमीशन में प्रतिदिन यह 10 से 15000 रुपए की कमाई करते थे। जांच एजेंसी इन सारी बातों की पुष्टि करने के लिए साक्ष्य जुटाने में लगी हुई है। बलराम ग्रुप एक बार में एक खाते में 50 हजार से कम की रकम का लेन-देन करता था। जाहिर बात है कि छोटी रकम का लेन-देन इसलिए हो रहा था ताकि आईटी की नजर में इनके ट्रांजेक्शन जल्दी न आएं। 50 हजार रुपए से ऊपर के लेनदेन में बैंकों को पैन नंबर की जानकारी देना जरूरी है।
बलराम नेटवर्क का कनेक्शन प्रयागराज में पकड़े गए सौरभ शुक्ला से भी सामने आया है। एटीएस यूपी ने सौरभ शुक्ला की सीडीआर जांच में यह पाया था कि इसमें इनकमिंग नंबर से हजार गुना तक आउट गोइंग नंबर थे। इन नंबरों में बलराम के नंबरों पर कालिंग भी नियमित तौर पर पाई गई थी। प्रयागराज मामले में पैरलल एक्सचेंज का इस्तेमाल होना पाया गया था। इसमें सिम बाक्स के सहारे पाकिस्तानी नंबरों को भारत के नंबरों में बदला जाता था।
सूत्रों का कहना है कि बलराम ने कुछ समय पहले अपने पड़ोसी से झगड़ा किया था। पड़ोसी ने मारपीट की रिपोर्ट लेकर थाने के चक्कर काटे पर कार्रवाई नहीं हुई। तब उसने एसपी को आवेदन देकर उनके सामने बलराम का पुराना चिट्ठाा भी खोल दिया।
बलराम को टेरर फंडिंग के मामले में 2017 में पकड़ा गया था, लगभग 9 महीने में उसकी जमानत हो गई। इसी तरह संदेही भागेंद्र सिंह को इंदौर में पकड़ा गया था। वह भी जमानत पर रिहा हो गया। इस बार इनकी रिहाई आसान नहीं होगी। जानकार कहते हैं कि टेरर फंडिंग के मामले में आईपीसी में देशद्रोह की धारा है। मामला पैसों के अनैतिक लेनदेन, विदेशी ट्रांजेक्शन सहित आईटी एक्ट की धाराओं से जुड़ा मिला तो बाहर आना आसान नहीं।
सूत्रों की मानें तो पकड़े गए ग्रुप का एक बेहद अनोखा तरीका है। यह पहले किसी शख्स से मोटी रकम उधार में लेता है फिर वह रकम लौटाते नहीं हैं। देनदार जब बार-बार रकम वापसी के लिए दबाव बनाता है तब ये ली गई रकम दोगुनी कर लौटाने का लालच देकर अपने साथ काम में जोड़ लेते हैं। इनका काम यह है कि जिसे अपने साथ जोड़ते हैं उसके बैंक खाते में पैसों का लेनदेन करते हैं। जिसके खाते का इस्तेमाल किया जाता है उसे कुछ रकम दी जाती है। यह लोग ऐसे लोगों को भी चिह्नित करते हैं जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर होते हैं।
बीते कुछ समय पहले जिले के नागौद थाना अंतर्गत सितपुरा के एक ढाबा में गोलीकांड हुआ था। इसमें दो महिलाओं की हत्या कर दी गई थी। इसका मुख्य आरोपी उज्ज्वल गुप्ता फरार हो गया था, जो बाद में राजस्थान से पकड़ा गया था। सूत्रों की मानें तो इसे शुभम मिश्रा ने पनाह दे रखी थी। शुभम मिश्रा को एटीएस ने बलराम और सुनील के साथ गिरफ्तार किया है।
जांच में एक बड़ा सवाल यह है कि इस सब का मास्टरमाइंड कौन है? दरअसल पहली बार जब आतंक निरोधी दस्ते ने सतना जिले में कार्रवाई की थी तब टेरर फंडिंग के कथित नेटवर्क को लेकर बलराम सिंह का चेहरा मास्टरमाइंड के रूप में सामने आया था। अब ऐसी चर्चा है कि बलराम के साथ 2014 में जुड़े सुनील सिंह ने बलराम को बाइपास करते हुए बिहार में अपना संपर्क स्थापित किया और खुद पूरे नेटवर्क का बॉस बन गया है। सूत्र बताते हैं कि सुनील मुंबई के एक होटल में काम किया करता था, तब बलराम ने इससे 60 हजार रुपए कर्ज लिए और लौटाने में आनाकानी शुरू कर दी। बाद में सुनील को अपने धंधे में जोड़ा। इससे सुनील को बहुत मोटा मुनाफा हुआ, तब से सुनील भी बलराम के लिए काम करने लगा। जब उसे काम समझ आ गया तो उसने अपना रास्ता अलग बना लिया, क्योंकि बलराम आकाओं से मिलने वाले कमीशन का छोटा सा हिस्सा नाममात्र के लिए देता था और पूरी रकम खुद रखता था। आरोप है कि अब यही काम सुनील ने खुद शुरू कर दिया है। उसे एक ट्रांजेक्शन में पूरी रकम का 8 फीसदी कमीशन मिलता है। इसमें से वह लगभग 6 फीसदी खुद रखता है और बाकी रकम खाताधारक को देता है।
एपी सिंह, एआईजी पीएचक्यू