scriptमां के अकेलेपन की व्यथा को रखा सामने | The sadness of the mother's loneliness was kept in front | Patrika News

मां के अकेलेपन की व्यथा को रखा सामने

locationसतनाPublished: Jan 23, 2019 09:33:18 pm

Submitted by:

Jyoti Gupta

सपनों की आशा नाटक का मंचन

The sadness of the mother's loneliness was kept in front

The sadness of the mother’s loneliness was kept in front

सतना. लोक रंग समिति द्वारा आयोजित रंग रिवॉल्यूशन के अंतर्गत बुधवार को दो नाटकों का मंचन किया गया। दोनों का शुभारंभ मुख्य अतिथि सुभाष सिंह, साहित्यकार प्रहलाद अग्रवाल, नाटककार हरीश धवन ने किया। स्पेक्ट्रम इंदौर ने मानव कौल पर आधारित नाटक मां का मंचन सुरभि के निर्देशन में किया। इसमें कलाकार जय पंजवानी ने मंच पर एक मां के अकेलेपन की व्यथा को प्रदर्शित किया। नाटक में मां के पति को बेहद कठोर प्रवृत्ति का दिखाया गया। वह अपनी पत्नि को किसी से मिलने नहीं देता था। पति की मौत के बाद मां बेटे-गांव में रहते हैं। बेटा जब बड़ा होता है तो वह भी काम के सिलसिले में बाहर जाकर व्यस्त हो जाता है। मां अकेली रह जाती है। एक दिन मां बेटे से पूछती है कि क्या वह दूसरा विवाह कर सकती है? तो बेटा नाराज हो जाता है। बाद में पता चलता है कि मां गांव के किसी वकील के साथ रहने लगी है, तो बेटा सारे संबंध तोड़कर चला जाता है। साल भर बाद मां मर जाती है। तब बेटे को मां के अकेलेपन का अहसास होता है।
दो कहानियों को जोड़ती सपनों की आशा

मां नाटक के बाद लेखक विजयदान देथा की कहानी पर आधारति नाटक सपनों की आशा का मंचन हुआ। इसका निर्देशन मेघना पंचाल द्वारा किया गया। नाटक दो कहानियों सपना और आशा अमरधन पर आधारित रहा। करीब आधे घंटे के इस नाटक में सपना की कहानी ऐसे गरीब शख्स के इर्द-गिर्द घूमती है जो राजकुमारी से विवाह करने का सपना देखने के साथ उसे पूरा करने की कोशिश भी करता है। सपना साकार होने के बाद उसे लगता है कि वह फिर से तंग हाल और बंजारों जैसी जिंदगी जीने को अभिशप्त होगा। इसी संशय के साथ नाटक खत्म हो जाता है।
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