सतना

बुद्ध पूर्णिमा की रात सतना में कुछ यूं दिखा साल का आखिरी ‘सुपरमून”

धरती के सबसे नजदीक आए चंदा मामा,जनता के लिए शुभ,नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव होगा कम

सतनाMay 08, 2020 / 12:28 am

Sukhendra Mishra

सुपर मून नहीं देख पाया अलवर, इसलिए फुल मून देखिए। सुपरमून के अगले दिन भी चांद व धरती की दूरी कम रही। अलवर में पूर्णिमा के दिन चांद पूरा नजर आया। जब चंद्रमा धरती के सबसे करीब होता है तो उसे सुपरमून कहते हैं। फोटो अंशुम आहूजा

सतना. बुद्ध पूर्णिमा की रात साल का आखिरी सुपरमून दिखा तो शहर का नजरा बदला-बदला नजर आया। बच्चों के चहेते चंदा मामा धरती के सबसे नजदीक आए तो शहर सुनहरी रोशनी से जगमगा उठा। अन्य दिनों के मुकाबले गुरुवार की शाम चद्रमा का आकार अड़ा और रोशनी तीस फीसदी अधिक रही। कोरोना वायरस व लाकडाउन से परेशान जनता के लिए यह सुपरमून शुभ फल देने वाला माना जा रहा है। ज्योतिषाचार्य पं. सुरसरी तिवारी का कहना है कि सुपरमून की रोशनी से धरती पर फैली नकारात्मक ऊर्जा खत्म होगी और लोगों के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा। इससे खस्ताहाल अर्थव्यवस्था पटरी पर लोटेगी और लोगों को कोरोना वायरस के कुप्रभाव से कुछ राहत मिलेगी।
क्या है सुपरमून
जब चंद्रमा अपनी कक्षा मे चक्कर काटते हुए पृथ्वी के सबसे करीब आ जाता है तो इसे सुपरमून कहा जाता है। चंद्रमा के धरती के करीब आने पर इसका आकार और प्रकाश आम दिनों के मुकाबले तीस फीसदी तक बढ़ जाता है। सुपरमून के समय चांद और पृथ्वी के बीच की दूरी 3,61,184 किमी होती है जबकी आम दिनों में चद्रमा की औसत दूरी 3,84,400 किलो मीटर होती है। साल के इस आखिरी सुपर मून का नाम वैज्ञानिकों ने फ्लावर मून रखा था। इससे पहले बीते माह 7 अप्रैल को दिखाई देने वाले सुपरमून का नाम पिंक मून रखा गया था।
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