बिना प्रतिकर का भुगतान किये प्रशासन की मिलीभगत से किसानों की हजारों एकड़ जमीन बंधक
दो विधायकों के सवालों से हुआ खुलासा, चल रही जांच में हुआ खुलासा, खनिज कारोबारी जिले में करते रहे हैं बड़ा खेल
अधिकारी भी हतप्रभ

सतना। जिले में किसानों के साथ खनिज कारोबारियों ने सुनियोजित तरीके से किसानों की जमीन को बंधक बनाने का बड़ा खेल किया है। प्रशासनिक अधिकारियों की मदद से इन्होंने किसानों की हजारों एकड़ जमीन को बिना प्रतिकर का भुगतान किये बंधक बना लिया है। नतीजा यह है कि किसान अपनी ही जमीन पर किसी प्रकार का लोन नहीं ले पा रहा है और न ही अपनी जमीन का विक्रय कर पा रहा है। एक तरीके से अपने ही खेतों का वह मालिक नहीं रह गया है। यह स्थितियां जिले के चार तहसीलों में सबसे ज्यादा हुई है। यह खुलासा तब हुआ जब दो विधायकों के सवाल तलाशने का काम राजस्व अधिकारियों ने किया। वे भी बिना चौंके नहीं रह गये कि तत्कालीन अधिकारियों ने किस तरह से खनिज कारोबारियों के आगे घुटने टेकते हुए किसानों को बरबादी की राह पर खड़ा कर दिया।
2012 से 2014 के बीच हुआ षड़यंत्र
जिले के दो विधायको किसानों की जमीनों पर बिना प्रतिकर दिये लीज की प्रविष्टि से जुड़ा सवाल किया है। जिसके जवाब तैयार करने के दौरान राजस्व अधिकारियों ने इसकी पड़ताल शुरू की तो पाया कि रैगांव, चित्रकूट, सतना और रामपुर बाघेलान विधानसभा क्षेत्र में इस तरह का सबसे ज्यादा खेल किया गया है। तत्कालीन राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से 2012 से 2014 के बीच इस तरह के षड़यंत्र सबसे ज्यादा किये गए। नतीजा यह रहा कि सैकड़ों किसानों की हजारो एकड़ जमीन पर बिना प्रतिकर का भुगतान किये ही उनका मालिकाना हक बेमानी हो गया और उनके खसरे में लीज की प्रविष्टि कर दी गई। जिसका नतीजा है कि उन्हें अगर अपने खेतों में फसल के बीज खाद के लिए लोन लेना है या अन्य कामों के लिए भी ऋण लेना है तो बैंक उन्हें ऋण नहीं दे रहे हैं। किसान अपनी जरूरत के लिए अपने खेत तक नहीं बेच पा रहा है।
यह कहते हैं खनिज नियम
खनिज नियम किसी लीज धारक को इतनी ही राहत देते हैं कि वह किसी भी सरकारी या निजी जमीन पर सर्वे के आधार पर बिना भू-स्वामी की सहमति के लीज ले सकते हैं। लेकिन इसके बाद लीज धारक को भूमि स्वामी के पास जाना होगा जिस पर म.प्र. भू राजस्व संहिता लागू होती है।
यह कहती है एमपीएलआरसी
लीज की जमीनों को लेकर भू-राजस्व संहिता की धारा 247 (4)(5) लागू होती है। जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि अगर निजी जमीन है तो वहां कुछ भी करने से पहले भू-स्वामी से सहमति लेना पड़ेगा। अगर वह सहमत नहीं होता है तो एसडीएम भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013 के तहत प्रतिकर का निर्धारण करेगा। इसके भुगतान के बाद ही भू-प्रवेश के राइट्स मिलेंगे। साथ ही यह भी कहा गया है कि अगर प्रतिकर का भुगतान नहीं होता है तो लीज एरिया में लीज धारक को इंट्री नहीं मिलेगी। यही बात खनिज नियम 1960 के 22-3(एच) में कही गई है। साथ ही भू-अर्जन नियम यह भी कहते हैं कि माइनिंग, बिल्डिंग, मॉल आदि के लिए जमीन बलपूर्वक नहीं ली जा सकती है।
खनिज विभाग को बनाया ढाल
राजस्व अधिकारियों ने इस दौरान किसानों के खसरे के कालम नंबर 12 में लीज की इंट्री करने के लिए खनिज विभाग को ढाल बनाया। इन्होंने खनिज विभाग से अभिमत मांगा और मिलीभगत की चासनी में लिपटे अभिमत के बाद किसानों के खेतों के खसरे के कालम नंबर 12 में लीजधारकों की इंट्री कर दी गई वह भी बिना प्रतिकर के भुगतान किए। एक तरह से किसानों की जमीन पर बंधक भार बना दिया गया।
90 फीसदी भुगतान तभी प्रतिकर निर्धारण
हालांकि पहले भी इस तरह की शिकायतें पीड़ित किसान करते रहे हैं लेकिन लीजधारको ने यह कह दिया कि प्रशासन ने प्रतिकर का निर्धारण नहीं किया। जिसे प्रशासन ने सहज भाव से स्वीकार कर लिया। जबकि हकीकत यह है कि संभावित राशि का 90 फीसदी जमा जब तक नहीं हो जाती तब तक प्रतिकर का निर्धारण नहीं हो सकता। लेकिन खनिज कारोबारियों, राजस्व अधिकारियों और मैदानी अमले की मिलीभगत से किसानों को उनकी अपनी ही जमीन पर दर दर ठोकर के लिए मोहताज कर दिया गया।
' वैधानिक प्रावधानों का अध्ययन किया जा रहा है। विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी। '
- अजय कटेसरिया, कलेक्टर
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