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अपराध रोकना है तो बच्चों से करनी होगी बात

locationसतनाPublished: May 17, 2019 11:49:37 pm

Submitted by:

Dhirendra Gupta

लैंगिक अपराधों से बालकों के संरक्षण अधिनियम पर हुई कार्यशाला, प्रधान मजिस्ट्रेट, बाल संरक्षण अधिकारी ने किया जागरूक

To stop the crime, children have to do it

To stop the crime, children have to do it

सतना. लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम 2012 (पॉक्सो एक्ट 2012) के प्रति जागरूकता लाने के मकसद से शुक्रवार को एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिला संयुक्त कलेक्ट्रेट के सभाकक्ष में हुई इस कार्यशाला में जिला एवं बाल संरक्षण अधिकारी सौरभ सिंह ने पॉक्सो एक्ट के प्रावधानों पर प्रकाश डाला। उन्होंने पॉक्सो एक्ट के विभिन्न प्रावधानों पर विस्तार से बताया।
इसके साथ ही किशोर न्यायालय बोर्ड सतना की प्रधान मजिस्ट्रेट मोनिका शुक्ला ने बच्चों के लैंगिक शोषण से बचाव के लिए बच्चों से बेहतर संवाद स्थापित करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चों के साथ होने वाले अपराध को रोकना है तो सभी को बच्चों से बात करना होगी। बच्चों को जागरूक करना होता ताकि बच्चे अपने साथ होने वाले व्यवहार के बारे में अभिभावकों को ठीक से बता सकें। जिला लोक अभियोजन अधिकारी रामपाल सिंह ने पॉक्सो एक्ट की महत्वपूर्ण बातों को स्पष्ट किया। कार्यशाला के अंतिम सत्र में सभी के सुझाव एवं प्रश्न आमंत्रित किए गए। जिनका विषेषज्ञों ने समाधान भी किया। अंत में सहायक संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग श्याम किशोर द्विवेदी ने आभार प्रदर्शन किया।
कोमल से लाएंगे जागरूकता

पॉक्सो एक्ट के बारे में सहजता से समझाने के लिए एक कार्टून फिल्म कोमल दिखाई गई। इसी फिल्म को जिले के सभी स्कूलों में दिखाते हुए जागरूकता लाने की योजना बनाई गई है। इसके साथ ही स्कूलों में शिकायत पेटी रखने की योजना भी है। ताकि स्कूल आते जाते और स्कूल परिसर में बच्चों के साथ होने वाले अपराधों की जानकारी मिल सके।
पसंद की जगह पर दर्ज करें बयान

कार्यशाला के दौरान बताया गया कि पॉक्सो एक्ट की जांच उप निरीक्षक स्तर या इससे ऊपर के अधिकारी कर सकते हैं। बच्चों के बयान लेने उन्हें थाने नहीं बुलाया जाए। बल्कि बच्चों की पसंद की जगह पर सादा कपड़ों में जाकर पुलिस अधिकारी बयान दर्ज करें। एक खास बात यह भी बताई गई कि पीडि़त बच्चों की भाषा में ही धारा 164 के तहत बयान कराए जाएं। बयान की भाषा में बदलाव नहीं करें।
लंबे समय तक रहता है प्रभाव

प्रधान मजिस्ट्रेट मोनिका शुक्ला ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि जब वह नेश्नल लॉ यूनिवर्सिटी में थीं तब साथ में रहने वाली एक लड़की छूने पर भी चौंक जाती थी। छोटी उम्र में वह अपने करीबी का शिकार हुई थी। जिसे कई साल तक वह भूल नहीं सकी। इस उदाहरण से उन्होंने बताया कि बच्चों में लंबे समय तक प्रभाव होता है। इसलिए प्रयास किए जाएं कि बच्चों से बात करें, पूछें और उन्हें समझाएं। ताकि बच्चों के बताने पर अपराध को रोकने के प्रयास हो सकें।
आयु निर्धारण में पेंच

डीएसपी किरण किरो ने आयु निर्धारण के संबंध में सवाल किया। उन्होंने कहा कई प्रकरण में पीडि़त नाबालिग की उम्र का निर्धारण करने कागजी दस्तावेज नहीं उपलब्ध हो पाते हैं। एेसे में मेडिकल बोर्ड से परीक्षण कराया जाता है। जिसमें उम्र 17 या 18 वर्ष बताई जाती है। एेसे में कार्रवाही में पेंच फंसती है। 18 से कम हुआ तो पॉक्सो के दायरे में आएगा और ज्यादा हुआ तो आइपीसी के तहत केस बनेगा। इस सवाल पर सीएमएचओ और अन्य अधिकारियों ने कहा कि मेडिकल साइंस में एक साल कम ज्यादा ही बता सकते हैं। एेसे में अधिकारी अपनी समझ और रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाही करें।
ये रहे मौजूद

कार्यशाला में जिला विधिक सेवा अधिकारी राजेन्द्र सिंह, डीएसपी मुख्यालय किरण किरो, सीएसपी विजय प्रताप सिंह, शहर के थाना प्रभारी, सीएमएचओ विजय आरख, सहायक संचालक स्कूल शिक्षा एनके सिंह, एपीसी जन शिक्षा केन्द्र रावेन्द्र त्रिपाठी, जिला संयोजक आदिम जाति कल्याण विभाग कमलेश्वर सिंह, सहायक संचालक पिछड़ा वर्ग एवं अल्प संख्यक कल्याण एके शुक्ला, किशोर न्याय बोर्ड के सदस्य, मुख्य निर्देशक आंगनवाड़ी ट्रेनिंग सेन्टर राजेन्द्र कुमार बांगरे, बाल संरक्षण अधिकारी अमर सिंह चौहान, विधि सह परिवीक्षा अधिकारी अखण्ड प्रताप सिंह, बाल कल्याण समिति सदस्य, प्रशासक वन स्टॉप सेन्टर, चाइल्ड लाईन की टीम समेत अन्य मौजूद रहे।

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