भोपाल में डेरा
जिले के कई अधिकारी कर्मचारी इन दिनों गुपचुप तरीके से भोपाल में डेरा डाले हुए हैं या फिर उनके बिचौलिए राजधानी में गुणा गणित में जुटे हैं। मामला तबादलों से जुड़ा है। जिले की सबसे बुरी स्थिति तो जिपं सीईओ को लेकर हो गई है। इस मामले में शासन की भद् तो पिट ही रही है, उंगलियां कांग्रेस पदाधिकारियों पर भी उठ रही हैं। एक सप्ताह से ज्यादा समय हो चुका है और जिले को पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के लिए जिपं सीईओ नहीं मिल सका है। दो अधिकारी इसके लिए पूरी ताकत लगाए हैं तो एक पूर्व अधिकारी भी अपनी कोशिश में लगे हैं।
जिले के कई अधिकारी कर्मचारी इन दिनों गुपचुप तरीके से भोपाल में डेरा डाले हुए हैं या फिर उनके बिचौलिए राजधानी में गुणा गणित में जुटे हैं। मामला तबादलों से जुड़ा है। जिले की सबसे बुरी स्थिति तो जिपं सीईओ को लेकर हो गई है। इस मामले में शासन की भद् तो पिट ही रही है, उंगलियां कांग्रेस पदाधिकारियों पर भी उठ रही हैं। एक सप्ताह से ज्यादा समय हो चुका है और जिले को पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के लिए जिपं सीईओ नहीं मिल सका है। दो अधिकारी इसके लिए पूरी ताकत लगाए हैं तो एक पूर्व अधिकारी भी अपनी कोशिश में लगे हैं।
एसएलआर का भी तबादला
इसी तरह से यहां से एसएलआर का भी तबादला हो चुका है पर उनकी रिलीविंग नहीं हो सकी है। डिप्टी कलेक्टरों को जिन्हें यहां भेजा गया है वे अभी अपनी ज्वॉइनिंग नहीं दिए हैं। जिन्हें अन्यत्र जाना है वे रिलीव नहीं हुए। ऐसे में रिलीविंग के इंतजार में बैठे अधिकारी रूटीन काम बस निपटा रहा है लेकिन निर्णय जैसे मामलों से बच रहे हैं। यही स्थिति कर्मचारियों की भी है। कलेक्ट्रेट की स्थिति इन दिनों ऐसी है जैसे कोई मातम के दौरान रहती है। पूरा कार्यालय खाली खाली और सूना पड़ा रहता है। यही हालात तहसीलों के हैं। ऐसे में जिन्हें अपने काम करवाने हैं वे दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं।
इसी तरह से यहां से एसएलआर का भी तबादला हो चुका है पर उनकी रिलीविंग नहीं हो सकी है। डिप्टी कलेक्टरों को जिन्हें यहां भेजा गया है वे अभी अपनी ज्वॉइनिंग नहीं दिए हैं। जिन्हें अन्यत्र जाना है वे रिलीव नहीं हुए। ऐसे में रिलीविंग के इंतजार में बैठे अधिकारी रूटीन काम बस निपटा रहा है लेकिन निर्णय जैसे मामलों से बच रहे हैं। यही स्थिति कर्मचारियों की भी है। कलेक्ट्रेट की स्थिति इन दिनों ऐसी है जैसे कोई मातम के दौरान रहती है। पूरा कार्यालय खाली खाली और सूना पड़ा रहता है। यही हालात तहसीलों के हैं। ऐसे में जिन्हें अपने काम करवाने हैं वे दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं।
व्यवस्थित होने के बाद होगा काम-काज
बताया गया है कि सरकारी मशीनरी को पूरी तरह से तबादलों के बाद व्यवस्थित होने में अभी एक सप्ताह और लगेंगे। इसके बाद जाकर कामकाज अपने मूल रूप में आ सकेगा। अभी जिला स्तरीय तबादलों के चलते मैदानी अमला भी अस्त व्यस्त हो चुका है।
बताया गया है कि सरकारी मशीनरी को पूरी तरह से तबादलों के बाद व्यवस्थित होने में अभी एक सप्ताह और लगेंगे। इसके बाद जाकर कामकाज अपने मूल रूप में आ सकेगा। अभी जिला स्तरीय तबादलों के चलते मैदानी अमला भी अस्त व्यस्त हो चुका है।