गैस भरवाना हमारे बस की बात नहीं
कुछ ऐसी ही हकीकत विगत दिनों सीएम ने जिस आदिवासी बस्ती में खाना खाया था, वहां दिखी। बस्ती के ज्यादातर घरों में सिलेंडर तो मिले पर उपयोग की बात महज कुछ ग्रामीणों ने ही स्वीकारी, वह भी कभी-कभार। सभी का दर्द रहा कि मजदूरी कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं। हजार रुपए देकर गैस भरवाना हमारे बस की बात नहीं। इससे धुआं मुक्त जिला बनाने की मुहिम कमजोर पडऩे लगी है। यह स्थिति तब है जब योजना के तहत कनेक्शन बांटने में जिला संभाग में अव्वल है। प्रदेश में 18वें पायदान है। 36839 हितग्राहियों के केवाइसी फार्म जमा हो चुके हंै। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की मानें तो जिले में 41 गैस एजेंसी संचालक नि:शुल्क उज्ज्वला कनेक्शन बांट रहे हैं।
कुछ ऐसी ही हकीकत विगत दिनों सीएम ने जिस आदिवासी बस्ती में खाना खाया था, वहां दिखी। बस्ती के ज्यादातर घरों में सिलेंडर तो मिले पर उपयोग की बात महज कुछ ग्रामीणों ने ही स्वीकारी, वह भी कभी-कभार। सभी का दर्द रहा कि मजदूरी कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं। हजार रुपए देकर गैस भरवाना हमारे बस की बात नहीं। इससे धुआं मुक्त जिला बनाने की मुहिम कमजोर पडऩे लगी है। यह स्थिति तब है जब योजना के तहत कनेक्शन बांटने में जिला संभाग में अव्वल है। प्रदेश में 18वें पायदान है। 36839 हितग्राहियों के केवाइसी फार्म जमा हो चुके हंै। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की मानें तो जिले में 41 गैस एजेंसी संचालक नि:शुल्क उज्ज्वला कनेक्शन बांट रहे हैं।
दो जून की रोटी मुश्किल से मिलती है, गैस कहां से भरवाएं
रैगांव उपचुनाव के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छुलहनी बस्ती की बसंती आदिवासी के यहां भोज किया था। उस दौरान चूल्हे पर खाना पकने की तस्वीर काफी चर्चित हुई थी। पत्रिका ने बस्ती में पड़ताल की तो ज्यादातर परिवारों ने योजना के तहत लाभ मिलना स्वीकारा, लेकिन महंगाई के आगे बेबस दिखे। बसंती ने बताया कि खाना चूल्हे में बनता है। कभी-कभार जरूरत के हिसाब से गैस जला लेते हैं। इस दौरान पीएम आवास का काम कर रहे लल्ला कोल का दर्द छलक उठा। उसने बताया कि एक साल पहले गैस सिलेंडर मिला था, गैस खत्म होने के बाद आज तक नहीं भरवाया। मजदूरी कर दो जून की रोटी का मुश्किल से जुगाड़ कर रहे हैं, हम हजार रुपए की गैस कहां से भरवाएं।
रैगांव उपचुनाव के दौरान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने छुलहनी बस्ती की बसंती आदिवासी के यहां भोज किया था। उस दौरान चूल्हे पर खाना पकने की तस्वीर काफी चर्चित हुई थी। पत्रिका ने बस्ती में पड़ताल की तो ज्यादातर परिवारों ने योजना के तहत लाभ मिलना स्वीकारा, लेकिन महंगाई के आगे बेबस दिखे। बसंती ने बताया कि खाना चूल्हे में बनता है। कभी-कभार जरूरत के हिसाब से गैस जला लेते हैं। इस दौरान पीएम आवास का काम कर रहे लल्ला कोल का दर्द छलक उठा। उसने बताया कि एक साल पहले गैस सिलेंडर मिला था, गैस खत्म होने के बाद आज तक नहीं भरवाया। मजदूरी कर दो जून की रोटी का मुश्किल से जुगाड़ कर रहे हैं, हम हजार रुपए की गैस कहां से भरवाएं।
धुआं बताता है कि उज्ज्वला कमजोर पड़ रही
योजना के तहत मिले सिलेंडरों का उपयोग कितना हो रहा, यह हकीकत घरों के सामने रखे मिले लकडिय़ों के ग_र खुद बता देते हैं। बस्ती के हर घर के सामने लकडिय़ों का बोझा रखा था। कई ग्रामीण लकडिय़ां ढोते भी मिले। वहीं, चूल्हे की आग का धुआं भी फैल रहा था। बाबूलाल साकेत ने बताया कि इन्हीं से हमारा चूल्हा जलता है। इतनी महंगी गैस जलाना हम गरीबों के बस की बात नहीं।
योजना के तहत मिले सिलेंडरों का उपयोग कितना हो रहा, यह हकीकत घरों के सामने रखे मिले लकडिय़ों के ग_र खुद बता देते हैं। बस्ती के हर घर के सामने लकडिय़ों का बोझा रखा था। कई ग्रामीण लकडिय़ां ढोते भी मिले। वहीं, चूल्हे की आग का धुआं भी फैल रहा था। बाबूलाल साकेत ने बताया कि इन्हीं से हमारा चूल्हा जलता है। इतनी महंगी गैस जलाना हम गरीबों के बस की बात नहीं।
हकीकत
जिला टारगेट पूर्ति गैस एजेंसी
रीवा 156000 22510 38
सतना 85000 24377 41
सीधी 54000 10301 19
सिंगरौली 52000 10949 25
(आंकड़े नवंबर के शुरुआती सप्ताह के) रीवा का टारगेट सबसे अधिक
नि:शुल्क गैस कनेक्शन वितरण में रीवा संभाग में सतना अव्वल है। प्रदेश में सबसे अधिक 1,56,000 कनेक्शन का लक्ष्य रीवा को दिया गया, जहां महज 22510 कनेक्शन बंट पाए हैं। जबकि, सीधी-सिंगरौली में यह आंकड़ा अभी 11 हजार के अंदर है।
जिला टारगेट पूर्ति गैस एजेंसी
रीवा 156000 22510 38
सतना 85000 24377 41
सीधी 54000 10301 19
सिंगरौली 52000 10949 25
(आंकड़े नवंबर के शुरुआती सप्ताह के) रीवा का टारगेट सबसे अधिक
नि:शुल्क गैस कनेक्शन वितरण में रीवा संभाग में सतना अव्वल है। प्रदेश में सबसे अधिक 1,56,000 कनेक्शन का लक्ष्य रीवा को दिया गया, जहां महज 22510 कनेक्शन बंट पाए हैं। जबकि, सीधी-सिंगरौली में यह आंकड़ा अभी 11 हजार के अंदर है।
दाम कम होंगे तब सोचेंगे
छुलहनी बस्ती की एक बिटिया ने बकरियों को बांधने वाले तबेले का ताला खोलकर दिखाया तो सिलेंडर एक कोने में धूल और लकडिय़ों के बीच रखा मिला। उसने बताया कि परिवार की स्थिति ऐसी नहीं कि हम लोग गैस से खाना पका सकें। तीन-चार साल पहले सिलेंडर मिला था, उपयोग करने के बाद यहां रख दिया है। वहीं रानी ने बताया कि आज तक हमें कोई सिलेंडर नहीं मिला। सरपंच-सचिव से कई बार समग्र आईडी बनाने को कहा पर यहां मुंह देखकर लाभ दिया जाता है।
छुलहनी बस्ती की एक बिटिया ने बकरियों को बांधने वाले तबेले का ताला खोलकर दिखाया तो सिलेंडर एक कोने में धूल और लकडिय़ों के बीच रखा मिला। उसने बताया कि परिवार की स्थिति ऐसी नहीं कि हम लोग गैस से खाना पका सकें। तीन-चार साल पहले सिलेंडर मिला था, उपयोग करने के बाद यहां रख दिया है। वहीं रानी ने बताया कि आज तक हमें कोई सिलेंडर नहीं मिला। सरपंच-सचिव से कई बार समग्र आईडी बनाने को कहा पर यहां मुंह देखकर लाभ दिया जाता है।