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क्या आप जानते हैं…रूठी पत्नी को भगवान ने भी दिया गिफ्ट…तब मानी थीं लक्ष्मी

locationसतनाPublished: Jul 23, 2018 02:39:59 pm

Submitted by:

suresh mishra

आज भी इसी रूप में होता है संवाद

unique love story of God, bhagwaan vishu and maa Laxmi

unique love story of God, bhagwaan vishu and maa Laxmi

पन्ना। हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की कहानी बड़ी ही निराली है। कहते है हजारों वर्ष पहले स्वयं भगवान अपनी रूठी पत्नी को मनाने के लिए गिफ्ट या उपहार दिया करते थे। तब मां लक्ष्मी भगवान की बात माना करती है। आज भी इसी रूप में संवाद किया जाता है। बता दें कि, भगवान जगन्नाथ स्वामी की रथयात्रा रविवार शाम लखूरन बाग से गाजे-बाजे के साथ विदा होकर करीब 8 बजे भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर पहुंचे।
यहां सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालुओं ने भगवान की आरती उतारकर अगवानी की। इसके बाद देवी लक्ष्मी की भगवान से कई मुद्दों पर खट्टी-मीठी तकरार होती है। संवाद के दौरान अपने पक्ष को कमजोर होता देख भगवान कुछ गहने निकालते हुए देवी लक्ष्मी को देते हैं। वे कहते हैं,देवी हम तो आपके लिए गहने खरीदने गए थे। इस पर देवी मान जाती हैं और कहती हैं कि आप रात मंदिर के बाहर ही विश्राम कीजिए।
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पन्ना में 28 जून से चल रहा जगन्नाथ महोत्सव
गौरतलब है कि भगवान जगन्नाथ स्वामी रथयात्रा महोत्सव की शुरुआत 28 जून को स्नान यात्रा के साथ हुई थी। करीब एक माह तक चले महोत्सव के अंतिम चरण के तहत भगवान के रथों की जनकपुर से वापसी होती है। यात्रा के अंतिम पड़ाव में रविवार शाम भगवान जगन्नाथ स्वामी, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के रथ जगन्नाथ स्वामी मंदिर पहुंचकर सिंह द्वार पर खड़े हो जाते हैं। भगवान के रथों की गडग़ड़ाहट की आवाज सुनकर देवी लक्ष्मी भी महल से निकलकर यह देखने आ जाती हैं कि उनके विश्राम में कौन खलल डाल रहा है। सिंह द्वार पर भगवान के रथों को देखकर वे खुश होती हैं।
शनिवार को दी गई गार्ड ऑफ ऑनर की सलामी
जनकपुर से रवानगी के बाद भगवान ने शुक्रवार की रात चौपड़ा में विश्राम किया। दूसरे दिन शनिवार की शाम गार्ड ऑफ ऑनर के साथ चौपड़ा से रवाना हुए और लखूबर बाग में पहुंचे। आसपास के लोगों ने कलश जलाकर अगवानी की और आरती उतारी। शनिवार शाम भगवान जगन्नाथ ने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ लखूरन के लिए प्रस्थान किया। गांव के लोगों ने आरती उतारी। सुख, समृद्धि की कामना की। भगवान को अगले पड़ाव के लिए विदा करने सैकड़ों की संख्या में लोग एकत्रित थे। रथों में सवार भगवान को विदा करने के लिए करीब एक किमी. दूर तक पैदल चलकर लखूबर बाग तक पहुंचे। यहां भगवान ने रात को विश्राम किया था।
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