जब हमारे कदम लडख़ड़ाने लगते हैं तो सहयोगी की भूमिका में खड़ा नजर आता है। कभी कठोर होते हुए अनुशासन का पाठ पढ़ाता है, तो कभी दोस्त के रूप में जीवन का मंत्र देता है। ऐसे संघर्षशील पिता की कहानी पत्रिका टीम ने खोजने का प्रयास किया। जिन्होंने अपने संघर्ष के साथ-साथ बच्चों को समाज में सफल व्यक्ति के रूप में स्थापित किया। आज वे बच्चे अपने कर्म से पहचाने जाते हैं और यह सुनकर पिता गर्व महसूस करते हैं।
बेटे की कलम से
उम्मीदों की आस हैं पापा
मोतीलाल कुशवाहा, डीएसपी, बैतूल
निवासी बाबूपुर उचेहरा
पिता-छोटेलाल कुशवाहा पिता वह शब्द है जिसमें एक पुत्र के सपने, उसकी उम्मीदें और आशाएं समाहित होती हैं। बेटा क्या करेगा? क्या बनेगा? किन सफलताओं को अर्जित करेगा? यह पिता के दृढ़ निश्चय, आत्मबल व नेक इरादों पर निर्भर करता है। मेरे पिता छोटेलाल कुशवाहा ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। आठवीं के बाद परिस्थितियों के कारण पढ़ाई छूट गई। लेकिन, बच्चों को पढ़ाने की ललक हमेशा उनमें देखी है। दिनभर खेतों में काम कर मेरी पढ़ाई का खर्च उठाया। बारिश के मौसम, सर्दियों की रात व गर्मी की दोपहर में काम करना, सब मुझे याद आता है। नमक-रोटी खाकर सो जाना, ताकि पढ़ाई के लिए पैसे बच सकें। यह पिता का त्याग मेरे लिए था। उन्होंने मेहनत करना सिखाया। आज भी मेरी दो बहनें भोपाल में रहकर पढ़ती है, जिनका मार्गदर्शन पिता कर रहे हैं।
एक पिता ये भी
मेरे लिए पिता तुल्य डॉ. रूपा देवेंद्र सिंह भी हैं। उन्होंने पढ़ाई के दौरान मदद की। पीएससी परीक्षा की तैयारियों को लेकर मार्गदर्शन दिया। मेरी सफलता के लिए हर तरह से मदद की।
शिक्षा: पिता का विश्वास बेटे लिए महत्वपूर्ण होता है।
सफलता का सूत्र: मेहनत करने से सफलता जरूर मिलती है।
उम्मीदों की आस हैं पापा
मोतीलाल कुशवाहा, डीएसपी, बैतूल
निवासी बाबूपुर उचेहरा
पिता-छोटेलाल कुशवाहा पिता वह शब्द है जिसमें एक पुत्र के सपने, उसकी उम्मीदें और आशाएं समाहित होती हैं। बेटा क्या करेगा? क्या बनेगा? किन सफलताओं को अर्जित करेगा? यह पिता के दृढ़ निश्चय, आत्मबल व नेक इरादों पर निर्भर करता है। मेरे पिता छोटेलाल कुशवाहा ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। आठवीं के बाद परिस्थितियों के कारण पढ़ाई छूट गई। लेकिन, बच्चों को पढ़ाने की ललक हमेशा उनमें देखी है। दिनभर खेतों में काम कर मेरी पढ़ाई का खर्च उठाया। बारिश के मौसम, सर्दियों की रात व गर्मी की दोपहर में काम करना, सब मुझे याद आता है। नमक-रोटी खाकर सो जाना, ताकि पढ़ाई के लिए पैसे बच सकें। यह पिता का त्याग मेरे लिए था। उन्होंने मेहनत करना सिखाया। आज भी मेरी दो बहनें भोपाल में रहकर पढ़ती है, जिनका मार्गदर्शन पिता कर रहे हैं।
एक पिता ये भी
मेरे लिए पिता तुल्य डॉ. रूपा देवेंद्र सिंह भी हैं। उन्होंने पढ़ाई के दौरान मदद की। पीएससी परीक्षा की तैयारियों को लेकर मार्गदर्शन दिया। मेरी सफलता के लिए हर तरह से मदद की।
शिक्षा: पिता का विश्वास बेटे लिए महत्वपूर्ण होता है।
सफलता का सूत्र: मेहनत करने से सफलता जरूर मिलती है।
पिता मेरे आदर्श हैं
योगेश ताम्रकार, पूर्व चेम्बर अध्यक्ष
पिता- स्व. शंकर प्रसाद ताम्रकार यूं तो वो मेरे पापा जी थे। मगर, मेरे आदर्श भी रहे हैं। उनकी हर बात अनुकरणीय होती थी। मुझे याद है, जब वे नगर पालिका के अध्यक्ष थे। घर में शासकीय फोन व जीप थी। एक बार पापा ने मुझे किसी व्यक्तिगत कार्य के लिए फोन लगाने को कहा। मैंने तुरंत सरकारी फोन उठाया और लगाने लगा। तब पिताजी ने जोर से डांटा। व्यक्तिगत कार्य के लिए सरकारी फोन का उपयोग कभी नहीं करना। इसी तरह अम्मा एक बार जीप से बाजार चलीं गईं। यह बात जब पिताजी को पता चली, तो परेशान हो गए। जब अम्मा वापस आईं, तो उन्होंने सीधे कहा कि आज के बाद सरकारी गाड़ी से कहीं नहीं जाओगी। जहां जाना है घर की कार से जाओ, अगर वो नहीं है, तो रिक्शा से जाओ। हम सभी बच्चों की परवरिश उन्होंने आदर्श व सिद्धांतों के माहौल में किया।
मार खाकर मुंह न दिखाना
जब मैं कॉलेज पढ़ता था, उस समय कुछ लड़कों से झगड़ा हो गया। यह बात पिताजी को पता चली। घर में पेशी हो गई। मैंने अपना पक्ष रखा। सबकुछ सुनकर उन्होंने कहा कि तुम कभी किसी पर पहला हाथ नहीं उठाओगे और कभी मार खाकर मुझे अपना मुंह मत दिखाना।
शिक्षा: जीवन में अनुशासन व सिद्धांत जरूरी है।
सफलता का सूत्र: पिता के मार्गदर्शन में सफलता अवश्य मिलती है।