2005 में शुरू हुई थी कवायद
राष्ट्रीय चम्बल जलीय अभयारण्य को यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल करने की कवायद सबसे पहले 2005 में की गई थी। जुलाई 2005 में राजस्थान, मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश के वन विभाग के अधिकारियों की एक सामूहिक बैठक मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुई थी। इसके बाद भोपाल में सेण्ट्रल लेवल की बैठक में प्रस्ताव बनाकर मध्यप्रदेश की ओर से केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अतिरिक्त महानिदेशक(वन्यजीव) को 2007 में भेजा था, लेकिन 12 साल बाद भी इस प्रस्ताव का जवाब नहीं मिला है।
घडिय़ालों पर आया था संकट
2007 में चंबल अभयारण्य में घडिय़ालों पर सकं ट आ गया था। दिसम्बर 2007 से फरवरी 2008 के बीच अज्ञात बीमारी के कारण मध्यप्रदेश में अभयारण्य में 120 घडिय़ालों की मौत हो गई थी। हालांकि मामले की जांच के लिए मृत घडिय़ालों के विसरे के नमूने लिए गए थे, लेकिन अब तक घडिय़ालों की मौत का मामला रहस्य ही बना हुआ है।
नहीं बन पाई थी सहमति
इस अभियान से जुड़े लोगों ने बताया कि मध्यप्रदेश की ओर से प्रस्ताव तो भेज दिया गया था, लेकिन अभयारण्य के तीन राज्यों के फैले होने के कारण तीनों राज्यों के विभागों में प्रस्ताव को लेकर सहमति नहीं बन पाई थी।ऐसे में अब यह प्रस्ताव फाइलों में दबकर रह गया है।
आंकड़ों की नजर में … 3 राज्यों में फैला है अभयारण्य
1978 में हुई थी स्थापना
1979 में मिला था राष्ट्रीय चम्बल जलीय अभयारण्य का दर्जा
5400 वर्ग किमी में फैला हुआ है अभयारण्य
400 किमी लम्बी चंबल नदी शामिल है कोर एरिया में
96 तरह के जलीय व तटीय पौधे मिलते हैं
250 प्रजातियां मिलती हैं पक्षियों की
रामबाबू शर्मा, डीएफओ चम्बल जलीय अभयारण्य, सवाईमाधोपुर।
प्रस्ताव सालों पहले भेजा गया था। मैं एक साल पहले ही सेवानिवृत्त हो चुका हूं। ऐसे में अब इसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है।
अविनाश शुक्ला, पूर्व पीसीसीएफ, मध्यप्रदेश।