क्या है मामला-
अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य नहीं होने तथा शोक मनाने की परंपरा सालों पुरानी है। इतिहासकार एवं जानकारों के अनुसार अक्षय तृतीया के अवसर पर चौथ माता मंदिर में सैंकंडों वर्ष पहले नव विवाहित दूल्हा दुल्हन माता के दर्शनों के लिए आए थे। मंदिर में नवविवाहित जोडों की संख्या अधिक होने के कारण दर्शन के समय नवविवाहित जोड़े आपस में बदल गए। इससे वहां पर गलतफहमी में हंगामा हो गया। हंगामा इतना बड़ा की मारपीट व खून-खराबे की नौबत आ गई।
इसी दौरान दूल्हों के पास कटार व तलवार निकलने से खूनी संघर्ष शुरू हो गया। झगड़ा इतना बड़ा हुआ कि कई नवविवाहित जोड़ों की मौत हो गई। जिनके कुछ स्मारक आज भी खंडहर अवस्था में चौथ माता खातालाब के जंगलों में है। ऐसे में इस दिन के बाद से आज तक अक्षय तृतीया पर बरवाडा व 18 गांवों में शोक मनाया जाता है। इस दिन इन गांवों में कही पर भी ना तो शहनाई गूंजती है ना ही अन्य मांगलिक कार्य किए जाते है। ऐसे में इस दिन जब भी कोई बारात जाती है तो वह या तो एक दिन पहले चली जाती है या फिर एक दिन बाद में जाती है। सालों से इस दिन शोक मनाने की परंपरा आज भी कायम है।
पूर्व संध्या पर ही बांध देते है मंदिरों की घंटियां
अक्षय तृतीया पर पूरा क्षेत्र शोक में डूबा रहता है। गौरतलब है कि इस दिन मंदिरों की घंटियों तक की आवाज सुनाई नहीं देती है। इस कारण चौथ माता मंदिर सहित अन्य दूसरे सभी मंदिरों में शाम ओर सुबह होने वाली आरती में वाद्य यंत्र या झालर नहीं बजाई जाती।