मनोकामना होती है पूर्ण
खण्डार. रणथम्भौर अभयारण्य में स्थित तारागढ़ दुर्ग में विराजमान मां जयंती के दरबार में नवरात्रों में मेला सा लगा रहता हैं। मां जयन्ती के प्रति लोगों का अटूट विश्वास यह दिखाता है कि घने जंगल में भी लोग नवरात्रों के नौ दिन माता के दरबार में रहते हैं। मंदिर पुजारी भरत दुबे ने बताया कि करीब 844 वर्ष पूर्व चौहान वंशजों ने किले का निर्माण करवाया। तभी उनकी अराध्य देवी मां जयन्ती का मंदिर भी बनवाया। हजारों वर्षों से यहां लोग मातारानी के दरबार में धोक लगा रहे। पुजारी ने बताया कि नवरात्रों में यहां दूर-दूर से लोग रोजाना आते हैं,
लेकिन सप्तमी व अष्टमी को भक्तों का जमावड़ा अधिक लगता है। पुजारी ने बताया कि माता के दर की सेवा पूजा करते हुए करीब उन्हें 20 वर्ष से अधिक हो गए हैं। जिनमें जो भी श्रद्धालु पहली बार जो मनोकामना लेकर माता के दरबार में आया है उसकी मनोकामना पूर्ण होती हैं। इसके अलावा माता रानी के दरबार में अधिक अनेक असाध्य रोगों का इलाज, चर्म रोगों का इलाज भी किया जाता हैं। भक्त किशन विजय ने बताया कि मां जयन्ती के श्रद्धालुओं के द्वारा जयपुर व गंगापुर में छोटी छोटी पीठ स्थापित की गई, लेकिन राधाष्टमी पर वर्ष में एक बार भरने वाले मां जयंती के मेले में लाखों की संख्या में यहां श्रद्धालु आते हैं।
खण्डार. रणथम्भौर अभयारण्य में स्थित तारागढ़ दुर्ग में विराजमान मां जयंती के दरबार में नवरात्रों में मेला सा लगा रहता हैं। मां जयन्ती के प्रति लोगों का अटूट विश्वास यह दिखाता है कि घने जंगल में भी लोग नवरात्रों के नौ दिन माता के दरबार में रहते हैं। मंदिर पुजारी भरत दुबे ने बताया कि करीब 844 वर्ष पूर्व चौहान वंशजों ने किले का निर्माण करवाया। तभी उनकी अराध्य देवी मां जयन्ती का मंदिर भी बनवाया। हजारों वर्षों से यहां लोग मातारानी के दरबार में धोक लगा रहे। पुजारी ने बताया कि नवरात्रों में यहां दूर-दूर से लोग रोजाना आते हैं,
लेकिन सप्तमी व अष्टमी को भक्तों का जमावड़ा अधिक लगता है। पुजारी ने बताया कि माता के दर की सेवा पूजा करते हुए करीब उन्हें 20 वर्ष से अधिक हो गए हैं। जिनमें जो भी श्रद्धालु पहली बार जो मनोकामना लेकर माता के दरबार में आया है उसकी मनोकामना पूर्ण होती हैं। इसके अलावा माता रानी के दरबार में अधिक अनेक असाध्य रोगों का इलाज, चर्म रोगों का इलाज भी किया जाता हैं। भक्त किशन विजय ने बताया कि मां जयन्ती के श्रद्धालुओं के द्वारा जयपुर व गंगापुर में छोटी छोटी पीठ स्थापित की गई, लेकिन राधाष्टमी पर वर्ष में एक बार भरने वाले मां जयंती के मेले में लाखों की संख्या में यहां श्रद्धालु आते हैं।