scriptकड़क धूप में सुहा रहे ‘देसी फ्रिज’, काली मिट्टी से बने मटके के हैं कई फायदे | demand for black clay pots increases Desi Freeze water benefit Sawai Madhopur News | Patrika News
सवाई माधोपुर

कड़क धूप में सुहा रहे ‘देसी फ्रिज’, काली मिट्टी से बने मटके के हैं कई फायदे

चिकनी मिट्टी से बने बर्तनों की वैसे तो हर मौसम में मांग रहती है। लेकिन गर्मी शुरू होते ही मटकों की मांग बढ़ जाती है। इन दिनों ठंडे पानी के लिए चिकनी मिट्टी के मटकों की मांग बढ़ गई है। गर्मी का मौसम आते ही गांव में कुंभकारों का काम के बने मिट्टी के मटके की मांग बढ़ गई है।

सवाई माधोपुरApr 04, 2024 / 11:39 am

Kirti Verma

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चिकनी मिट्टी से बने बर्तनों की वैसे तो हर मौसम में मांग रहती है। लेकिन गर्मी शुरू होते ही मटकों की मांग बढ़ जाती है। इन दिनों ठंडे पानी के लिए चिकनी मिट्टी के मटकों की मांग बढ़ गई है। गर्मी का मौसम आते ही गांव में कुंभकारों का काम के बने मिट्टी के मटके की मांग बढ़ गई है।

मटके के पानी के कई फायदे है
अप्रेल के पहले सप्ताह में सूर्य ने अपने तीखे तेवर दिखाने शुरू कर दिए है। ऐसे में सूखे कंठ की प्यास बुझाने के लिए हर गली और चौक-चौराहों पर देशी फ्रीज की डिमांड बढ़ गई है। ऐसे में अब जगह-जगह मटकों का बाजार भी सजने लगा है।

कायम है देसी फ्रीज का वजूद
कुंभकार परिवार के सीताराम, मुकेश आदि का कहना है कि पूर्वजों से लेकर आज तक लोग इन घड़ों का जल प्रयोग करते आ रहे हैं। बेशक बिजली से चलने वाले फ्रीज ने घड़ों का स्थान ले लिया है लेकिन देसी फ्रीज का वजूद कायम है। जिला मुख्यालय पर सब्जी मण्डी के पास सड़क किनारे मटके बिक्री के लिए शुरू हो चुके है। यहां छोटे मटके 150 रुपए व बड़े मटके 250 रुपए तक बिक रहे हैं। लोग अपने बजट के अनुसार मटके खरीद रहे है।

80 फीसदी लोग कर रहे मटके का उपयोग
जानकारों की मानें तो 80 फीसदी ग्रामीण इलाकों में ज्यादातर लोग अभी भी मटके का ही पानी पीते हैं। वहीं शहर में भी कोरोना के बाद से लोग फ्रीज के पानी की बजाय मटके का पानी पीने लगे हैं। आमजन का मानना है कि फ्रिज के पानी के मुकाबले मटके का पानी सेहत के लिए भी ठीक रहता है। मटके के पानी का अलग ही स्वाद होता है। मटके का पानी पीने से खांसी, जुकाम की भी शिकायत नहीं होती। लोगों की पसंद को ध्यान में रखते हुए मटकों को स्टाइलिश लुक भी दिया जा रहा है।

15 दिन में तैयार हो जाता है मटका
कुम्हारों का कहना है कि एक मटका तैयार करने में 15 दिन का समय लग जाता है। पहले मिट्टी भिगोकर अच्छी तरह मथकर और चाक पर मिट्टी को रखकर अलग-अलग रूपों में मिट्टी का आकार बनाने की तैयारियां करते हैं। फिर मिट्टी के बर्तन बनाकर उसे पकाने के लिए लकड़ी का बुरादा सहित अन्य ईंधन का उपयोग काम में लेते हैं।

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