script42 साल बाद भी नहीं लगे अरमानों को ‘पंख’ | Even after 42 years, Armaan did not get 'wings' | Patrika News

42 साल बाद भी नहीं लगे अरमानों को ‘पंख’

locationसवाई माधोपुरPublished: Aug 22, 2019 12:34:45 pm

Submitted by:

Rajeev

गंगापुरसिटी . राज्य सरकार की ओर से भले ही 4 दशक पहले शहर के होनहारों को सरकारी कॉलेज की सौगात दे दी हो, लेकिन आज भी क्षेत्र के बच्चे भूगोल में ही ‘गोल’ हैं। शहर में सन् 1977 में स्नातक स्तर के कॉलेज की स्थापना हुई थी। इसके बाद करीब 42 साल गुजर जाने के बाद भी यहां स्नातक स्तर पर भूगोल विषय की स्वीकृति नहीं मिल पाई है।

42 साल बाद भी नहीं लगे अरमानों को ‘पंख’

42 साल बाद भी नहीं लगे अरमानों को ‘पंख’

गंगापुरसिटी . राज्य सरकार की ओर से भले ही 4 दशक पहले शहर के होनहारों को सरकारी कॉलेज की सौगात दे दी हो, लेकिन आज भी क्षेत्र के बच्चे भूगोल में ही ‘गोल’ हैं। शहर में सन् 1977 में स्नातक स्तर के कॉलेज की स्थापना हुई थी। इसके बाद करीब 42 साल गुजर जाने के बाद भी यहां स्नातक स्तर पर भूगोल विषय की स्वीकृति नहीं मिल पाई है।

ऐसे में भूगोल विषय में स्नातक करने की हसरत पाले बैठे विद्यार्थियों को मायूस होना पड़ रहा है। इतना ही नहीं राज्य सरकार की ओर से करीब ३ वर्ष पहले स्थानीय महाविद्यालय का दर्जा बढ़ाकर स्नातकोत्तर स्तर का कर दिया, लेकिन यहां भी सिर्फ दो विषयों का संचालन किए जाने से कॉलेज वास्तविक रूप में स्नातकोत्तर कॉलेज का स्वरूप नहीं ले सका है। विद्यार्थियों की मांग के चलते कॉलेज को पीजी स्तर का दर्जा देकर यहां सिर्फ एबीएसटी व राजनीति विज्ञान विषय को स्वीकृति दी गई, जबकि महाविद्यालय में प्रतिवर्ष ३६०० विद्यार्थी नियमित अध्ययन करते हैं। साथ ही करीब १ हजार विद्यार्थी स्नातक स्तर पर पास आउट होते हैं। ऐसे में यहां पीजी स्तर पर विषयों की कमी से विद्यार्थियों को उच्च अध्ययन संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

होता है आर्थिक शोषण


सरकारी कॉलेज में विषयों की कमी के चलते विद्यार्थियों को मजबूृरन निजी कॉलेजों में प्रवेश लेना पड़ता है। ऐसे में इन कॉलेजों की ओर से विद्यार्थियों से सालाना मोटी फीस वसूली जाती है। इसके चलते विद्यार्थियों पर आर्थिक भार पड़ता है। बता दें कि सरकारी कॉलेज में करीब ९० फीसदी ग्रामीण पृष्ठ भूमि के विद्यार्थी अध्ययन करते हैं। कई बच्चे आर्थिक बोझ तले दबकर उच्च अध्ययन से वंचित रह जाते है।

भूगोल व एमएससी की विशेष मांग


छात्र-छात्राओं की ओर से कॉलेज में स्नातक स्तर पर भूगोल विषय एवं पीजी स्तर पर हिन्दी, इतिहास, संस्कृत, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, मैथ एवं अंग्रेजी विषयों की मांग की जाती रही है। इनमें से रसायन विज्ञान व जीव विज्ञान की विशेष मांग रही है। इस संदर्भ में विद्यार्थियों की ओर से कई बार उच्च स्तर पर ज्ञापन दिए जा चुके हैं, लेकिन राजनीतिक इच्छा शक्ति के अभाव में मांग परवान नहीं चढ़ पाई है।

यूं बोले विद्यार्थी


कॉलेज में एमएससी स्तर पर पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं होने से आगे नियमित पढ़ाई का संकट खड़ा हो गया है। ऐसे में शहर से बाहर जाना ही एक मात्र विकल्प बचा है, जो कि आर्थिक रूप से काफी महंगा पड़ता है। स्थानीय स्तर पर एमएससी की पढ़ाई होती है तो काफी राहत मिल सकती है।
– अंजलि चौरसिया, बीएससी द्वितीय वर्ष

अभी बीएससी अंतिम वर्ष में अध्ययन कर रहा हूं। स्थानीय कॉलेज में एमएससी स्तर पर विषय नहीं होने से मजबूरन शहर से बाहर जाना पड़ेगा। ऐसे में यहां यदि एमएससी स्तर की पढ़ाई की राह खुलती है तो विद्यार्थियों को राहत मिल सकेगी।
– सीताराम गुर्जर, विद्यार्थी बीएससी अंतिम वर्ष।

भूगोल विषय में अच्छे स्कोप के चलते कॉलेज स्तर पर भूगोल विषय पढऩे की तैयारी कर रखी थी, लेकिन यहां सरकारी कॉलेज में भूगोल विषय नहीं होने से यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी। निजी कॉलेजों में मोटी फीस के चलते यहीं अन्य विषयों में स्नातक की पढ़ाई करनी पड़ रही है।
– विष्णु रैगर, विद्यार्थी बीए द्वितीय वर्ष।

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी की दृष्टि से हिन्दी विषय में एमए करने की हसरत पाल रखी है, लेकिन यहां स्नातकोत्तर स्तर पर हिन्दी पढ़ाई की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में स्वयंपाठी विद्यार्थी के रूप में ही अध्ययन जारी रखना होगा। यहां कॉलेज में पीजी स्तर पर हिन्दी विषय की उपलब्धता होती है तो सुविधा होगी।
– अशोक सैनी, विद्यार्थी बीए द्वितीय वर्ष।
42 साल बाद भी नहीं लगे अरमानों को ‘पंख’
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