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शिक्षा विभाग के पास बजट नहीं: दानदाताओं की मदद से खेलने को मजबूर हमारे खिलाड़ी

locationसवाई माधोपुरPublished: Sep 16, 2018 06:10:25 am

Submitted by:

rohit sharma

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शिक्षा विभाग के पास बजट नहीं: दानदाताओं की मदद से खेलने को मजबूर हमारे खिलाड़ी

सवाईमाधोपुर.
प्रदेश में खेल की नींव दानदाताओं के भरोसे है। प्रारंभिक शिक्षा विभाग की ओर से ब्लॉक व जिला स्तर पर प्रतियोगिताएं करवाई जाती हैं, लेकिन इसके लिए बजट के नाम पर विभाग को कुछ नहीं मिलता है। इधर, स्कूलों की ओर से किसी तरह की राशि भी नहीं ली जाती है। ऐसे में विभाग को हर साल प्रतियोगिता करवाने के लिए दानदाताओं के आगे हाथ फैलाना पड़ता है। इस कारण इनको दानदाताओं से ही राशि एकत्रित करनी पड़ती है या व्यवस्थाएं करवानी पड़ती हैं। ऐसी ही स्थिति इन दिनों पुलिस लाइन मैदान में चल रही राज्य स्तरीय 17 व 19 वर्षीय छात्रा हैण्डबॉल प्रतियोगिता में देखने को मिल रही है। प्रतियोगिता में 19 वर्ष में 28 जिले से 456 एवं 17 वर्ष में 29 जिलों से 455 छात्राएं शामिल है। इसमें कुल 911 छात्राएं भाग ले रही हैं, लेकिन राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के आयोजन के लिए सरकार ने केवल 50 हजार का बजट ही स्वीकृत किया है। इसमें 17 वर्ष में 28 एवं 19 वर्ष में 25 हजार का बजट शामिल है।
बजट का संकट
इन दिनों जिला मुख्यालय पर राज्य स्तरीय हैण्डबॉल प्रतियोगिता हो रही है। इसके कुशल आयोजन के लिए बजट का टोटा बना है। एक अनुमान के अनुसार प्रतियोगिता में 50 हजार के बजट में से करीब 40 हजार रुपए तो प्रतियोगिता की ट्राफी में ही खर्च हो जाएंगे। इसके अलावा उद््घाटन, समापन, प्रमाण-पत्र , खिलाडिय़ों के खाने-पीने का बजट शामिल है।
इतने होते है खेल
प्रारंभिक शिक्षा के तहत बास्केटबाल, बैडमिंटन, लॉन टेनिस, हॉकी, साफ्टबाल, फुटबॉल, जिम्नास्टिक, क्रिकेट, एथलेटिक्स आदि खेल होते है। इसके अलावा कबड्डी, खो-खो, वॉलीबाल, जुडो, कुश्ती, दौड़, लम्बी व ऊंची कूद गोला फेंक, तश्तरी फेंक, आदि खेलों में विद्यार्थी भाग लेते है, लेकिन हर वर्ष बजट के अभाव में खिलाडिय़ों को पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पाती है। संसाधनों के अभाव में खिलाड़ी अभ्यास नहीं कर पाते है। मजबूरन स्कूली छात्रों या खिलाडिय़ों को स्वयं के खर्चे पर ही खेलों का सामान खरीदना पड़ता है।
हर बार निजी स्कूल बनते है सहारा
प्रारंभिक शिक्षा में एक रुपया खेल के नाम पर नहीं मिलता है। ऐसे में हर वर्ष निजी स्कूलों को आयोजन बनना पड़ता है। कई बार निजी स्कूलों के तैयार नहीं होने पर संकट भी खड़ा हो जाता है।
इनका कहना है
राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं के लिए सरकार की ओर से कम ही बजट मिलता है। ऐसे में उद्घाटन, समापन, ट्रोफी, प्रमाण-पत्र आदि में ज्यादा राशि खर्च हो जाती है। इस बार भी भामाशाहों के सहयोग से ही प्रतियोगिता कराई गई है।
अशोक शर्मा, अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी माध्यमिक, सवाईमाधोपुर

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