सरकार ने 8वीं के लिए नहीं छपवाई अंग्रेजी माध्यम की पुस्तकें, लाखों विद्यार्थियों का भविष्य दांव पर! शोध के अनुसार प्रतिदिन 210 मिलियन लीटर पानी घरों की रसोई, शौचालय से सीवरलाइनों में आता है। इसमें केवल 50 मिलियन लीटर पानी वापस शोधित होता है, जबकि 160 मिलियन लीटर पानी सीधे भूगर्भ में चला जाता है। जिससे शहर के भूजल स्तर में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। हैरत की बात यह है कि पहले 20 मीटर नीचे तक भूजल स्तर था। जो पिछले 20 सालों से बढ़ता-बढ़ता 3 मीटर तक आ गया है।
नेशनल सीनियर कबड्डी चैम्पियनशिप के टीमें ग्राउंड के बाहर दोस्त, अंदर प्रतिद्वंद्वी : अनूप कई जगहों पर तो हालत यह है कि एक मीटर पर ही भूजल स्तर आ चुका है। इस कारण कायलाना में क्रेक नहीं, बल्कि लगातार पानी का शोधित नहीं होना है। इससे जोधपुर शहर में कई जगह ‘बॉउल शेपÓ जैसी स्थिति हो गई है। जहां पर आस-पास में बिल्डिंग है और बीच में भूजल स्तर इतना बढ़ गया है कि घरों में बेसमेंट तक की अनुमति नहीं दी जा रही है।
अब ऑनलाइन मंगवाओ सहकारी सामान छोटे ट्रीटमेंट प्लांट की आवश्यकता आईआईटी निदेशक के अनुसार शहर में अब बड़े ट्रीटमेंट प्लांट की जगह हर थोड़ी दूरी पर छोटे-छोटे ट्रीटमेंट प्लांट की आवश्यकता है। इससे पानी जल्दी शोधित होगा और उस पानी का उपयोग हम खेती सहित अन्य स्थानों पर भी कर सकते हहे। आईआईटी खुद भी अपने स्तर पर एक छोटा ट्रीटमेंट प्लांट भी प्रायोगिक तौर पर बनाकर इसका उपयोग करेगा।
काजू-बादाम से महंगे मारवाड़ के कैर-सांगरी पानी पम्पिंग पर हर साल 10 करोड़ रुपए खर्च जोधपुर शहर में हर साल भूजल को पंपिंग करने के लिए 10 करोड़ रुपए खर्च होते है,जबकि यह पानी को पंपिंग करने के बाद भी यह पानी वापस जाता भूगर्भ में ही है। इससे प्रतिवर्ष खर्च होने वाले 10 करोड़ रुपए भी व्यर्थ हो रहे है।