scriptभगवान झूलेलाल के रंग में रंगा शहर, गूंजे जयकारे | In the color of Lord Jhalalal, a city filled with colors | Patrika News

भगवान झूलेलाल के रंग में रंगा शहर, गूंजे जयकारे

locationसवाई माधोपुरPublished: Mar 20, 2018 12:10:52 pm

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शोभायात्रा में झलका उत्साह…

sawaimadhopur

शहर में भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा में शामिल समाज के लोग व सजी भगवान झूलेलाल तथा शिवजी की झांकी।

सवाईमाधोपुर ञ्च पत्रिका. जिलेभर में सोमवार को चेटीचण्ड महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। सिंधी समाज की ओर से चेटीचंड पर भगवान झूलेलाल की शोभायात्रा निकाली गई। कई धार्मिक अनुष्ठान हुए। शहर स्थित झूलेलाल मंदिर पर सुबह नौ बजे झण्डारोहण हुआ। दोपहर को अग्रवाल सेवा सदन में भण्डारे का आयोजन किया गया। अपराह्न तीज बजे से सत्संग हुए।
इसके बाद शाम पांच बजे मंदिर परिसर में झूलेलाल की आरती उतारी व प्रसादी वितरण किया। इसके बाद शाम छह बजे से झूलेलाल मंदिर परिसर से शोभायात्रा रवाना हुई। इसमें समाज की महिलाएं व पुरुष झूलेलाल के भजनों पर नाचते-गाते चल रहे थे। उपाध्यक्ष अशोक ठाकवानी, मेला अध्यक्ष अशोक ललवानी, नवयुवक अध्यक्ष हरीश ललवानी, नंदलाल मूलानी, कोर कमेटी अध्यक्ष ईश्वरदास गोहरानी व राजू हरवानी आदि मौजूद थे।

झांकिया रही आकर्षण का केन्द्र
शोभायात्रा के दौरान सजाई गई झूलेलाल, शिवजी, मां दुर्गा की
सजीव झांकिया लोगों के आकर्षण का केन्द्र रही। शोभायात्रा का समाज के लोगों ने जगह-जगह पुष्पवर्षा कर स्वागत किया। महिलाओं ने खनकाए डांडियामहिलाओं ने
लोककथा : भरी प्याली
फकीर रिंझाई एक ऊंची पहाड़ी पर रहते थे। एक बार कोई विद्वान पंडित पहाड़ी चढ़कर उनसे मिलने पहुंचे। जब पंडित ऊपर पहुंचे तब उनकी सांस फूली हुई थी। पहुंचते ही उन्होंने सवाल दागने शुरू कर दिए। ‘मैं जानना चाहता हूं कि ईश्वर है या नहीं, आत्मा है या नहीं, ध्यान क्या है, समाधि क्या है।Ó रिंझाई ने सारे प्रश्न सुने। वे बोले- ‘आप अभी-अभी आये हैं। थोड़ा विश्राम कर लीजिए। मैं आपके लिए चाय बना कर लाता हूं।
रिंझाई चाय बना कर लाए। पंडित के हाथ में प्याली दी और उसमें चाय उड़ेलने लगे। प्याली भरने को आयी, पर रिंझाई रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। गरम चाय जब प्याली के बाहर गिरने लगी तब पंडित बोले- ‘रुको, रुको! प्याली तो पूरी भर गई है। अब और चाय डालोगे भी कहां?Ó रिंझाई ने कहा- ‘मुझे लगा था कि तुम निपट पंडित हो। पर नहीं, थोड़ी अक्ल तो तुम में है।
प्याली अगर पूरी भरी हो तो उसमें एक बूंद चाय भी नहीं डाली जा सकती, यह तो तुम जानते हो। अब यह बताओ कि क्या तुम ईश्वर को अपने अंदर समा सकोगे! तुम्हारे भीतर इतना थोथा ज्ञान भरा है कि समाधि तक पहुंचने की राह भी नहीं बची। बासी ज्ञान कचरा है, और कचरा जहां भरा हो वहां समाधि कैसे लगे? तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर तो मैं दूं, लेकिन क्या तुम उन्हें ले सकोगे?पंडित जी को सब समझ आ गया। वे रिंझाई के सामने नतमस्तक हो गये।

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