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जिला अस्पताल सहित जयपुर व कोटा की दौड़ लगाने की मजबूरी…, क्यो कि यहा…जच्चा सुरक्षित न बच्चा!

locationसवाई माधोपुरPublished: Sep 18, 2017 11:31:12 am

Submitted by:

Shrikant Sharma

सामुदायिक चिकित्सा केन्दों्र पर ब्लड स्टोरेज व सीजेरियन प्रसव की सुविधा नहीं

sawaimadhopur

सवाईमाधोपुर जिला अस्पताल में प्रसूता वार्ड में प्रसूतों के बेडों पर महिलाओं की भीड़।

सवाईमाधोपुर. ग्रामीण अंचल में चिकित्सा सेवाओं की धुरी माने जाने वाली सीएचसी पर पर सिजेरियन व ब्लड स्टोरेज की सुविधा नहीं होने से कई बार प्रसूता महिलाओं को जिला अस्पताल रैफर किया जाता है। इससे जच्चा व बच्चा की जान पर खतरा मंडराता रहता है। जिले में 12 सीएचसी, 35 पीएचसी तथा 269 उपस्वास्थ्य केन्द्र है। राजकीय अस्पतालों की रविवार को पत्रिका टीम ने पड़ताल की तो हकीकत सामने आई।
ब्लड स्टोरेज तो कहीं एनेस्थिसिया व सर्जन नहीं : जिले में स्थित सभी चिकित्सा केन्द्रों पर प्रसव की सुविधा मुहैया है, लेकिन सीएचसी पर सिजेरियन से प्रसव की सुविधा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में चिकित्सा प्रभारी सर्जन तो कहीं ब्लड स्टोरेज व एनेस्थिसिया चिकित्सक नहीं होने का बहाना लेकर प्रसूता महिलाओं को रैफर करते है। चिकित्सकों के अनुसार प्रतिदिन प्रत्येक सीएचसी पर औसतन 2-3, पीएचसी पर एक या दो तथा उपस्वास्थ्य केन्द्रों पर महीने में क रीब 5 प्रसव कराए जाते है।
प्रतिदिन 25-30 प्रसव
स्त्री एवं प्रसूता रोग विशेषज्ञों ने बताया कि जिला अस्पताल में प्रतिदिन औसतन 25-30 प्रसव होते है। इनमें से करीब 25 प्रसव सामान्य तथा 5 प्रसव सिजेरियन से होते है। जिला अस्पताल ब्लड बैंक से ब्लड उपलब्ध हो जाता है। जबकि कई बार ब्लड बैंक में संबंधित महिला का ब्लड ग्रुप नहीं होने की स्थिति में जयपुर या कोटा रैफर करना पड़ता है। महीने में करीब 10-15 प्रसूता महिलाओं को रैफर करना पड़ता है।
संक्रमण का खतरा
स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में 14 रेडियंट वार्मर है। जबकि प्रतिदिन इनमें 25-30 नवजात भर्ती किए जाते है। इससे नवजातों में संक्रमण फैल रहा है।

प्रसूताओं की बढ़ी संख्या, सुविधाएं नहीं
मलारना डूंगर. कस्बे के राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में संस्थागत प्रसवों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन सुविधाओं में इजाफ नहीं हुआ। 1942 में बने अस्पताल भवन के छोटे से लेबर रूम में ही प्रसव करान मजबूरी बन गया है। एक साथ दो प्रसूताओं के आने पर चिकित्सा स्टाफ के हाथ पैर फूल जाते हैं। एक लेबर टेबल पर आखिर दो प्रसूताओं को कैसे लिटाए। पलंगों की संख्या भी कम है। प्रसूताओं को 48 घंटे संस्था में रोके रखना किसी चुनौती से कम नहीं है।
स्टाफ का टोटा

सीएचसी में सेवारत महिला-एव बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. हंसराज मीना को प्रतिनियुक्ति पर दूसरी जगह भेज दिया गया। यहां प्रति दिन औसत दो से अधिक प्रसव होते है। एएनएम तक नहीं हैं। दूसरे सब सेंटर पर कार्यरत एएनएम को बुला कर काम चला रहे हैं।
मलारना चौड़. पीएचसी में प्रत्येक माह औसतन 20 प्रसव कराए जाते हैं। यहां चिकित्सा स्टॉफ के साथ ही भवन की कमी मुख्य समस्या है।
चौथ का बरवाड़ा. कस्बे के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र की पड़ताल करने पर जच्चा बच्चा के बेडों पर चादर नजर नहीं आई। वहीं वार्ड सहित शौचालय में गंदगी पसरी थी।
लेबर रूम में जगह कम है। स्त्री रोग विशेषज्ञ नहीं है। दूसरे सब सेंटर पर कार्यरत एएनएम से काम चला रहे हैं।
डॉ. तेजराम मीना, चिकित्सा प्रभारी सीएचसी मलारना डूंगर

खण्डार व बौंली में आदेश पर आदेश
खण्डार व बौंली में पिछले नौ सालों में कई बार चिकित्सा मंत्री, निदेशक, जिला कलक्टर आदि अधिकारी व जनप्रतिनिधियों द्वारा निरीक्षण किए गए। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को ब्लड स्टोरेज चालू करने के निर्देश भी दिए जाते हैं, लेकिन उनके आदेशों की भी अवहेलना की जा रही है। बौंली में एकाध यूनिट ब्लड स्टोरेज कर खानापूर्ति कर ली गई है, जबकि खण्डार में जनरेटर खराब होने का बहाना बताकर अभी तक इसे शुरू नहीं किया है।

ये बोले रोगी के परिजन
जिला अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में एक साथ दो या तीन-तीन नवजातों को भर्ती करते है। ऐसे में उन्हें संक्रमण का खतरा रहता है।
गंदोड़ मीणा, बसो खुर्द

अस्पताल में प्रसूताओं व नवजात की समय पर देखभाल हो रही है। लेकिन वार्डों में गंदगी का आलम है। ऐसे में जहां वार्ड व अस्पताल में ठहरना ही दूभर हो रहा है। वहीं प्रसूता व नवजात में संक्रमण फैल रहा है। इस ओर कोई ध्यान नहीं है।
राजेन्द्र मीणा, एमपी कॉलोनी।
जिला अस्पताल व गंगापुरसिटी के अलावा अन्य सीएचसी व पीएचसी पर सिजेरियन प्रसव नहीं कराए जाते हैं। सीएचसी पर सर्जन तो कहीं एनेस्थिसिया व ब्लड स्टोरेज नहीं है। शीघ्र ही व्यवस्था कराएंगे। जिला अस्पताल में पर्याप्त सुविधाएं है।
डॉ. टीकाराम मीणा, सीएमएचओ सवाईमाधोपुर।
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