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कोतवाली थाना बेठिकाना, नहीं पुलिस का सरकारी आशियाना

locationजयपुरPublished: Nov 05, 2016 04:43:00 pm

Submitted by:

Abhishek ojha

गंगापुरसिटी. पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक और मध्यप्रदेश में मुठभेड़ में आठ सिमी आतंकियों की मौत के बाद चारों ओर सेना और पुलिस की बहादुरी की चर्चा है। इससे उलट शहर की आंतरिक सुरक्षा के लिए 24 घंटे ड्यूटी देने वाले पुलिसकर्मियों के हालात सुविधाओं के लिहाज से ठीक नहीं हैं।

गंगापुरसिटी. पीओके में सर्जिकल स्ट्राइक और मध्यप्रदेश में मुठभेड़ में आठ सिमी आतंकियों की मौत के बाद चारों ओर सेना और पुलिस की बहादुरी की चर्चा है। इससे उलट शहर की आंतरिक सुरक्षा के लिए 24 घंटे ड्यूटी देने वाले पुलिसकर्मियों के हालात सुविधाओं के लिहाज से ठीक नहीं हैं। खासकर कोतवाली थाने में सामान्य सुविधाओं की स्थिति बदतर है। पुलिसकर्मियों से ड्यूटी को लेकर अपेक्षाएं तो खूब की जाती हैं, लेकिन उनकी मूलभूत आवश्यकताओं के बारे में किसी को चिंता नहीं। स्थिति यह है कि कोतवाली थाने और इसी परिसर में बने पुलिसकर्मियों के आवासों में पानी-शौचालय जैसी सामान्य सुविधाएं भी बदतर हैं। ऐसे में पुलिसकर्मियों का अभावों के बीच ड्यूटी करना मुश्किल होता है। 
पानी का भी टोटा 

कोतवाली परिसर में पानी का भी टोटा है। दो दिन में एक बार जलापूर्ति होने से एक नल से टेंक पूरा नहीं भर पाता है। इस कारण पुलिसकर्मियों को नहाने-धोने के लिए पानी का संकट झेलना पड़ता है। टेंक खाली होने पर कई बार तो उनको इधर-उधर नहाने की व्यवस्था करनी पड़ती है। पीने के पानी की पूर्ति वे केम्पर मंगा कर करते हैं।
आधे पुलिसकर्मियों को भी नहीं आवास

आजादी से पहले वर्ष 1942 में बने कोतवाली थाने में वैसे तो पुलिसकर्मियों की संख्या के मुकाबले में आवासों की कमी है, लेकिन जो बने हैं उनमें भी आवश्यक सुविधाओं का टोटा है। थाना परिसर में तैनात 60 पुलिसकर्मियों के लिए मात्र 23 आवास बने हुए हैं। इनमें से कुछ क्षतिग्रस्त हैं, तो कुछ को सार्वजनिक निर्माण विभाग ने नाकारा घोषित कर दिया है। हालांकि क्षतिग्रस्त और नाकारा घोषित आवासों का भी पुलिसकर्मी उपयोग कर रहे हैं। आवासों की कमी और सुविधाओं के अभाव से कई पुलिसकर्मी परिवार को साथ नहीं रख पाते हैं। परिसर में बने एक मात्र बैरक में भी रहने लायक हालत नहीं है। बड़े हॉल वाले बैरक में आलमारी के अभाव में फर्श पर रिकॉर्ड पड़ा है। बैरक में दो पंखे हैं जो पूरे हॉल में हवा नहीं फेंक पाते हैं। एेसे में पुलिसकर्मियों को मच्छर के डंक भी सहने पड़ते हैं।
शौचालय तक नहीं

कहने को तो परिसर में चार शौचालय हैं, लेकिन इनमें से उपयोगी एक ही है। शौचालय के सेफ्टी टेंक ओवर हो जाने के कारण शौचालय क्षेत्र में दुर्गन्ध रहती है। इसी कारण पुलिसकर्मियों को शौच के लिए जाने से पहले मुंह पर साफी बांधनी पड़ती है। नए शौचालय बनाने अथवा जो बने हैं उनकी दशा सुधारने की कोई सुध नहीं ले रहा। इनके अलावा बैरक में मौजूद दो शौचालय भी उपयोग करने लायक स्थिति में नहीं है।
सर्द रात में कैसे हो गश्त 

 कोतवाली थाने को गश्त के लिए एक जिप्सी मिली हुई है, लेकिन इसकी छत खुली है। पुलिसकर्मियों को रात्रि में सर्दी सहते हुए गश्त करनी पड़ रही। गर्मी में भी लू के थपेड़े झेलने पड़े। अन्य थानों की तुलना में अधिक अपराध और प्रकरण दर्ज होने के बाद भी थाने को नया वाहन उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।
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