पिछले तीन साल के औसत के अनुसार प्रदेश के थानों में सालाना पौने दो लाख एफआईआर दर्ज होती है। जबकि जिले में औसतन प्रतिवर्ष करीब पांच हजार केस दर्ज हुए हैं। थानों में सुनवाई नहीं होने से 60 हजार पीडि़तों को कोर्ट का सहारा लेकर आरोपियों के खिलाफ इस्तगासे से केस दर्ज करना पड़ता है। इसी क्रम में जिले के थानों में सुनवाई नहीं होने के कारण प्रतिवर्ष करीब 500-600 पीडि़तों को कोर्ट का सहारा लेकर रिपोर्ट दर्ज करानी पड़ती है। बाद में पुलिस इस्तगासे से दर्ज होने वाले 25 फीसदी मामलों में आरोप प्रमाणित मानकर आरोपियों के खिलाफ कोर्ट में चालान कर देते है।
यानि हर साल प्रदेश में पुलिस करीब 14 हजार पीडि़त लोगों की थाने में आने के बाद उनकी शिकायत पर केस दर्ज नहीं करती है। जबकि परिवादों का आंकड़ा तो लाखों में हैं। अब पुलिस महानिदेशक ने भी माना है कि थानों में रिपोर्ट दर्ज नहीं करने संबंधित शिकायतें सही है। गौरतलब है कि गंभीर अपराध होने के बाद भी अगर पुलिस परिवादी का केस रजिस्टर्ड नहीं करती है तो उसमें सजा का प्रावधान भी है। केस दर्ज नहीं करने पर परिवादी संबंधित थानाधिकारी, एसपी व अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ केस कर सकता है।
करेंगे कार्रवाई
डीजीपी के आदेशों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति जिला एसपी व डीसीपी को केस दर्ज नहीं करने शिकायत करता है तो जिला एसपी द्वारा नियमानुसार तत्काल एसएचओ के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करनी पड़ेगी। इस कार्रवाई का रिकॉर्ड संबंधित एसएचओ की सर्विस रिकॉर्ड में दर्ज किया जाएगा। एसएचओ के खिलाफ 16 सीसीए या फिर 17 सीसीए के तहत चार्जशीट देकर कार्रवाई की जाएगी। ऐसे में पदोन्नति के दौरान सबंधित एसएचओ को विभागीय कार्रवाई के कारण वंचित रखना पड़ेगा। आदेशों के अनुसार रिपोर्ट लेने वाले पुलिसकर्मी व थानाधिकारी दोनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।