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रामरसिया दंगल में उमड़ा जनसैलाब

locationसवाई माधोपुरPublished: Feb 22, 2018 11:23:40 pm

Submitted by:

Abhishek ojha

रामरसिया दंगल में उमड़ा जनसैलाब

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ग्राम बैरना में रामरसिया की प्रस्तुति देती भदलाव की पार्टी।

छाण. बैरना में बुधवार को रामरसिया दंगल हुआ। अतिथि वीरेंद्रसिंह धाभाई संभाग प्रभारी भाजपा परिवार भरतपुर, विशिष्ट अतिथि समाजसेवी रामरतन चाड़, छात्रनेता भरत गुर्जर थे। अध्यक्षता रामकिशन चौधरी सरपंच अल्लापुर ने की। धाभाई ने समाज में फैली कुरीतियों पर प्रस्तुति देने की अपील की।
भदलाव की झोपड़ी के मेडिय़ा मदनलाल गुर्जर ने श्रीराम का बखान करते हुए रसिया प्रस्तुत कर किया। पीलेडी के भरत मेडिय़ा ने राम का राजतिलक की कथा पेश की तथा ठीकरया से नवल मेडिय़ा की गायक मंडली ने विश्वामित्र की गाथा प्रस्तुत की। स्थानीय पार्टी ने साडू माता की कथा सुनाई। मंच संचालन हेमराज पटेल ने किया।
भागवत कथा में मनाया नंदोत्सव
भाड़ौती. कस्बे में आशापुरी माता मंदिर में चल रही नौ दिवसीय भागवत कथा में धूमधाम से कृष्ण जन्मोत्सव नंदोत्सव मनाया गया। कथा व्यास पंडित अशोकाचार्य ने गजेंद्रमोक्ष का प्रसंग सुनाया व समुद्र मंथन के भावार्थ को समझाया। उन्होंने कहा कि हृदय रूपी समंदर में परमात्मा के नाम का मंथन करने पर चाहे कितनी भी बाधाएं आएं, लेकिन बाधाओं से घबराना नहीं चाहिए।
प्रभु के नाम का सहारा लेते रहोगे तो अमृत रूपी आनंद की प्राप्ति हो जाएगी। श्रीराम जन्म एवं मर्यादा पुरुषोत्तम रामजी की लीला व कार्य अनुकरण करने योग्य ही जीवन में अपनाना चाहिए। कृष्ण ने जो गीता में ज्ञान दिया है उसे जीवन में अपनाने से जीवन में उजाला हो जाएगा।
लोककथा : पेड़ और राजा
एक बार छत्रपति शिवाजी महाराज जंगल में शिकार करने जा रहे थे। अभी वे कुछ दूर ही आगे बढ़े थे कि एक पत्थर आकर उनके सिर पर लगा। शिवाजी क्रोधित हो उठे और इधर-उधर देखने लगे। पर उन्हें कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। तभी पेड़ों के पीछे से एक बुढिय़ा सामने आयी और बोली- ‘ये पत्थर मैंने फेंका था। ‘आपने ऐसा क्यों किया, शिवाजी ने पूछा तो बुढिय़ा बोली- ‘क्षमा कीजियेगा महाराज, फेंका तो था।
पर मैं तो आम के इस पेड़ से कुछ आम तोडऩा चाहती थी। बूढ़ी होने के कारण मैं इस पर चढ़ नहीं सकती, इसलिए पत्थर मारकर फल तोड़ रही थी। गलती से वो पत्थर आपको जा लगा। निश्चित ही कोई साधारण व्यक्ति ऐसी गलती से क्रोधित हो उठता और गलती करने वाले को सजा देता।
पर शिवाजी तो बेहद उदारदिल थे, भला वे ऐसा कैसे करते। उन्होंने सोचा, ‘यदि यह साधारण-सा पेड़ इतना सहनशील और दयालु हो सकता है, जो मारने वाले को भी मीठे फल देता है तो मैं एक राजा होकर सहनशील और दयालु क्यों नहीं हो सकता? ऐसा सोचते हुए उन्होंने बुढिय़ा को कुछ स्वर्ण मुद्राएं भेंट कर दीं।
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