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कभी गंजीफे से भी होती थी सवाईमाधोपुर की पहचान

locationसवाई माधोपुरPublished: Jan 19, 2022 09:17:55 pm

Submitted by:

Subhash

सवाईमाधोपुर स्थापना दिवस विशेष….

कभी गंजीफे से भी होती थी सवाईमाधोपुर की पहचान

कभी गंजीफे से भी होती थी सवाईमाधोपुर की पहचान

सवाईमाधोपुर.
बहुत कम लोग यह जानते हैं कि रियासतकालीन समय में सवाईमाधोपुर गंजीफा निर्माण का भी बड़ा केन्द्र था। यहीं से गंजीफे अन्य नगरों में भेजे जाते थे। बाद में ये जयपुर और उदयपुर में भी बनने लगे थे। राज्स्थान में सवाईमाधोपुर के गंजीफो भी बहुत मांग थी। लेकिन समय के साथ गंजीफो का खेल बंद हो गया और सवाईमाधोपुर में गंजीफो की छपाई का काम भी बंद हो गया।
राजपरिवारों का खेल था गंजीफा
इतिहासकार प्रभाशंकर उपाध्याय के अनुसार मध्यकाल से बीसवीं सदी के प्रारंभ तक राज परिवारों विशेषकर रनिवासों में गंजीफा खेला जाता था। गंजीफे गोल आकृति में बना करते थे। ये लुगदी से बनते थे। आम जन के लिए इन्हें लाख से आकार और रंग दिया जाता था। राजपरिवारों के लिए बनने वाले गंजीफों में हाथी दांत तथा सीपीयों का उपयोग किया जाता था। ये संख्या में 108 होते थे।
समय के साथ बदला आकार
उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों के आगमन के ताश का खेल आने पर गंजीफा खेलने का प्रचलन विलुप्त होता चला गया। ताश के पत्तों की संख्या 52 होती है। ताश के पत्तों का प्रभाव गंजीफा निर्माण उद्योग पर भी पड़ा तथा ये भी अपना गोल रूप छोडकऱ ताश के पत्तों जैसे बनने लगे।
दशावतारों के चित्र होते थे गंजीफो पर
ताश के पत्तों पर जिस तरह गुलामएबेगमए बादशाह के चित्र अंकित होते है। वहीं पूर्व में बनने वाले गंजीफो पर गुलाम,बेगम, बादशाह के चित्र के स्थान पर दशावतारों के चित्र अंकित किए जाने लगे। पूर्व में जिले में गंजीफे की छपाई का काम भी होता था लेकिन बाद में यह बंद हो गया।
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