निर्वाचन अधिकारी त्रिलोक चंद बैरवा ने बताया कि कार्यकारिणी का गठन अभिभाषक संघ के अधिवक्ताओं द्वारा विचार विमर्श कर निर्विरोध निर्वाचित की गई । इस मौके पर पूर्व अभिभाषक संघ अध्यक्ष रमेश गौत्तम एवं पूर्व सचिव रविशंकर अग्रवाल नें नवनिर्वाचित कार्यकारिणी को बधाई दी।
इस मौके पर वरिष्ठ अभिवक्ता रघुनाथ चौधरी, नन्दकिशोर सीठा, हनुमान चौधरी, हरिलाल बैरवा, कुलदीप सिंह जादौन, डिग्गी सिंघल,चन्द्रशेखर गौत्तम, दिलीप सिंह राठौड़, ज्ञानसिंह चौधरी, ललित चौधरी, धर्मेन्द चौधरी,रामजीलाल चौधरी, अशोक शुक्ला, विजय चौधरी, हरिमोहन चौधरी, हजारीलाल बैरवा, आदि कई अधिवक्ता मौजूद थे।
लोककथा : कोई कम नहीं
एक शाम मशहूर दार्शनिक रूमी दरिया किनारे कुछ लिख रहे थे। उनके इर्द-गिर्द उनकी खुद की लिखी किताबों का ढेर लगा था। उस दौर में किताबें हाथ से लिखी जाती थीं। रूमी इतने ऊंचे दर्जे के विद्वान थे कि उनसे दूर-दूर से लोग पढऩे आते थे। वह लोगों को पूरी रुचि लेकर पढ़ाते भी थे। उनके लिखने के दौरान शम्स तबरेज उनके पास आए। शम्स तबरेज बिल्कुल फटेहाल, उजड़े बालों के साथ उनके सामने आकर बैठ गए।
रूमी ने उनको देख उनका हाल पूछा और फिर लिखने लगे। शम्स ने उनके इर्द-गिर्द किताबों का ढेर देखा। वह रूमी जैसे विद्वान तो नहीं थे, फिर भी पूछ बैठे- ‘इन किताबों में क्या है। अपनी विद्वता पर गर्व करने वाले रूमी ने कहा- ‘इसमें जो है वह तुम नहीं जानते। यह इल्म तुम्हारे बस का नहीं।शम्स तबरेज ने फौरन किताबों को उठाया और दरिया में फेंक दिया। अपनी बरसों की मेहनत को पानी में डूबता देख रूमी चीख पड़े।
बोले- ‘यह क्या किया शम्स! मेरी सारी मेहनत तबाह कर दी। शम्स मुस्कराए और कहा- ‘ठंड रख रूमी। फिर दरिया में हाथ डाल एक किताब निकाली। एक के बाद एक किताबें पानी में हाथ डालकर दरिया से निकाल दीं। रूमी की आंखें खुली की खुली रह गईं, जब एक भी किताब न भीगी और न खराब हुई। उन्होंने शम्स से कहा- ‘यह क्या है शम्स, और कौनसा इल्म है!
शम्स ने कहा- ‘यह वह जो तुम्हें नहीं आता। यह इल्म तुम्हारी समझ से बाहर है। यह कहते हुए शम्स वहां से चले गए। इसीलिए कहा जाता है किसी को कम मत समझो। ईश्वर ने हर एक को खूबियां दी हैं। सबकी
इज्जत करें।
इज्जत करें।