लेखिका दिव्या विजय की कहानी पर केन्द्रित आलेख में योगेन्द्र आहूजा ने कहा कि किसी कहानी के एक से अधिक पाठ संभव हैं। एक अच्छी कहानी में नई पाठ पद्धतियों को आविष्कृत करने की संभावना होती है। सिनीवाली शर्मा की कहानी महादान पर केन्द्रित आधार वक्तव्य में हिमांशु पंडया ने कहा कि यह कहानी के परंपरागत सरल रेखीय विन्यास की कहानी है, जिसमें आगे की घटनाओं के पुर्वानुमान की संभावना होती है। दोनों कहानियों पर समापन वक्तव्य में ह्रषिकेश सुलभ ने विस्तार से टिप्पणी की। दिव्या विजय की कहानी पर उन्होंने कहा की इस कहानी की आलोचना के उपकरण स्वयं कहानी के भीतर मौजूद हैं। इसमें कथानक का संकट है कथ्य का नहीं। सिन्नी वाली शर्मा की महादान कहानी का यथार्थ पुर्वानुमानित है।
फिर भी उसे पढऩे की उत्सुकता बनी रहती है। जयप्रकाश ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि दिव्या विजय की कहानी में पित्तृ सत्ता, पूंजी की सत्ता और बाजार की सत्ता का मिलाजुला विमर्श है। सिन्नी वाली की कहानी पर उनकी राय थी की यह कहानी परंपरागत शिल्प में ग्रामीण जीवन के चौंका देने वाले यथार्थ को पकड़ती है। इसीप्रकार उपन्यासकार रामकुमार सिंह, अलोचक रविभूषण, जितेन्द्र भाटिया, कथाकार सत्यनारायण,आनंद हर्षल सुभाष मिश्र,जगदीश सौरभ, विनोद पदरज ने भी कहानियों के संदर्भ में अपनी बात कही। चर्चा में युवा कहानीकार अभिषेक पांडे, अक्षत पाठक ने भी भाग लिया। गोष्ठी के अंत में दिव्या विजय व सिन्नी वाली शर्मा ने अपनी कहानियों से संबंधित अनुभव साझा किए।