scriptयादों के जहन आज भी जिंदा है सवाईमाधोपुर के गंजीफे | The memories of memories are still alive in Sawaimadhopur | Patrika News

यादों के जहन आज भी जिंदा है सवाईमाधोपुर के गंजीफे

locationसवाई माधोपुरPublished: Jan 22, 2020 12:21:20 pm

Submitted by:

Shubham Mittal

108 पत्तों का खेल होता था गंजीफा

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यादों के जहन आज भी जिंदा है सवाईमाधोपुर के गंजीफे,यादों के जहन आज भी जिंदा है सवाईमाधोपुर के गंजीफे

सवाईमाधोपुर.बहुत कम लोग यह जानते हैं कि रियासतकालीन समय में सवाईमाधोपुर गंजीफा निर्माण का भी बड़ा केन्द्र था। यहीं से गंजीफे अन्य नगरों में भेजे जाते थे। बाद में ये जयपुर और उदयपुर में भी बनने लगे थे। राज्स्थान में सवाईमाधोपुर के गंजीफो भी बहुत मांग थी। लेकिन समय के साथ गंजीफो का खेल बंद हो गया और सवाईमाधोपुर में गंजीफो की छपाई का काम भी बंद हो गया।
राजपरिवारों का खेल था गंजीफा
इतिहासकार प्रभाशंकर उपाध्याय के अनुसार मध्यकाल से बीसवीं सदी के प्रारंभ तक राज परिवारों विशेषकर रनिवासों में गंजीफा खेला जाता था। गंजीफे गोल आकृति में बना करते थे। ये लुगदी से बनते थे। आम जन के लिए इन्हें लाख से आकार और रंग दिया जाता था। राजपरिवारों के लिए बनने वाले गंजीफों में हाथी दांत तथा सीपीयों का उपयोग किया जाता था। ये संख्या में 108 होते थे।
समय के साथ बदला आकार
उन्नीसवीं सदी में अंग्रेजों के आगमन के ताश का खेल आने पर गंजीफा खेलने का प्रचलन विलुप्त होता चला गया। ताश के पत्तों की संख्या 52 होती है। ताश के पत्तों का प्रभाव गंजीफा निर्माण उद्योग पर भी पड़ा तथा ये भी अपना गोल रूप छोड़कर ताश के पत्तों जैसे बनने लगे।
दशावतारों के चित्र होते थे गंजीफो पर
ताश के पत्तों पर जिस तरह गुलाम,बेगम, बादशाह के चित्र अंकित होते है। वहीं पूर्व में बनने वाले गंजीफो पर गुलाम,बेगम, बादशाह के चित्र के स्थान पर दशावतारों के चित्र अंकित किए जाने लगे।
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