फिशिंग केट: इसे मछलीमार बिल्ली भी कहते हैं। 2016 में बैरदा वन क्षेत्र में वन विभाग के कैमरा ट्रेप में ये बिल्ली ट्रेस हुई थी। इनकी संख्या बहुत कम है, इन्हें देखना बहुत दुर्लभ है।
केरेकल : केरेकल को स्याहगोश भी कहते हैं। क्योंकि इसके कान स्याह रंग के होते हैं। गुजरात के कच्छ, भरतपुर के घना व रणथम्भौर में उनके लिए उत्तम स्थान है। रणथम्भौर में बाघों से आधी संख्या इनकी है। पक्षियों का शिकार करने में माहिर होते हैं।
डेजर्ट केट : इसे मरू बिल्ली भी कहते हैं। ये ज्यादातर मरुस्थल एरिया में दिखती है। इसे रणथम्भौर में कार्यरत विलेज वाइल्ड लाइफ वॉचर ने यहां इस बिल्ली को फोटो ट्रेप कैमरों में कई बार ट्रेप किया है।
जंगल कैट : ये सबसे सामान्य रूप से दिखाई देती है। खेतों में चूहे खाती है। इसका कारण इसे किसान मित्र भी कहते हैं।
बघेरा : ये भी बिग केट प्रजाति में बाघ के ठीक बाद छोटा जानवर माना जाता है। ये चालाक व शर्मिला जानवर माना जाता है। रणथम्भौर में इनकी संख्या करीब 130 है। यहां इनकी अच्छी खासी साइटिंग होती है।
फिशिंग केट : इसे मछलीमार बिल्ली भी कहते हैं। 2016 में बैरदा वन क्षेत्र में वन विभाग के कैमरा ट्रेप में ये बिल्ली ट्रेस हुई थी। इनकी संख्या बहुत कम है, इन्हें देखना बहुत दुर्लभ है।
बाघ : बिग केट प्रजाति का सबसे बड़ा जीव है। वहीं दुनिया में सबसे ज्यादा पसंद किया जाना वाला वन्यजीव है। रणथम्भौर में करीब 77 बाघ-बाघिन हैं। दुनिया भर से लोग इन्हें देखने आते हैं।