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VIDEO : यहा भरता है दो दिवसीय महाशिवरात्रि का मेला,आज भी जीवंत है 250 साल पुरानी परम्परा

locationसवाई माधोपुरPublished: Mar 05, 2019 12:18:59 pm

Submitted by:

Vijay Kumar Joliya

यहा भरता है दो दिवसीय महाशिवरात्रि का मेला,आज भी जीवंत है 250 साल पुरानी परम्परा
 

sawaimadhopur

Mahashivaratri in sawaimadhopur

सवाईमाधोपुर के पास शिवाड़ कस्बे में द्वादश ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर महादेव को माना जाता है, लेकिन सवाईमाधोपुर के शहर क्षेत्र में सोरती बाजार में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि अपने आप में अलग पहचान बनाए हुए है।
हर जिले, हर शहर, हर गांव व हर कस्बे में महाशिवरात्रि मनाने का तरीका अलग है। सवाईमाधोपुर के पास शिवाड़ कस्बे में द्वादश ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर महादेव को माना जाता है, लेकिन सवाईमाधोपुर के शहर क्षेत्र में सोरती बाजार में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि अपने आप में अलग पहचान बनाए हुए है। भगवान शिव व पार्वती के विवाह पर मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि पर यहां भगवान शिव की सजीव बारात निकाली जाती है। जिसे देखने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ता है।
महाशिवरात्रि विशेष…

यहां आज भी जीवंत है 250 साल पुरानी परम्परा एंकर… हर जिले, हर शहर, हर गांव व हर कस्बे में महाशिवरात्रि मनाने का तरीका अलग है। सवाईमाधोपुर के पास शिवाड़ कस्बे में द्वादश ज्योतिर्लिंग घुश्मेश्वर महादेव को माना जाता है, लेकिन सवाईमाधोपुर के शहर क्षेत्र में सोरती बाजार में मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि अपने आप में अलग पहचान बनाए हुए है। भगवान शिव व पार्वती के विवाह पर मनाई जाने वाली महाशिवरात्रि पर यहां भगवान शिव की सजीव बारात निकाली जाती है। जिसे देखने के लिए पूरा शहर उमड़ पड़ता है।
सोरती बाजार के करीब 250 साल पुराने विजयेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि पर शिव बारात निकालने की परम्परा चली आ रही है। यहां पहले मंदिर में भगवान शिव की पूजा होती है और उसके बाद भगवान शिव का रूप धारण करने वाले व्यक्ति का शृंगार किया जाता है। इसके बाद बाजार में बारात निकाली जाती है। इस रूप को कई लोगों ने धारण किया। 76 वर्ष के कैलाश चंद शर्मा भी इनमें से एक हैं। वह बताते है कि उनसे पहले भी कई लोगों ने यह परम्परा जारी रखी है। वह करीब 15 से 16 साल तक यह रूप धरते आए हैं।
कैलाश चंद शर्मा का कहना है कि मंदिर की इस परम्परा को उनका परिवार व आसपास के लोग ही जीवंत रखे हुए हैं। सवाईमाधोपुर की इस अनूठी परम्परा व मंदिर के सहयोग के लिए प्रशासन की ओर से कोई सहयोग नहीं मिल रहा है। स्वयं की जेब व लोगों की ओर से मिलने वाले थोड़े बहुत आर्थिक सहयोग से ही काम चल रहा है।
कैलाश चंद शर्मा के बाद वर्तमान में चतुर्भुज शर्मा महादेव का रूप धारण कर रहे हैं। महाशिवरात्रि के दिन शाम को शर्मा का शृंगार किया जाता है। इसमें इनके सिर पर मुकुट बनाया जाता है। जिसका वजन करीब 25 किलो होता है। शरीर पर भस्म लगाई जाती है। ठण्डाई पिलाई जाती है। यह क्रम दो दिनों तक चलता है। मुकुट के वजन के कारण उन्हें 20 दिन तक आराम करना पड़ता है। उनका कहना है कि यह कार्य वह भगवान शिव पर अपनी आस्था के चलते करते हैं और जब तक शरीर साथ देगा वह यह कार्य करते रहेंगे।

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