डॉ. स्टेनली ने 1960 के दशक में फिलाडेल्फिया के विस्टार इंस्टीट्यूट में रूबेला वैक्सीन का आविष्कार किया था। रुबैला को जर्मन खसरा भी कहते हैं। यह बीमारी तब पूरे अमरीका और यूरोप में फैल गई थी। इसके चलते अमरीका-यूरोप में उस समय पैदा हुए करीब 12 हजार शिशुओं में बहरेपन, नेत्रहीनता या दोनों दोष थे। दुनिया भर में बच्चों को लगाए जाने वाले एमएमआर (मीजल्स, मम्प्स और रुबैला) टीके में आर का प्रतिनिधित्व करता है। एक साइंस मैगजीन को दिए साक्षात्कार में उन्होंने रुबैला वैक्सीन, कोरोनावायरस और संभावित कोरोना वैक्सीन के बारे में बताया।
प्रश्न: रुबेला और कोविड-19 में क्या समानता है?
डॉ.स्टैनली: रुबैला से हर आयुवर्ग के लोग संक्रमित हुए थे लेकिन यह विशेषकर गर्भवती महिलाओं और उसके भ्रूण या गर्भ में पल रहे शिशु के लिए ज्यादा घातक साबित हो रहा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोनावायरस भी महिलाओं के लिए ज्यादा घातक है, लेकिन यह अब तक लाखों लोगों को मार चुका है। रुइैला महामारी के समय फिलाडेल्फिया में १ फीसदी गर्भवती महिलाएं और शिशु रूबैला से प्रभावित थे।
डॉ.स्टैनली: रुबैला से हर आयुवर्ग के लोग संक्रमित हुए थे लेकिन यह विशेषकर गर्भवती महिलाओं और उसके भ्रूण या गर्भ में पल रहे शिशु के लिए ज्यादा घातक साबित हो रहा था। वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोनावायरस भी महिलाओं के लिए ज्यादा घातक है, लेकिन यह अब तक लाखों लोगों को मार चुका है। रुइैला महामारी के समय फिलाडेल्फिया में १ फीसदी गर्भवती महिलाएं और शिशु रूबैला से प्रभावित थे।
प्रश्न: क्या कोविड-19 वायरस के संक्रमण में कमी आ रही है?
डॉ.स्टैनली: ‘फ्लैटनिंग द कर्व’ का मतलब है कि वायरस का संक्रमण कमजोर पड़ रहा है। अगर हम वायरस को एक-दूसरे तक पहुंचने से पहले ही उसकी चेन तोड़ दें तो संक्रमित लोगों की संख्या को कम कर सकते हैं। इसमें सेल्फ आइसोलेशन और क्वारनटाइन से 70 से 80 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है।
प्रश्न: आप कोरोना वायरस की वैक्सीन कैसे विकसित करेंगे?
डॉ.स्टैनली: ‘फ्लैटनिंग द कर्व’ का मतलब है कि वायरस का संक्रमण कमजोर पड़ रहा है। अगर हम वायरस को एक-दूसरे तक पहुंचने से पहले ही उसकी चेन तोड़ दें तो संक्रमित लोगों की संख्या को कम कर सकते हैं। इसमें सेल्फ आइसोलेशन और क्वारनटाइन से 70 से 80 फीसदी तक कमी लाई जा सकती है।
प्रश्न: आप कोरोना वायरस की वैक्सीन कैसे विकसित करेंगे?
प्रश्न: आप कोरोना वायरस की वैक्सीन कैसे विकसित करेंगे?
डॉ.स्टैनली: मैंने ओरल पोलियो वैक्सीन पर बहुत काम किया था और इसलिए जानता था कि किसी वायरस को कैसे कमजोर किया जाए। जब मैंने रूबेला वैक्सीन विकसित करने के लिए प्रोजेक्ट लॉन्च किया तो अनिवार्य रूप से यह वायरस को कमजोर करने के लिए किया गया था। ताकि वह लोगों को प्राकृतिक वायरस की तरह जन्मजात विकृतियां देने की बजाय लोगों को प्रतिरक्षित करता हो। आज कोरोना वैक्सीन के लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं। 60 के दशक में रुबैला का टीका विकसित करने के लिए भी ऐसी ही होड़ मची थी। 40 साल बाद आज हमारे पास टीके बनाने की कई विधियां हैं। मुझे उम्मीद है कि हम जल्द ही कोरोना वायरस के लिए एक कारगर टीका विकसित कर लेंगे। लेकिन लोगों को भी यह समझना होगा कि यह टीका रात भर में विकसित नहीं हो सकता। एक टीके को सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए तैयार करने में सालों गुजर जाते हैं।
डॉ.स्टैनली: मैंने ओरल पोलियो वैक्सीन पर बहुत काम किया था और इसलिए जानता था कि किसी वायरस को कैसे कमजोर किया जाए। जब मैंने रूबेला वैक्सीन विकसित करने के लिए प्रोजेक्ट लॉन्च किया तो अनिवार्य रूप से यह वायरस को कमजोर करने के लिए किया गया था। ताकि वह लोगों को प्राकृतिक वायरस की तरह जन्मजात विकृतियां देने की बजाय लोगों को प्रतिरक्षित करता हो। आज कोरोना वैक्सीन के लिए पूरी दुनिया के वैज्ञानिक प्रयास कर रहे हैं। 60 के दशक में रुबैला का टीका विकसित करने के लिए भी ऐसी ही होड़ मची थी। 40 साल बाद आज हमारे पास टीके बनाने की कई विधियां हैं। मुझे उम्मीद है कि हम जल्द ही कोरोना वायरस के लिए एक कारगर टीका विकसित कर लेंगे। लेकिन लोगों को भी यह समझना होगा कि यह टीका रात भर में विकसित नहीं हो सकता। एक टीके को सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए तैयार करने में सालों गुजर जाते हैं।