एएसआई डाटा साइंस का कहना है कि इनका सॉफ्टवेयर इस्लामिक स्टेट की 94 फीसदी ऑनलाइन गतिविधियों का पता लगा सकता है। वो यह काम 99.995 फीसदी दक्षता से करने में सक्षम है। जिस कंटेंट पर सॉफ्टवेयर को संदेह या उसे पहचानने में दिक्कत होगी, उसे इंसानी फैसले के लिए छोड़ दिया जाएगा। इस तरह के टूल की पहले काफी आलोचना हो चुकी है। आलोचकों का कहना है कि यह ‘ओपन’ इंटरनेट के खिलाफ है। उनका ये भी कहना है कि ये वैसे भी वीडियो को बैन कर देगा और उनको भी जो इस तरह के मुद्दों पर बात करेगा।
सॉफ्टवेयर का एल्गोरिदम इस्लामिक स्टेट की गतिविधियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। सिलिकन वैली में बीबीसी से बात करते हुए गृह मंत्री अंबर रड ने कहा कि सॉफ्टवेयर का निर्माण चरमपंथी गतिविधियों पर सरकार के रोक लगाने के फैसले की ओर एक कदम है।
यह सॉफ्टवेयर ऐसी ही छोटी कंपनियों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। ऐसा माना जा रहा है एक दिन इन्हें इसके इस्तेमाल के लिए वाध्य किया जा सकता है। एक चैनल की रिपोर्ट के अनुसार गृह सचिव ने बताया है कि, ‘हम इस बात से इंकार नहीं कर रहे हैं कि जरूरत पड़ी तो हम इसके इस्तेमाल के लिए कानूनी कार्रवाई करेंगे।’ चरमपंथी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए अमरीका, ब्रिटेन सहित कई देशों की सरकार, फेसबुक, गूगल और ट्विटर जैसी कंपनियां बीते दिन साथ-साथ आई थीं और इसे द ग्लोबल इंटरनेट फोरम का नाम दिया गया था। हालांकि चुनौती यह पता लगाना है कि जिदाही इंटरनेट के अब किस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करेंगे।