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भारतीय वैज्ञानिक बना रहा कीटों से प्रेरित ड्रोन जो जगह के अनुसार खुद को सिकोड़ भी सकेगा

locationजयपुरPublished: Nov 27, 2020 06:32:59 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

डॉ श्रीधर रवि भंवरे (बम्बलबी) से प्रेरित होकर अगली पीढ़ी के ड्रोन ‘यूएनएसडब्ल्यू’ विकसित कर रहे हैं

भारतीय वैज्ञानिक बना रहा कीटों से प्रेरित ड्रोन जो जगह के अनुसार खुद को सिकोड़ भी सकेगा

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जैव विकास के हजारों साल के क्रम में प्रकृति ने कुछ जीवों को बदलाव के साथ बहुत खास क्षमताओं से नवाजा है। आज के रोबोटिक्स शोधकर्ता इन जीवों से प्रेरित होकर इनकी शारीरिक इंजीनियरिंग को रोबोट्स और ड्रोन में बदल रहे हैं। आकार में छोटे लेकिन उतने ही ज्यादा कारगर इन अगली पीढ़ी के ड्रोनों पर काम करने वाले वैज्ञानिकों को विशेष रूप से मधुमक्खियों जैसे कीट बहुत ज्यादा पसंद हैं। जिस तरह से वे बिना टकराए तंग जगहों से उड़कर निकल जाते हैं वह इन रोबोटिक्स शोधकर्ताओं को ड्रोन को और अधिक एडवांस बनाने में मदद कर सकती है। इसी कल्पना को हकीकत में बदलने के लिए ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (UNSW) की एक टीम प्रयासरत है।
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लगातार सुधार रहे तकनीक
बीते कुछ सालों में ड्रोन अनुसंधान में कई दिलचस्प प्रगति देखी हैं, जिसमें वैज्ञानिकों ने मधुमक्खियों का शुरुआती बिंदु के रूप में इस्तेमाल किया गया है। हार्वर्ड का ‘रोबो बी’ 2013 में नियंत्रित उड़ान प्रदर्शित करने वाला दुनिया का पहला कीट के आकार का पंख वाला रोबोट था। लेकिन हाल ही में वैज्ञानिक ऐसे ड्रोन बनाने पर काम कर रहे हैं जो इन कीटों की तरह पानी में गोता लगाए और फिर सही-सलामत बाहर निकल आए।

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बिना रीढ़ के जीवों से प्रेरणा
फिलहाल, यूएनएसडब्ल्यू की टीम के शोधकर्ताओं का ध्यान भंवरों की ‘सेल्फ अवेयरनैस’ पर है। दरअसल, भंवरे हवा में उडऩे के दौरान तंग स्थानों से निकलते समय अपने शरीर को सिकोड़ लेते हैं और फिर सामान्य आकार में आ जाते हैं। अब शोधकर्ता इन कीटों की ऐसी खासियतों को ड्रोन में प्रोग्राम करने पर काम कर रहे हैं। इस शोध के प्रमुख लेखक डॉ. श्रीधर रवि का कहना है कि सूक्ष्म दिमाग वाले कीट भी बड़े आकार वाले जीवों की तरह अपने शरीर की शारीरिक बनावट को समझ सकते हैं और जटिल वातावरण में उड़ते समय इस जानकारी का उपयोग बाधाओं से बचने में करते हैं। रवि का कहना है कि यह पहली बार है जब इस तरह का व्यवहार बिना रीढ़ वाले किसी छोटे कीट में देखा गया है। हमने भंवरों का अध्ययन किया और पाया कि उन्हें एक सुरंग के माध्यम से गुजारने पर वे उड़ते समय अलग-अलग चौड़ाई के अनुसार अपने शरीर को सिकोड़कर उड़ सकते थे। ये स्थान उनके पंखों के व्यास से भी छोटे और संकुचित थे।

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ऐसी है कीटों की ‘फ्लाइंग टेक्नीक’
रवि के अनुसार, सुरंग में भंवरे ने संभावित अंतराल पर उड़ने की तंग जगहों को स्कैन किया और इन जगहों से उड़ने के दौरान या शरीर को सिकोडऩे से पहले इसका अपने दिमाग में एक डिटेल मैप बनाया। शोधकर्ताओं ने इसकी तुलना ठीक वैसे ही की जैसे हम किसी तंग दरवाजे या जगह से निकलने के लिए अपने कंधों को सिकोड़ लेते हैं। रवि का कहना है कि ये कीट प्रकृति की शानदार इंजीनियरिंग का नमूना हैं। इतने सूक्ष्म दिमाग के बावजूद वे जटिल काम करने में सक्षम होते हैं। हजारों सालों के विकासक्रम के दौरान प्रकृति ने इनके दिमाग में अद्भुत विशेषताओं की कोडिंग की है। हमारी चुनौती अब इस कोडिंग को अपने ड्रोन और रोबोट्स में व्यवहारिक रूप से इस्तेमाल करने की है। यह शोध अमरीका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज की प्रोसीडिंग्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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