कोरोनोवायरस जैसी महामारी का प्रकोप इतनी तेजी से उभरता है कि यह वैज्ञानिकों को इसका इलाज तक खोजने का मौका नहीं देता है। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि जल्द ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अथवा कृत्रिम बुद्धिमत्ता शोधकर्ताओं को त्वरित इलाज खोजने और महामारी की रोकथाम में संभावित मदद कर सकती है।
Covid-19 : वैज्ञानिक नहीं भविष्य में रोबोट्स बनाएंगे वायरस का टीका
बीते साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर से निकला कोरोना वायरस परिवार का नया सदस्य कोविड-19 नावेल कोरोना वायरस या SARS-COV-02 ने महज कुछ महीनो के अंतराल में ही चीन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, रूस, भारत, ब्रिटैन जैसे शक्तिशाली दक्षिण को घुटने पर ला दिया है। इन देशों के बड़े बड़े वैज्ञानिक अब तक इस वायरस का तोड़ नहीं ढूंढ पाएं है। वहीं इस विषाणु ने पूरी दुनिया में 97 लाख से ज़्यादा लोगों को संक्रमित किया है और इसके संक्रमण के कारण अब तक अमरीका, भारत, चीन, ब्रिटेन और ब्राज़ील देशों समेत पूरी दुनिया में करीब 5 लाख लोगों चुकी है। वैज्ञानिकों का कहना है की इस वायरस का टीका आने में अभी 12 से 18 महीने का समय लग सकता है।
हालांकि वर्तमान कोरोना प्रकोप से लडऩे में अब बहुत देर हो चुकी है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि अगली बार जब कोरोना या उसके जैसा कोई अन्य वायरस का प्रकोप सामने आएगा तब हम तैयार होंगे। दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence) उन सिरों को खोजने के लिए विशाल डेटा का विश्लेषण करने में सक्षम है जो यह निर्धारित करना आसान बनाते हैं कि महामारी के समय किस प्रकार के उपचार ज्यादा कारगर हो सकते हैं या इलाज के लिए किन प्रयोगों को आजमा सकते हैं। सवाल यह है कि एआइ के लिए वह विशाल डेटा कब उपलब्ध हो सकेगा जो कोविड-19 (SARS-COV-02) जैसी नई उभरती बीमारी के बारे में जानकारी दे सके। बीते साल दिसंबर में चीन के वुहान शहर में सामने के बाद महज दो महीने में ही इस बीमारी ने दुनिया भर के अलग-अलग देशों में 75 हजार से भी अधिक लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लिया था। हालांकि वैज्ञानिकों ने संक्रमण के सामने आने के पहले सप्ताह में ही कोरोना वायरस के जीन सीक्वेंस (RNA) का पता लगाने में सफलता हासिल कर ली है। जो दर्शाता है कि किसी भी प्रकोप या महामारी के फैलने से पहले अध्ययन के लिए पर्याप्त डेटा उपलब्ध होता है।
18 महीने में होगी Vaccine तैयार इंग्लैंड स्थित स्टार्टअप एक्ससेंटेनिया लिमिटेड, ऑक्सफोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एन्ड्रयू हॉपकिंस महामारियों के समय दवाओं की खोज के लिए मशीनी बुद्धिमत्ता को प्रशिक्षित करने का काम करते हैं। उनका मानना है कि एआइ की मदद से कोविड-19 जैसी बीमारियों के लिए संभावित टीके या दवा की क्लीनिकल प रीक्षण अगले दशक में 18 से 24 महीने के भीतर किया जा सकेगा। उनकी कंपनी ने ऐसी बीमारियों के संभावित इलाज के लिए एक नया नुस्खा तैयार किया है जो प्रारंभिक अनुसंधान चरण में एक वर्ष से कम समय में प्रयोगशाला परीक्षण के लिए तैयार है। कंपनी के मुताबिक यह औसत दवाइयों से करीब पांच गुना तेज है।
दवा अनुसन्धान में एआई का उपयोग बढ़ा ऐसे ही कैम्ब्रिज स्थित हीलक्स कंपनी भी दवा अनुसंधान में एआइ का उपयोग करती है। लेकिन यह मौजूद दवाओं के अलग-अलग बीमारियों में मुमकिन इलाज को ढूंढने के लिए एआइ का उपयोग करती है। दोनों कंपनियां अपने एल्गोरिदम को मैगजीन, बायोमेडिकल डेटज्ञबेस और क्लीनिकल परीक्षणों से भरपूर सूचना उपलब्ध करवाती हैं। जिसका उपयोग कर एआइ बीमारियों के लिए नए उपचार का सुझाव देने में मदद करती है। कंपनी मौजूद दवाओं के तत्त्वों के आधार पर इसे बीमारी के लक्ष्णों से मिलाती है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एल्गोरिदम आज पहले से ही उन बीमारियों के लिए दवाएं ढूंढने का काम कर रही है जिनके बारे में हम जानते हैं। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने एआइ की मदद से एक नया शक्तिशाली एंटीबायोटिक कंपाउंड बनाया है जो खतरनाक वायरस को भी मार सकता है। उन बैक्टीरिया को भी जो वर्तमान में उपचार प्रतिरोधी हैं।
पहले से करनी होगी तैयारी लेकिन सफल होने के लिए एआई-आधारित ड्रग डवलपर्स को पहले से योजना बनानी होगी, ताकि भविष्य में समस्या पैदा करने के लिए वायरस जीनोम की संभावना बढ़ाई जा सके। एक और बाधा योग्य कर्मचारियों को ढूंढना है। वेंचर कैपिटल फर्म एटमिको की पूर्व सर्जन इरीना हाइवा ने कहा कि एआई और बायोलॉजी में ऐसे लोगों को खोजना बहुत मुश्किल है जो इस तरह की तकनीक पर काम कर सकें। क्योंकि सिर्फ एक एआई इंजीनियर होना ही पर्याप्त नहीं है, उसे जीव विज्ञान के अनुप्रयोगों को भी समझना होगा।