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विज्ञान और टेक्नोलॉजी

कॉफी से चलेंगी लंदन की बसें

लंदन स्थित टेक्नोलॉजी फर्म बायो-बीन लिमिटेड ने कहा है कि एक साल में एक बस को ऊर्जा प्रदान करने के लिए पर्याप्त कॉफी का उत्पादन किया गया है।

Nov 20, 2017 / 10:10 pm

जमील खान

London Bus

Bus

लंदन। कॉफी से निकाले गए कचरे के तेल का इस्तेमाल कर लंदन की बसों को सोमवार से ऊर्जा दी जाने लगी है। परिवहन अधिकारियों ने यह जानकारी दी। कॉफी के कचरे से निकाले गए तेल को डीजल में मिलाकर जैव ईंधन तैयार किया गया है और इसका इस्तेमाल सार्वजनिक परिवहन के लिए ईंधन के रूप में किया जा रहा है। ऐसा अभी प्रयोग के तौर पर किया गया है। प्रयोग सफल रहा तो इस जैव ईंधन का इस्तेमाल धड़ल्ले से होने लगेगा।

लंदन स्थित टेक्नोलॉजी फर्म बायो-बीन लिमिटेड ने कहा है कि एक साल में एक बस को ऊर्जा प्रदान करने के लिए पर्याप्त कॉफी का उत्पादन किया गया है। ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन (टीएफएल) परिवहन के दौरान धुआं उत्सर्जन को कम करने के लिए तेजी से जैव ईंधन के उपयोग की तरफ बढ़ा है। बायो-बीन के अनुसार, लंदन के लोग कॉफी से एक साल में 200,000 टन कचरा निकालते हैं।

कंपनी कॉफी की दुकानों और तत्काल कॉफी फैक्ट्रियों से कॉफी का कचरा लेती है, और अपनेकारखाने में इससे तेल निकालती है, जिसे बाद में मिश्रित बी20 जैव ईंधन में संसाधित किया जाता है। बायो-बीन के संस्थापक आर्थर केय ने कहा, यह इसका बेहतरीन उदाहरण है कि हम कचरे को एक संसाधन रूप में इस्तमाल कर सकते हैं।

 

अब, रोने से बनेगी बिजली
डबलिन। सब ठीक रहा तो आने वाले समय में आंसूओ की मदद से बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा। जी हां, आपने ठीक पढ़ा। आयरलैंड के वैज्ञानिकों ने एक आंसूओं से बिजली उत्पादन का तरीका ढूंढ़ निकाला है। भविष्य में आंसूओं को बिजली बनाने के औजार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा और यह तरीका ज्यादा महंगा भी नहीं पड़ेगा। यही नहीं, बिजली उत्पादन के लिए इस्तेमाल होने वाली गैर अक्षय ऊर्जा पर भी निर्भरता कम होगी।

वैज्ञानिकों का मानना है कि भविष्य में रोने से आप अपना मोबाइल फोन भी चार्ज कर सकेेंगे। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि आंसूओं में मौजूद एक प्रोटीन पर दबाव डालने से वास्तव में बिजली का उत्पादन होता है। बिजली उत्पादन के लिए दबाव डालकर जो प्रक्रिया अपनाई जाती है उसे डायरेक्ट पाईजोइलेक्ट्रीसिटी कहा जाता है।

रिपोर्टों के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने यह खोज दो इलेक्ट्रोड के बीच तत्वों को दबोचने के बाद उसमें से निकली ऊर्जा को नापा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य में मेडिकल पार्टस जैसे पेसमेकर को बनाने में मदद मिलेगी।

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