यह अकेले क्रिस जुंग की कहानी नहीं है। जीन डिस्कवरी चीन और हांगकांग में एक तेजी से उभरता हुआ बिजनेस बन चुका है। इसके आधे से अधिक ग्राहक चीन से हैं जहां माता-पिता अपनी संतान की नैसर्गिक जन्मजात प्रतिभा को दरकिनार कर उसे अपने हिसाब से गुणी बनाना के लिए उत्सुक हैं। लेकिन इसी जुनून में वे एक बड़े पैमाने पर अनियमित व्यवसाय को भी बढ़ावा दे रहे हैं। दरअसल यह ‘हेलिकॉप्टर पैरेंटिंग’ का चीनी संस्करण है जिसमें गर्भ में या पैदा होने के कुछ महीनों बाद ही बच्चे के अनुवांशिक गुणों का पता कर उसके विलक्षण होने या न होने के बारे में पता किया जा रहा है। यह प्रवृत्ति चीनी माता-पिताओं की महत्त्वकांक्षाओं की पराकाष्ठा को दर्शाता है।
दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल करने वाला यह उपभोक्ताा आनुवंशिक परीक्षण व्यवसाय चीन में फलफूल रहा है। डेलावेयर स्थित शोध फर्म ग्लोबल मार्केट इनसाइट्स इंक के अनुसार पिछले साल डीएनए परीक्षण सेवाओं की बिक्री 2025 तक 41 मिलियन डॉलर से बढ़कर 135 मिलियन डॉलर हो जाएगी। वहीं बीजिंग स्थित कंसल्टेंसी ईओ इंटेलिजेंस जीन डिस्कवरी व्यवसाय के 2022 में 405 मिलियन डॉलर के बाजार होने का अनुमान लगा रहा हैं। ईओ इंटेलिजेंस का कहना है कि इस समय तक लगभग 60 मिलियन (6 करोड़) चीनी उपभोक्ता बीते साल 1.5 मिलियन (15 लाख) लोगों की तुलना में डीएनए परीक्षण किट का उपयोग करेंगे।
जीन डिस्कवरी कंपनियां दरअसल इस समय चीन में आधुनिक युग के ज्योतिषियों की भूमिका निभा रही हैं जहां वे डीएनए को अपने जादुई गोले के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं। चीनी ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म जस्टडायल डॉटकॉम और चीनी इंटरनेट सर्च इंजन ने दर्जनों कंपनियों के बारे में दिखाया जो शिशुओं और नवजात शिशुओं के लिए आनुवंशिक प्रतिभा परीक्षण की पेशकश करते हैं। इन कंपनियों का दावा है कि वे तर्क, गणित, खेल और यहां तक कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता तक हर चीज में अपने बच्चों की ‘संभावित प्रतिभाओं’ को उजागर करने में मदद कर सकते हैं। चीन में बीते साल 1.5 करोड़ बच्चों का gender भी पता किया गया था। जबकि इसका विरोध करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है कि यह अनुसंधान अभी प्रारंभिक चरण पर आधारित है जो अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं गया है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के जेनेटिस्ट और बिग डेटा इंस्टीट्यूट के निदेशक गिल मैक्वीन का कहना है कि ऐसा कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है जिसके बिना पर हम इन दावों की पुष्टि कर सकें। दरअसल 2016 में सख्त जनसंख्या नियंत्रण कानूनों को निरस्त किए जाने के बाद भी अधिकांश चीनी माता-पिताओं के एक ही संतान है जो उनकी महत्वाकांक्षाओं का केंद्र बिंदु है। वहीं क्रिस जुंग का कहना है कि डीएनए परीक्षण के जरिए माता-पिता अपने बच्चों की प्रतिभा और कमियों के अनुसार भविष्य के लिए उनका मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।
चीन को दुनिया के सबसे वैज्ञानिक रूप से उन्नत देशों में से एक बनाना ताकि देश निर्विवाद रूप से विश्व शक्ति बन जाए, दरअसल राष्ट्रपति शी जिनपिंग की महत्वाकांक्षाओं का आधार है। इसलिए अंतरराष्ट्रीय नियमों को धता बताकर चीन की आनुवंशिक प्रगति अक्सर विज्ञान के बायोएथिक्स लांघकर मानव शरीर की संरचना से छेड़छाड़ करती है। बीते साल चीनी शोधकर्ता हे जियानकुई ने दुनिया का पहला आनुवंशिक रूप से परिवर्तित शिशु तैयार किया जो उनकी अपनी बेटी थी। यहां वैश्विक चिंता की बात यह है कि इस तरह के प्रयोगों से मानव हमेशा के लिए प्राकृतिक संरचना को खाकर ‘डिजायनर बेबी’ बनकर रह जाएगा। इतना ही नहीं चीनी वैज्ञानिक जीव-जंतुओं में क्रिस्पर तकनीक (आईआईएसपीआर या डीएनए बदलना) का उपयोग करके मानव डीएनए के साथ उनके दिमाग को इंजेक्ट करके ‘सुपर बीस्ट’ भी बना रहे हैं।
डीएनए दरअसल वह कोड है जिस पर मानव का शरीर रूपी सुपर कम्प्यूटर चलता है और यह निर्धारित करता है कि हम कौन हैं। लेकिन वैज्ञानिक अभी भी उस कोड को समझने के लिए काम कर रहे हैं जिसमें कई विशेषताएं एक या दो जीन के कारण नहीं बल्कि हजारों जीन के कारण है। एक व्यक्ति का अनुभव और उसके आसपास का वातावरण भी उसके व्यक्तित्त्व को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाता है। अल्बर्टा विश्वविद्यालय में एक जैवविज्ञानी और स्वास्थ्य नीति और आनुवंशिकी विशेषज्ञ टिमोथी कौलफील्ड का कहना है कि बच्चों का डीएनए परिवर्तन, जीन डिस्कवरी या उसमें बदलाव करवाने वाले ये माता-पिता दरअसल अपने बच्चों के जीवन का वास्तविक अर्थ बदल रहे हैं।