यह वैज्ञानिक कारण..
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की शोधकर्ता और नेशनल सेंटर फॉर अर्थ ऑब्जरवेशन की साइंटिस्ट सिमोन प्राउड के अनुसार, दरअसल, कई बार तूफानी बादलों में इतनी ताकत होती है कि ये वायुमंडल की सबसे ऊंची परत स्ट्रैटोस्फेयर के ऊपर तक पहुंच जाते हैं। विज्ञान की भाषा में इसे ‘ओवरशूटिंग टॉप’ कहते हैं। यहां हवाएं अत्यधिक ठंडी होती हैं। ओवरशूटिंग टॉप एक सामान्य प्रक्रिया है और तूफानी बादलों का तापमान स्ट्रैटोस्फेयर में यहां तूफानी बादलों का तापमान प्रति किमी 7 डिग्री सेल्सियस कम होता जाता है। यहां हवाएं इतनी बर्फीली होती हैं कि हम बर्फ के टुकड़े में तब्दील हो जाएंगे।
इंसानों के लिए शुभ संकेत नहीं
सिमोन का कहना है कि बीते कुछ दशकों में ऐसे बादलों का ग्राफ तेजी से बढ़ा है। पिछले तीन सालों में ही वैज्ञानिकों ने लगभग इसी तरह के ठंडे बादलों की लिस्ट तैयार की है। सिमोन ने यह भी बताया कि बादलों का इस सीमा तक ठंडा होना इंसानों के लिए बेहद खतरनाक है। इसके चलते बड़े आकार के ओलों की बारिश हो सकती है जिससे जनहानि हो सकती है। बहुत ज्यादा बिजलियां कड़क सकती हैं और गिर सकती हैं। वहीं बर्फीले चक्रवात या तूफान भी आ सकते हैं। सिमोन के अनुसार, बादलों का तापमान इस कदर माइनस डिग्री में जाने के पीछे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग है। शोध के निष्कर्ष जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
30 डिग्री ज्यादा ठंडा, 400 किमी व्यास
यूके के वैज्ञानिक बीते कई सालों से तूफान पैदा करने वाले बादलों का अध्ययन कर रहे हैं। 29 दिसंबर, 2018 को यह तूफानी बादल प्रशांत महासागर में दक्षिण की ओर नाउरू नामक स्थान पर जमीन से 18 किमी की ऊंचाई पर मौजूद था। सामान्य तूफानी बादलों की तुलना में 400 किमी व्यास का यह बादल 30 डिग्री अधिक ठंडा था।