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सूखे मौसम से बचने के लिए अफ्रीका छोड़ गए थे प्राचीन इंसान

Published: Oct 05, 2017 11:49:50 pm

आनुवांशिकी शोध से संकेत मिले हैं कि 70 हजार से 55 हजार साल पहले, लोग अफ्रीका से यूरेएशिया जाकर बस गए थे।

Climate Change

Dry Climate

वॉशिंगटन। मौसम में हो रहे बदलाव से बचने के लिए करीब 60 हजार साल पहले अफ्रीका को छोड़कर लोग दूसरी जगहों पर चले गए थे। यह बात एक शोध में कही गई है। आनुवांशिकी शोध से संकेत मिले हैं कि 70 हजार से 55 हजार साल पहले, लोग अफ्रीका से यूरेएशिया जाकर बस गए थे। पूर्व में शोधकर्ताओं का मानना था कि आज के मुकाबले पहले मौसम अच्छा था।

अमरीका की यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में एसोसिएट प्रोफेसर जेसिका टीएरनी ने कहा कि यह सवाल हमेशा उठता रहा है कि क्या मौसम में आए बदलाव के कारण ही हमारे पूर्वज अफ्रीका छोड़कर दूसरी जगह जाकर बस गए थे। शोध का नेतृत्व करने वाली जेसिका ने कहा कि डाटा से पता चलता है कि जब अधिकतर हमारे पूर्वज अफ्रीका छोड़कर गए, उस वक्त उत्तर पूर्व अफ्रीका में बहुत गर्मी थी और नमी नहीं थी।

शोधकर्ताओं ने पाया कि आज के मुकाबले, करीब 70 हजार साल पहले हॉर्न ऑफ अफ्रीका में मौसम नम चरण, जिसे ग्रीन सहारा भी कहा जाता था, से सूखे चरण में चला गया। यही नहीं, क्षेत्र में अत्यधिक ठंड भी पडऩे लगी।

प्रोफेसर जेसिका ने कहा कि हमारे डाटा से पता चलता है कि मौसम में आए बड़े बदलाव के बाद ही स्थानांतरण शुरू हुआ। संभवत: लोगों ने अपनी जमीन इसलिए छोड़ी क्योंकि मौसम में बदलाव हो रहा था। उन्होंने आगे कहा कि मौसम का नम से सूखे में बदलना एक बड़ी वजह रही हो जिसकी वजह से लोगों ने पलायन किया हो।

 

‘कूलिंग’ घटाएगी बिजली के बिल
बेंगलूरु। क्या आपने कभी सोचा है कि आपके मकान में एयर कंडीशनर बिना बिजली के काम कर सकता है? मगर अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि हां, ऐसा हो सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐसा रेडिएटिव स्काई कूलिंग की तकनीक से संभव है। कूलिंग टूल एक नई कोटिंग सामग्री से विकसित किया गया है। शोध रिपोर्ट के प्रमुख सह-लेखक यानी मुंबई में जन्मे आस्वथ रमन ने कहा, रेडिएटिव स्काई कूलिंग हमारे वातावरण की प्राकृतिक संपत्ति का लाभ उठाती है। यदि आप गर्मी को अवरक्त विकिरण के रूप में किसी ठंडी चीज में डाल सकते हैं, जैसे कि बाहरी अंतरिक्ष तो आप बिजली के बिना किसी भी एक इमारत को ठंडा कर सकते हैं। इसके बाद यह पूरे परिवेश में वायु तापमान को शांत करता है और गैर-वाष्पीकरणीय रास्ता प्रदान करता है।

इस आविष्कार को एक अत्यंत पतली बहुस्तरित सामग्री से बनाया गया है। साथ ही इसको विकसित करने का श्रेय रमन और सह-कार्यकर्ता एली गोल्डस्टीन और शानुई फैन को जाता है। वर्ष 2014 में इसका पहला परीक्षण किया गया था। यह सामग्री, सिलिकॉन डाइऑक्साइड की सात परतों और सिल्वर की पतली परत के शीर्ष पर हैफनियम ऑक्साइड से बना है। यह एक ही समय में दो चीजें करती हैं।

यह एक इमारत के भीतर अदृश्य अवरक्त गर्मी को ठंडे बाहरी अंतरिक्ष में (एक गर्मी सिंक के रूप में उपयोग कर) तब्दील करती है, साथ ही सूरज की रोशनी जो इमारत को गर्म करती है, उसे प्रतिबिंबित करती है।

लेखकों के मुताबिक, सामग्री ‘रेडिएटर और एक उत्कृष्ट दर्पण’ के रूप में कार्य करती है और भवन को कम एयर कंडीशनिंग की स्थिति में अधिक ठंडा करती है। सामग्री की आंतरिक संरचना एक आवृत्ति पर अवरक्त किरणों को विकीर्ण करने के लिए तैयार की जाती है, जिससे उन्हें इमारत के पास हवा को गर्म किए बिना अंतरिक्ष में पहुंचा देती है।

रमन ने कहा, भारतीय इमारतों, सुपरमार्केट, शीत भंडारण सुविधाओं, डेटा केंद्र, कार्यालय भवन, मॉल और अन्य व्यावसायिक भवनों में हमारा तरल पदार्थ कूलिंग पैनल वाणिज्यिक रेफ्रिजरेशन में बड़ा प्रभावी हो सकता है। साथ ही, पूरी तरह से बिजली मुक्त। जहां कम ठंडा की जरूरत है, उन ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक उपयोग करने के लिए कम से कम दो तकनीकी समस्याएं हल होनी चाहिए। पहली, इंजीनियरों को सबसे पहले यह पता होना चाहिए कि कोटिंग सामग्री में इमारत की गर्मी को कुशलतापूर्वक कैसे ले जाएं। इसके लिए वे एक पैनल बना सकते हैं।

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