वैज्ञानिकों की बढ़ रही चिंता
जैसे-जैसे जीन-एडिटिंग तकनीक आगे बढ़ रही है वैज्ञानिकों ने इसके नैतिक मुद्दों पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। मसलन क्या जीन एडिटिंग उपचार की बजाय कहीं समस्या को और तो नहीं बढ़ा देगी जिनके बारे में हमें अभी तक पता नहीं है। वहीं एक बड़ी चिंता यह भी है कि कहीं यह मानव जनित बदलााव हमारी अगली पीढ़ी तक न चला जाए और हमेशा के लिए हमारे सामूहिक मानव जीनोम को बदल दे। बीते साल चीनी शोधकर्ता हे जियानकुई ने दुनिया का पहला आनुवंशिक रूप से परिवर्तित शिशु तैयार किया जो उनकी अपनी बेटी थी। यहां वैश्विक चिंता की बात यह है कि इस तरह के प्रयोगों से मानव हमेशा के लिए प्राकृतिक संरचना को खाकर ‘डिजायनर बेबी’ बनकर रह जाएगा।
जैसे-जैसे जीन-एडिटिंग तकनीक आगे बढ़ रही है वैज्ञानिकों ने इसके नैतिक मुद्दों पर भी सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। मसलन क्या जीन एडिटिंग उपचार की बजाय कहीं समस्या को और तो नहीं बढ़ा देगी जिनके बारे में हमें अभी तक पता नहीं है। वहीं एक बड़ी चिंता यह भी है कि कहीं यह मानव जनित बदलााव हमारी अगली पीढ़ी तक न चला जाए और हमेशा के लिए हमारे सामूहिक मानव जीनोम को बदल दे। बीते साल चीनी शोधकर्ता हे जियानकुई ने दुनिया का पहला आनुवंशिक रूप से परिवर्तित शिशु तैयार किया जो उनकी अपनी बेटी थी। यहां वैश्विक चिंता की बात यह है कि इस तरह के प्रयोगों से मानव हमेशा के लिए प्राकृतिक संरचना को खाकर ‘डिजायनर बेबी’ बनकर रह जाएगा।
क्या हमेशा के लिए बदल जाएगा मानव
जीन थेरेपी में कई चीजें गलत हो सकती हैं, लेकिन बायोएथिसिस्ट मानव शरीर की जर्म-लाइन कोशिकाओं जैसे शुक्राणु और अंडाणु को संपादित करने की संभावनाओं के बारे में अधिक चिंता कर रहे हैं। क्योंकि संशोधित जीन भावी पीढिय़ों में भी नजर आएगा। इससे कुछ आश्चर्यजनक लाभ भी हो सकते हैं जैसे हम मानव जीन में एचआईवी संक्रमण के जन्मजात प्रतिरोध वाले दुर्लभ उत्परिवर्तन के जरिए एड्स की समस्या को हल कर सकते हैं। लेकिन यह बहुत दूर की कौड़ी है और वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि उन्हें अन्य तकनीकों के पूर्व परिणामों पर भी गौर करना चाहिए। क्योंकि इंटरनेट और फेसबुक कभी लोगों को जोडऩे के लिए एक मंच के रूप में विकसित किए गए थे लेकिन आज ये अप्रत्याशित रूप से चरमपंथ के साधन के रूप में काम कर रहे हैं। वहीं जीन एडिटिंग तकनीक अपरिवर्तनीय रूप से मानव होने के हमारे अनुभव को भी बदल सकती है।
जीन थेरेपी में कई चीजें गलत हो सकती हैं, लेकिन बायोएथिसिस्ट मानव शरीर की जर्म-लाइन कोशिकाओं जैसे शुक्राणु और अंडाणु को संपादित करने की संभावनाओं के बारे में अधिक चिंता कर रहे हैं। क्योंकि संशोधित जीन भावी पीढिय़ों में भी नजर आएगा। इससे कुछ आश्चर्यजनक लाभ भी हो सकते हैं जैसे हम मानव जीन में एचआईवी संक्रमण के जन्मजात प्रतिरोध वाले दुर्लभ उत्परिवर्तन के जरिए एड्स की समस्या को हल कर सकते हैं। लेकिन यह बहुत दूर की कौड़ी है और वैज्ञानिक इस बात पर एकमत हैं कि उन्हें अन्य तकनीकों के पूर्व परिणामों पर भी गौर करना चाहिए। क्योंकि इंटरनेट और फेसबुक कभी लोगों को जोडऩे के लिए एक मंच के रूप में विकसित किए गए थे लेकिन आज ये अप्रत्याशित रूप से चरमपंथ के साधन के रूप में काम कर रहे हैं। वहीं जीन एडिटिंग तकनीक अपरिवर्तनीय रूप से मानव होने के हमारे अनुभव को भी बदल सकती है।
कहीं समूची मानवता पर खतरा तो नहीं
मानव जीनोम को बदलने में सक्षम यह तकनीक ही आज मानवता के लिए खतरा बन गई है। सौंदर्य, अनुवांशिक बीमारी और असाध्य रोगों के इलाज तक तो ठीक है लेकिन तकनीक का उपयोग मनचाहे बच्चे बनाने में किया जा सकता है। आज हम मानव विकास के आनुवंशिक इतिहास का हिससा हैं। लेकिन ‘क्रिस्पर’ तकनीक से तैयार बच्चों के लिए यह साझा थाती नहीं होगी क्योंकि तब हम मानव होने के अनुभव को साझा नहीं कर पाएंगे। क्योंकि बिना परिणाम की चिंता किए बिना क्रिस्पर जैसी तकनीकें माता-पिता और भाई-बहनों में अनुवांशिक अंतर के जरिए एक-दूसरे से अलग-थलग कर सकती हैं। इसलिए इस तकनीक के भविष्य को लेकर जीवविज्ञानियों की चिंता उचित है। क्योंकि अगर हम वास्तव में मानवता के उत्कर्ष की परवाह करते हैं तो हमें सभी प्रकार के जीनोम वाले लोगों के लिए एक वातावरण बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए।
मानव जीनोम को बदलने में सक्षम यह तकनीक ही आज मानवता के लिए खतरा बन गई है। सौंदर्य, अनुवांशिक बीमारी और असाध्य रोगों के इलाज तक तो ठीक है लेकिन तकनीक का उपयोग मनचाहे बच्चे बनाने में किया जा सकता है। आज हम मानव विकास के आनुवंशिक इतिहास का हिससा हैं। लेकिन ‘क्रिस्पर’ तकनीक से तैयार बच्चों के लिए यह साझा थाती नहीं होगी क्योंकि तब हम मानव होने के अनुभव को साझा नहीं कर पाएंगे। क्योंकि बिना परिणाम की चिंता किए बिना क्रिस्पर जैसी तकनीकें माता-पिता और भाई-बहनों में अनुवांशिक अंतर के जरिए एक-दूसरे से अलग-थलग कर सकती हैं। इसलिए इस तकनीक के भविष्य को लेकर जीवविज्ञानियों की चिंता उचित है। क्योंकि अगर हम वास्तव में मानवता के उत्कर्ष की परवाह करते हैं तो हमें सभी प्रकार के जीनोम वाले लोगों के लिए एक वातावरण बनाने का लक्ष्य रखना चाहिए।