जोधपुर । धोरों की जिस मिट्टी में हम खेलकूद कर बड़े हुए हैं, वही मिट्टी अब भविष्य में बायो डीजल व पेट्रोल बनाने में काम आएगी। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) जोधपुर के वैज्ञानिकों ने राजस्थानी मिट्टी यानि बालू को उत्प्रेरक की तरह उपयोग करके फिलहाल सस्ता बायो डीजल बनाया है। इस बायो डीजल का वाणिज्यिक उत्पादन करके भविष्य में वाहनों में उपयोग किया जा सकेगा। आईआईटी ने इसके लिए पेटेंट भी हासिल किया है। बालू मिट्टी का संगठन मजबूत होता है। इसमें अधिक तापमान सहने की क्षमता होती है। इसका सतही क्षेत्र अधिक होने से यह मिट्टी कई रसायनों का अवशोषण कर लेती है और गर्म करने पर वापस छोड़ देती है। बालू के इन्हीं गुणों का उपयोग करके आईआईटी ने बायो डीजल विकसित किया। एेसे बनाया बायो डीजल पानी एकत्र होने वाले स्थानों पर उगने वाली काई में हाइड्रोकार्बन की लम्बी शृंखला होती है, जो पेट्रोल व डीजल में भी पाई जाती है। काई को वैज्ञानिक भाषा में शैवाल कहते हैं, जो एक तरह की वनस्पति है। काई से लम्बी शृंखला वाले हाइड्रोकार्बन को छोटी शृंखला वाले हाइड्रोकार्बन में तोडऩे यानी पेट्रोल-डीजल में बदलने के लिए उत्प्रेरक के रूप में बालू का उपयोग किया गया। बालू मिट्टी के साथ निकल और कोबाल्ट मिलाया गया। मिश्रण को काई के साथ 280 डिग्री पर गर्म किया गया। इस तापमान पर काई डीजल में रुपांतरित हो गई। काई में 70 से 80 कार्बन की शृंखला होती है जो गर्म करने पर यह 12 से 16 की कार्बन शृंखला यानी डीजल में बदल गई। आईआईटी ने इसके प्रोसेस का पेटेंट कराया है। यूरोप की तुलना में काफी सस्ता अब तक केवल यूरोपीय देशों के पास ही काई को बायो डीजल में रूपांतरित करने की क्षमता है, लेकिन यूरोपीय देश रोडियम को उत्प्रेरक की तरह उपयोग करते हैं, जो चीन आयातित होने से महंगा पड़ता है। उनके एक लीटर डीजल की कीमत 300 रुपए तक आ रही है। राजस्थानी मिट्टी फ्री है। इसमें डाले जाने वाले निकल व कोबाल्ट भी यहां बहुतायात में पाए जाते हैं। एेसे में हमारा बायो डीजल काफी सस्ता है, जो भविष्य में वाहनों में काम आ सकेगा। डॉ. राकेश शर्मा, अध्यक्ष, रसायन विभाग, आईआईटी जोधपुर