scriptअविष्कार! एक प्रगति का पहिया जो कर रहा है देश की महिलाओं के भार को कम | Incredible Innovation Lifting Huge Weight off Women Shoulders | Patrika News

अविष्कार! एक प्रगति का पहिया जो कर रहा है देश की महिलाओं के भार को कम

locationनई दिल्लीPublished: Jan 18, 2018 09:50:34 am

Submitted by:

Priya Singh

महिलाओं के ऊपर घर के दैनिक कामों को संभालने की जिम्मेदारी होती है, जिसमें कुओं से पानी लाने का काम भी शामिल है।

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नई दिल्ली। देश की प्रगति की पतंग तभी उड़ेगी जब उस पतंग की डोर महिलाओ के हाथ में होगी, लेकिन कैसे? उन्हें फुर्सत तो हो, घर के काम-काज, बच्चे, पति इन सब की जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाने के बाद भी देश के कुछ सूखे हिस्से ऐसे हैं जहां अभी भी पानी लेने महिलाओं को इतनी दूरी तय करी पड़ती है जिससे उनके जीवन का बहुत की महत्वपूर्ण समय बस पानी लाने में लग जाता है, लेकिन इसी बीच ऐसा कुछ आ जाए जिससे उनके इस मूल्यवान समय को बचाया जा सके और उनके सिर का भार भी कम किया जा सके तो कैसा हो? ऐसे ही सूखा-प्रवण महाराष्ट्र में महिलाओं को दूर दराज से पानी ढो के लाने के लिए और एक सकारात्मक बदलाव लाने के लिए हैबिटैट फ़ॉर ह्यूमैनिटी इंडिया ने एक बेहतरीन आविष्कार किया है।
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गर्मियों के आने से भारत के अधिकांश हिस्से पहले से ही गर्म हवा की लहरों और सूखे से जूझते हैं। वैसे भी ग्रामीण महाराष्ट्र एक सूखा-प्रवण जगह है, जहां पानी की जरूरत बहुत ही ज्यादा होती है। औरंगाबाद के पोरगांव गांव को ही ले लीजिए, जहां महिलाओं के ऊपर घर के दैनिक कामों को संभालने की जिम्मेदारी होती है, जिसमें कुओं से पानी लाने का काम भी शामिल है। असल जिंदगी में और फिल्मों में देखा जाता है कि महिलाएं पानी भरकर लाने के लिए अपने सिर के ऊपर स्टील के बर्तन या प्लास्टिक का पीपा ले जाती हैं जिससे उनके घर में पानी आता है और फिल्मे ज्यादातर हमारे समाज का आइना होती हैं। यहां तक कि चार में से एक परिवार की, पानी की रोज़मर्रा की औसत खपत 10 से 12 लीटर के बीच होती है, इसका मतलब कि उन्हें पानी भरने के लिए कम से कम पांच से छह चक्कर लगाने पड़ते होंगे। यह काम सच में थकाने वाला है और इसमें वक्त का जो नुकसान वो अलग।
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हैबिटैट फॉर ह्यूमैनिटी इंडिया से इन महिलाओं की दुर्दशा देखी नहीं गई। इन्हें अच्छे से पाता है ग्रामीण भारत सूखे के चंगुल में धीरे-धीरे फंस रहा है, इसी लिहाज से वे एक शानदार और सरल आविष्कार लेकर आए हैं। हैबिटैट फॉर ह्यूमैनिटी इंडिया के प्रबंध निदेशक राजन सैमुएल ने अंग्रेजी चैनल को बताया कि, ‘हमने पानी को एक प्रमुख क्षेत्रों में से एक के रूप में मान्यता दी है और साथ ही साथ ये भी कहा की यहां भारी प्रयास किए जाने की जरूरत है, खासकर उन लोगों की सहायता करने की जिन्हें रोजाना पानी लाने के लिए कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वे बताते हैं, भारत में पानी की बहुत किल्लत है और साथ-साथ कई गांवों में उचित जल आपूर्ति भी है। भारत में कई राज्यों में सूखे की स्थिति की वगाह से यह समस्या और अधिक बढ़ रही है। पानी भरकर लाना ग्रामीण महिलाओं के लिए सबसे अधिक मुश्किल कामों में से एक है और हमने इसी के चलते एक समाधान खोज निकला है जो इनकी मदद करेगा।
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‘वॉटर व्हील’ नाम का ये यंत्र 45 लीटर तक पानी संग्रहित करने में माद्दा रखता है यह एक बेलनाकार प्लास्टिक ड्रम है जो आसानी से एक बच्चे की गाड़ी की तरह जमीन पर पहिये की तरह चलता है। यह आविष्कार शारीरिक तनाव को समाप्त करता है और पहले की तुलना में पानी भरकर लाने के उस मुश्किल काम को आसान बना देता है। पानी के स्रोत का एक चक्कर लगाने से कम से कम दो दिनों तक एक परिवार की जरुरत पूरी करने के लिए पर्याप्त पानी का संचय किया जा सकता है। जिसकी वजह से बार-बार चक्कर लगाने की जरुरत नहीं पड़ती।
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द वाटर व्हील के ‘पहिए’ पर्यावरण के अनुकूल, मानव-सुरक्षित, खाद्य ग्रेड, उच्च घनत्व पॉलीथीन से बनाए गए हैं। वजन उठाने की ज़रुरत को खत्म करने के लिए इसमें उपयोगकर्ता के लिए एक प्लास्टिक या धातु का हैंडल लागाया जाता है, और अब तक हैबिटैट फ़ॉर ह्यूमैनिटी इंडिया ने महाराष्ट्र के औरंगाबाद ,लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद और कर्जत क्षेत्रों में लगभग 1621 पानी के पहियों की आपूर्ति की है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में अत्यधिक मौसम की खराब स्थितियों की वजह से लगभग 1600 लोगों को जान गंवानी पड़ी थी, जिसमें लू और सूखे से मृतकों की सूची में 40% लोग शामिल थे। इस आविष्कार से निश्चित ही लोगों को इस समस्या से निकलने में मदद मिलेगी।
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