scriptएक दुर्लभ प्रकार के डायरीया के शोध में जुटे भारतीय वैज्ञानिक | Indian scientists working to unravel rare type of diarrhoea | Patrika News

एक दुर्लभ प्रकार के डायरीया के शोध में जुटे भारतीय वैज्ञानिक

locationनई दिल्लीPublished: Mar 06, 2018 02:21:08 pm

Submitted by:

Priya Singh

इस विकार के रोगी न केवल एक रोग से बल्कि कई अन्य जटिलताओं से पीड़ित होते हैं

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नई दिल्ली। दस्त आमतौर पर जीवाणु, वायरस या परजीवी जीवों की वजह से होता है। यह रोग कुछ दिनों के लिए या लंबे समय तक हो सकता है। इसी लिहाज से सुरक्षित पीने के पानी की व्यवस्था और बेहतर स्वच्छता के उपयोग और साबुन से हाथ धोने से संक्रमण का जोखिम काफी कम हो सकता है। हालांकि, दस्त का एक दुर्लभ रूप भी है, जो रोगियों में विशिष्ट आनुवंशिक उत्परिवर्तन (specific genetic mutation) के कारण भी होता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस विकार के ये लक्षण ठीक जन्म के बाद से शुरू होने लगते हैं और संक्रमण की उपस्थितियां भी आजीवन जारी रहती है। इस विकार के रोगी न केवल एक रोग से बल्कि कई अन्य जटिलताओं से पीड़ित होते हैं, जिनमें आंत्र सिंड्रोम, आंत्र रुकावट और आंत्र की सूजन जैसे रोग शामिल हैं।
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आपको बता दें 10 साल पहले नार्वे के एक परिवार में इस बीमारी की पहचान की गई थी, इस रोग से प्रभावित परिवार की तीन पीढ़ियों से 32 सदस्य थे। अध्ययनों से पता चला है कि इस बीमारी का कारण एक जीन में एक उत्परिवर्तन था जो कि GUCY2C नामक एक प्रोटीन पैदा करता था। GUCY2C जीवाणु विषाक्त पदार्थों के लिए एक रिसेप्टर है जो दस्त का कारण है, साथ ही यह पेट में पाया जाने वाला पेप्टाइड्स भी है।
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डायरिया का कारण होता है जब ई। कोइली के कुछ नस्लों से उत्पन्न होने वाले विषाक्त पदार्थों जो आंत में उपनिवेश करते हैं, रिसेप्टर से जुड़ते हैं और इसे सक्रिय करते हैं। इससे आंतों के सेल में बदलाव आते हैं, जो कि द्रव स्राव और दस्त से निकलेगा। आम तौर पर, GUCY2C की गतिविधि को नियंत्रण में रखा जाता है, लेकिन इन रोगियों में उत्परिवर्तन, रिसेप्टर की सक्रियता का कारण बनता है, जिससे निरंतर द्रव स्राव होता है।
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हाल ही में भारत में ऐसे रोगियों पर वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया गया। बायोटेक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी) और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु के वैज्ञानिकों ने साथ मिलकर यह अध्ययन शुरू किया है में। इस प्रोजेक्ट में एक नोबल ट्रांसजेनिक चूहे को अध्ययन किया जाएगा। इस चूहे में GUCY2C प्रोटीन डाला जाएगा। इस तरह के जीन वाले चूहे का बंदोबस्त फ्रांस की एक कंपनी कर रही है। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि यह अध्ययन इस वर्ष जुलाई तक अपने चरम पर होगा।
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