चीन एयरोस्पेस साइंस एंड टेक्नोलॉजिकल कार्पोरेशन (सीएएससी) के अधिकारी यांग बाहुआ ने कहा है कि उनके फोरम ने ऐसे अंतरिक्षयान और रॉकेट तैयार किए हैं जिससे उपग्रहों की लांचिंग दर काफी कम हो जाएगी। वह 5 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम की दर पर उपग्रह लांच करने को तैयार हैं। चीन की इस नई घोषणा पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसरो के निदेशक (जनसंपर्क) देवी प्रसाद कार्णिक ने कहा कि च्भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी भी काफी प्रतिस्पद्र्धी दर पर उपग्रह लांच कर रही है।
इसरो नई तकनीकों का इस्तेमाल कर लांचिंग लागत में और कटौती लाने का प्रयास कर रहा है। भारत अभी तक विभिन्न देशों के 209 उपग्रह लांच कर चुका है। आगामी दिसम्बर में भी इसरो विभिन्न देशों के 28 उपग्रह लांच करेगा। इसरो की अनुषंगी इकाई एंट्रिक्स के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक राकेश शशिभूषण के अनुसार अगले तीन से पांच साल के लिए इसरो के पास 800 करोड़ रुपए के प्रक्षेपण आर्डर हैं,जिसे संतोषजनक कहा जाएगा। इसरो अधिकारी का कहना है कि वैश्विक स्तर पर प्रक्षेपण लागत घटाने के प्रयास हो रहे हैं और कोशिश है कि इसे घटाकर वर्तमान लागत का दसवां हिस्सा किया जाए।
अमरीकी एयरोस्पेस कंपनी लॉकहीड मार्टिन और बोइंग की संयुक्त साझेदारी वाली युनाइटेड लांच एलांयस अमरीकी सरकार के लिए 14 हजार से 20 हजार डॉलर प्रति किलोग्राम की दर उपग्रह लांच करती है। हालांकि, निजी कंपनी स्पेसएक्स लांंचिंग दर घटाकर 2500 डॉलर प्रति किलोग्राम करने की योजना बना रही है। अगर वैश्विक स्तर पर रॉकेटों की लांचिंग लागत पर गौर करें तो जहां एरियन स्पेस के रॉकेट लांचिंग का खर्च दस करोड़ डॉलर होता है वहीं स्पेस एक्स का रॉकेट 6 करोड़ डॉलर की लागत से लांच होता है। इनकी तुलना में भारतीय रॉकेट की लागत महज 30 लाख डॉलर (वर्ष 2013 से 2015 के बीच) है।
उपग्रह लांचिंग का वैश्विक कारोबार लगभग 335.5 अरब डॉलर का है और भारतीय हिस्सेदारी अभी केवल 0.123 फीसदी है। हालांकि, इसरो को होने वाली कुल आय में उपग्रह लांचिंग का योगदान 20 फीसदी है लेकिन वह भविष्य में इस विशाल बाजार में अपनी पैठ बढ़ाने को लेकर आशान्वित है।