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विज्ञान और टेक्नोलॉजी

ISRO की पुष्टि! चांद पर इग्लू बनाने की तैयारी में वैज्ञानिक

ईसरो ने चांद पर इग्लु के निर्माण पर अपना काम शुरू कर दिया है।

नई दिल्लीFeb 26, 2018 / 01:33 pm

Priya Singh

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नई दिल्ली। आने वाले कुछ साल विज्ञान जगत के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होने जा रहे हैं और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि ईसरो ने चांद पर इग्लु के निर्माण पर अपना काम शुरू कर दिया है। वैज्ञानिक इसे लूनर हैबिटाट्स या समान्य भाषा में कहें तो चन्द्रमा निवास स्थान का नाम दिया है। बता दें कि इन ईग्लू को बनाने के लिए चांद पर रोबोट और ३डी प्रिंटर भेजकर किया जाएगा और इसके साथ इनके निर्माण में चांद की मिट्टी और अन्य सामग्रियों को भी उपयोग में लाया जाएगा। इस प्रोजेक्ट की शुरूआत 3डी प्रिंटर की मदद से तैयार एक मॉडल के माध्यम से शुरू हो चुकी है।
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अभी तक वैज्ञानिकों ने इस लूनर हैबिटाट्स के कुल पांच डिजाइन बनाए है। वैज्ञानिक यहीं चाहते है उनके द्वारा किए जा रहे प्रयास और कार्य इस कार्य को या फिर इस मिशन को सफलतापूर्वक पूरा करने में अपना योगदान दें सके। ईसरो सैटेलाइट सेंटर के निदेशक एन. अन्नादुराई ने चांद पर बनने जा रहे इन इग्लुओं की तुलना अंटार्टटिका में स्थित भारतीय चौकियों से की है। उन्होंने आगे ये भी कहा कि हम चांद पर उसी तरह से चौकी बनाना चाह रहे हैं जैसे कि अंटार्टटिका पर बने हुए है। अमेरिका सहित और भी कई देश चांद पर स्थायी सरंचना बनाने पर विचार कर रहे है और उनकी चाहत ये है कि वो अपने काम वो ही कर सकें और जब भी ऐसा कुछ होता है तो हमारी ये ही चाह रहेगी कि भारत भी इस कार्य या मिशन में अपना योगदान दें।
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उन्होंने आगे अपनी बात को जारी रखते हुए कहा कि आने वाले समय में पृथ्वी के उपग्रह में जो भी अंतरिक्ष यात्री जाते हैं वो वहां कुछ घंटे ज्य़ादा वक्त बिता सकें। उन्हें पूर्ण रूप से सुरक्षित रखने के लिए और उन्हें वहां से काम करने की पूरी सुविधा दिलाने के लिए हमें बेहतर तकनीक और सामग्रियों की आवश्यकता होती है और इन्हीं स्मार्ट चीज़ों को बनाने में हम अभी अपना ध्यान के न्द्रित कर रहे हैं। उनका आगे ये कहना है कि स्पेस एजेंसी लूनर हेबिटाट्स जैसे ही एक प्रतिरूप को बेहतर ढग़ से बनाने में सफलता पाई है और बता दें कि करीबन 60 टन तक का है और स्पेस एजेंसी द्वारा बनाए गए ये प्रतिरूप अपोलो मिशन द्वारा चांद से लाए गए पदार्थो से 99.6 प्रतिशत तक मेल खाती है।

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