वैज्ञानिकों को इस बात का डर है कि इस प्रदुषण के प्रभाव से शहरों में व्यक्तिगत नई LID लाइटिंग सिस्टम की बचत को थोड़ी या पूरी तरह से प्रभावित कर सकता है जिससे असमान में काफी तेज रोशनी भर जाएगी। जेएफजेड जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंस के क्रिस्टोफर कैबा की अगुवाई में हुए इस अध्ययन के तहत इस पक्ष में सबूत भी दिए गए हैं। जर्नल साइंस अडवांसेज की एक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक धरती पर आर्टिफीसियल लाइट की वजह से प्रकाशित सतह पैर रेडिएशन को बढ़ा देती है और पिछले 4 साल में उसमें दो फीसदी सालाना की दर से बढ़ोतरी हुई है। वैज्ञानिकों ने रात में रोशनी के लिए विशेष रूप से तैयार पहले समेकित उपग्रह रेडियोमीटर के आंकड़ों का प्रयोग किया। इसमें भारत में होने वाले प्रकाश प्रदुषण के भी 2012 से 2016 तक के आंकड़ें शामिल किये गए हैं।