मुट्ठी भर लोगों की साजिश
हाल ही हुए एक शोध में, शोधकर्ताओं ने पाया कि सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले अधिकांश टीकाकरण विरोधी षड्यंत्रों के पीछे केवल कुछ मुट्ठी भर लोग हैं। इन लोगों ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट से ‘एंटी-वैक्सीन’ (Anti-Vaccine Conspiracy) षणयंत्र को हवा दी है। शोध के मुताबिक यह 12 लोगों का समूह है जो सोशल मीडिया जैसे फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर कोरोना वैक्सीन के खिलाफ 65 फीसदी झूठे और भ्रामक दुष्प्रचार के लिए जिम्मेदार हैं। शोधकर्ताओं का यह अनुमान 1 फरवरी से 16 मार्च, 2021 के बीच फेसबुक और ट्विटर पर किए गए समूह के 8,12,000 से अधिक पोस्ट के विश्लेषण पर आधारित है। यह एक गैर-लाभकारी संस्थाा ‘सेंटर फॉर काउंटरिंग डिजिटल हेट’ (सीसीडीएच) और एंटी-वैक्सीन प्रोपेगेंडा पर नजर रखने वाले जांच समूह की जांच में सामने आया है। यह संगठन टीका-विरोधी उद्योग (एंटी-वैक्सीन इंडस्ट्री) की निगरानी करता है।
5.9 करोड़ लोगों तक है पहुंच
सीसीडीएच के सीईओ इमरान अहमद का कहना है कि इन लोगों के पास मेडिकल का कोई अनुभव नहीं है लेकिन ये वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर अपने फॉलोअर्स को गलत जानकारियां देते हैं। इसके लिए वे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं। हमारी चिंता यह है कि इन लोगों की पहुंच अलग-अलग प्लेटफॉर्म के माध्यम से 5.9 करोड़ (59 मिलियन) फॉलोअर्स तक है। इस तरह यह ग्रुप एंटी-वैक्सर्स के लिए सबसे बड़ा और सबसे महत्वपूर्ण सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बन जाता है।
इन लोगों के शामिल होने का शक
शोध के अनुसार, इन एंटी-वैक्सीन प्लेटफॉर्म की स्टडी विंडो में शेयर की गई लगभग दो-तिहाई एंटी-वैक्सीन सामग्री के पीछे जोसेफ मर्कोला, रॉबर्ट एफ . कैनेडी, जूनियर, टाई और चार्लेन बोलिंगर, शेरी टेनपेनी, रिजा इस्लाम, राशिद बट्टर, एरिन एलिजाबेथ, सेयर जी, केली ब्रोगन, क्रिस्टिएन नॉर्थरुप, बेन टैपर और केविन जेनकिंस शामिल हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इन इन्फ्लूएंसर्स के सोशल मीडिया अकाउंट्स को बड़ी संख्या में यूजर फॉलो करते हैं। इनके अकाउंट से बहुत ज्यादा मात्रा में एंटी-वैक्सीन सामग्री शेयर की जाती है।
इस तरह फैला है भ्रम का जाल
इस समूह का प्रभाव अलग-अलग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भिन्न है। शोध के अनुसार, समूह की ओर से ट्विटर पर ट्विटर पर 17 प्रतिशत टीका-विरोधी ट्वीट किए जाते हैं, लेकिन फेसबुक पर इनकी ओर से 73 प्रतिशत तक टीका-विरोधी सामग्री पोस्ट की जाती है। यह शोध मुख्य रूप से मार्च में जारी हुआ था ताकि फेसबुक और ट्विटर के बड़े अधिकारियों को इन पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा जा सके। क्योंकि इनके फैलाए भ्रम के जाल के कारण कोरोना से सैैकड़ों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।