18 साल से कर रहे हैं निगरानी
सिमैन जनजाति पर जब मानव विज्ञानियों (anthropologists) ने पहली बार साल 2002 में शोध शुरू किया था, तो वयस्कों में शरीर का औसत तापमान 37 डिग्री सेल्सियस ही था। ठीक यही तापमान दो सदी पहले यूरोपीय आबादी में भी मापा गया था। लेकिन, हैरानी की बात है कि केवल 16 वर्षों में इस जनजाति के वयस्कों का औसत शारीरिक तापमान सालाना करीब 0.03 डिग्री सेल्सियस की गिरावट के साथ 36.5 डिग्री सेल्सियस तक आ गया था। इसमें महिलाओं के शरीर का औसत तापमान 36.53 डिग्री सेल्सियस और पुरुषों के शरीर का औसत तापमान 36.57 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।
स्वस्थ वयस्कों में भी दिखी गिरावट
इस पर टिप्पणी करते हुए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के मानवविज्ञानी माइकल गुरवेन कहते हैं, कि महज दो दशकों से भी कम अवधि में अमरीका और ब्रिटेन जैसे ठंडे देशों की आबादी में हम लगभग दो शताब्दियों के दौरान आने वाली गिरावट का स्तर देख रहे हैं। मानव विज्ञानियों का यह शोध परिणाम सिमैन जनजाति के 5500 वयस्कों और लगभग 18 हजार दीर्घकालिक ऑबजर्वेशन के नमूनों पर आधारित है। विश्लेषण में कई अन्य कारकों को भी ध्यान में रखा गया है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक तापमान को प्रभावित कर सकते हैं। शोध के नतीजे इसलिए भी विश्वसनीय हैं क्योंकि शोधकर्ताओं ने जब पूरी तरह से स्वस्थ वयस्कों का भी परीक्षण किया तब भी तापमान में गिरावट थी।
दो अलग अध्ययन, एक निष्कर्ष
सामान्य जनजातीय जीवन बिताने वाली आबादी पर किए इस शोध और हाल ही अमरीका में किए गए एक अध्ययन के निष्कर्ष आपस में एक समान ही हैं। अमरीका में हुए शोध में पाया गया कि उच्च आय वाले देशों में मनुष्यों के शरीर का तापमान वर्तमान में पूर्व-औद्योगिक युग (pre-industrial era) की तुलना में 36.4 डिग्री सेल्सियस ही है जो कि 1.6 प्रतिशत कम है। हालांकि यह शोध एक सीमित अमरीकी आबादी पर ही किया गया था। साथ ही अध्ययन में वैज्ञानिक यह बता पाने में विफल रहे कि आखिर इस गिरावट का कारण क्या है? लेकिन सिमैन जनजाति पर शोध करने वाले वैज्ञानिक इसके कारणों को अधिक गहराई तक समझने में कामयाब रहे। उनकी प्रमुख परिकल्पनाओं में से एक यह है कि बेहतर स्वच्छता, साफ पानी और दवा की बेहतर पहुंच ने मनुष्यों में संक्रमण की दर को कम कर दिया है, इस प्रकार उनके शरीर का तापमान भी उसी अनुपात में कम हो गया है।
स्वास्थ्य में सुधार भी है एक कारण
मानव विज्ञानियों का मानना है कि बीते दो दशकों में चिकित्सा क्षेत्र में हुए नवाचारों के कारण स्वास्थ्य में हुए सुधार के कारण भी हमारे शरीर के तापमान में गिरावट आई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा भी हो सकता है कि आज लोग बेहतर आर्थिक और सेहतमंद स्थिति में हैं। आज हमारे शरीर को संक्रमण से बचने के लिए कठिन संघर्ष करने की जरूरत नहीं है। एंटीबायोटिक्स, टीकाकरण और अन्य चिकित्सा उपचारों तक अब आबादी के बड़े वर्ग की पहुंच है। अधिक विकसित समुदायों को आधुनिक विलासिता से भी जोड़ा जा सकता है, जैसे एयर कंडीशनिंग या सर्दियों में हीटिंग में रहना जो हमारे शरीर के आंतरिक तापमान को स्थिर बनाए रखता है।
ऐसे पहुंचे निष्कर्ष पर
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एमडी जूली पार्सनेट ने शरीर के तापमान के रुझान की पहचान करने के लिए ऐतिहासिक रेकॉर्ड के साथ आधुनिक मापों की तुलना की। शोध टीम ने तीन ऐतिहासिक अवधियों से तीन अलग-अलग डेटासेट देखे। एक सैन्य सेवा रेकॉर्ड, मेडिकल रेकॉर्ड और अमरीकी नागरिक युद्ध के केंद्रीय सेना के दिग्गजों के पेंशन रेकॉर्ड थे जो 1862 से 1930 तक संकलित किए गए थे। दूसरा अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य और पोषण परीक्षा सर्वेक्षण से था जिसे 1971 से 1975 के बीच एकत्र किया गया था। इसी क्रम में तीसरा 2007 से 2017 तक स्टैनफोर्ड हैल्थ केयर जाने वाले वयस्क रोगियों का डेटा था। टीम ने कुल 677,423 तापमान माप के डेटा का विश्लेषण किया।