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विज्ञान और टेक्नोलॉजी

चिंता का सबब: सिर्फ अमरीकियों का ही नहीं अन्य देशों में भी घट रहा औसत बॉडी टेम्प्रेचर

वैज्ञानिकों ने अपने हालिया परीक्षणों में पाया कि अमरीका समेत अन्य बहुत से देशों के लोगों के शरीर का औसत तापमान लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इसका एक प्रमुख कारण हमारी आधुनिक जीवनशैली हो सकती है।

जयपुरDec 04, 2020 / 04:07 pm

Mohmad Imran

चिंता का सबब: सिर्फ अमरीकियों का ही नहीं अन्य देशों में भी घट रहा औसत बॉडी टेम्प्रेचर

चिंता का सबब: सिर्फ अमरीकियों का ही नहीं अन्य देशों में भी घट रहा औसत बॉडी टेम्प्रेचर

वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि अमरीका और ब्रिटेन में लोगों के शरीर का औसत तापमान (37 डिग्री सेल्सियस) में लगातार गिरावट आ रही है। हाल ही बोलीविया की एक दूर-दराज इलाकों में रहने वाली जनजाति सिमैन (Tsimane) पर किए नए शोध से पता चला है कि यह सिर्फ आशंका नहीं है बल्कि वास्तव में ऐसा हो रहा है। उच्च-आय वाली आधुनिक जीवनशैली और शहरी भागदौड़ से इसका कोई लेना-देना नहीं है। क्योंकि शारीरिक तापमान में आ रही यह बहुत धीमी लेकिन लगातार गिरावट ग्रामीण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रह रही आबादी में भी देखने को मिल रही है।इस साल की शुरुआत में स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन के वैज्ञानिकों के एक दल के अध्ययन में भी सामने आया था कि आम अमरीकी व्यक्ति के शरीर का औसत तापमान पिछली एक शताब्दी में कम हो गया है। विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य रिकॉर्डों का गहन विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ताओं ने यह निष्कर्ष निकाला है कि 19वीं सदी की तुलना में एक औसत अमरीकी पुरुष के शरीर का तापमान लगभग 0.03 डिग्री सेल्सियस (0.58 फॉर्नहाइट) और महिला का 0.6 डिग्री सेल्सियस (1.06 फॉर्नहाइट) कम है। यह भी अनुमान है कि बीती सदियों में इंसानी शरीर पहले की अपेक्षाकृत अब ज्यादा सर्द रहने लगा है।

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18 साल से कर रहे हैं निगरानी
सिमैन जनजाति पर जब मानव विज्ञानियों (anthropologists) ने पहली बार साल 2002 में शोध शुरू किया था, तो वयस्कों में शरीर का औसत तापमान 37 डिग्री सेल्सियस ही था। ठीक यही तापमान दो सदी पहले यूरोपीय आबादी में भी मापा गया था। लेकिन, हैरानी की बात है कि केवल 16 वर्षों में इस जनजाति के वयस्कों का औसत शारीरिक तापमान सालाना करीब 0.03 डिग्री सेल्सियस की गिरावट के साथ 36.5 डिग्री सेल्सियस तक आ गया था। इसमें महिलाओं के शरीर का औसत तापमान 36.53 डिग्री सेल्सियस और पुरुषों के शरीर का औसत तापमान 36.57 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था।

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स्वस्थ वयस्कों में भी दिखी गिरावट
इस पर टिप्पणी करते हुए कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के मानवविज्ञानी माइकल गुरवेन कहते हैं, कि महज दो दशकों से भी कम अवधि में अमरीका और ब्रिटेन जैसे ठंडे देशों की आबादी में हम लगभग दो शताब्दियों के दौरान आने वाली गिरावट का स्तर देख रहे हैं। मानव विज्ञानियों का यह शोध परिणाम सिमैन जनजाति के 5500 वयस्कों और लगभग 18 हजार दीर्घकालिक ऑबजर्वेशन के नमूनों पर आधारित है। विश्लेषण में कई अन्य कारकों को भी ध्यान में रखा गया है जो किसी व्यक्ति के शारीरिक तापमान को प्रभावित कर सकते हैं। शोध के नतीजे इसलिए भी विश्वसनीय हैं क्योंकि शोधकर्ताओं ने जब पूरी तरह से स्वस्थ वयस्कों का भी परीक्षण किया तब भी तापमान में गिरावट थी।

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दो अलग अध्ययन, एक निष्कर्ष
सामान्य जनजातीय जीवन बिताने वाली आबादी पर किए इस शोध और हाल ही अमरीका में किए गए एक अध्ययन के निष्कर्ष आपस में एक समान ही हैं। अमरीका में हुए शोध में पाया गया कि उच्च आय वाले देशों में मनुष्यों के शरीर का तापमान वर्तमान में पूर्व-औद्योगिक युग (pre-industrial era) की तुलना में 36.4 डिग्री सेल्सियस ही है जो कि 1.6 प्रतिशत कम है। हालांकि यह शोध एक सीमित अमरीकी आबादी पर ही किया गया था। साथ ही अध्ययन में वैज्ञानिक यह बता पाने में विफल रहे कि आखिर इस गिरावट का कारण क्या है? लेकिन सिमैन जनजाति पर शोध करने वाले वैज्ञानिक इसके कारणों को अधिक गहराई तक समझने में कामयाब रहे। उनकी प्रमुख परिकल्पनाओं में से एक यह है कि बेहतर स्वच्छता, साफ पानी और दवा की बेहतर पहुंच ने मनुष्यों में संक्रमण की दर को कम कर दिया है, इस प्रकार उनके शरीर का तापमान भी उसी अनुपात में कम हो गया है।

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स्वास्थ्य में सुधार भी है एक कारण
मानव विज्ञानियों का मानना है कि बीते दो दशकों में चिकित्सा क्षेत्र में हुए नवाचारों के कारण स्वास्थ्य में हुए सुधार के कारण भी हमारे शरीर के तापमान में गिरावट आई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ऐसा भी हो सकता है कि आज लोग बेहतर आर्थिक और सेहतमंद स्थिति में हैं। आज हमारे शरीर को संक्रमण से बचने के लिए कठिन संघर्ष करने की जरूरत नहीं है। एंटीबायोटिक्स, टीकाकरण और अन्य चिकित्सा उपचारों तक अब आबादी के बड़े वर्ग की पहुंच है। अधिक विकसित समुदायों को आधुनिक विलासिता से भी जोड़ा जा सकता है, जैसे एयर कंडीशनिंग या सर्दियों में हीटिंग में रहना जो हमारे शरीर के आंतरिक तापमान को स्थिर बनाए रखता है।

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यूसीएसबी में एथनॉग्राफी (विभिन्न जातियों और संस्कृतियों का वैज्ञानिक विवरण प्रस्तुत करने वाले) का अध्ययन करने वाले थॉमस क्राफ्ट कहते हैं कि एक लंबी अवधि के दौरान, सिमैन जनजाति के लोगों के शरीर का तापमान बदलता रहता है, लेकिन वे आज भी अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के लिए किसी उन्नत तकनीक का इस्तेमाल नहीं करते हैं। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारा जिस तरह गर्म होता है वह शरीर के औसत तापमान को प्रभावित कर सकता है। हालांकि हमें दुनिया भर की अलग-अलग सांस्कृतिक विरासत वाली आबादियों पर और अधिक शोध करने की आवश्यकता है ताकि असल कारणों की तह तक जा सकें और यह पता लगा सकें कि हमारे शरीर के औसत तापमान में गिरावट क्यों आ रही है। यह शोध अध्ययन साइंस एडवांसेज पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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ऐसे पहुंचे निष्कर्ष पर
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एमडी जूली पार्सनेट ने शरीर के तापमान के रुझान की पहचान करने के लिए ऐतिहासिक रेकॉर्ड के साथ आधुनिक मापों की तुलना की। शोध टीम ने तीन ऐतिहासिक अवधियों से तीन अलग-अलग डेटासेट देखे। एक सैन्य सेवा रेकॉर्ड, मेडिकल रेकॉर्ड और अमरीकी नागरिक युद्ध के केंद्रीय सेना के दिग्गजों के पेंशन रेकॉर्ड थे जो 1862 से 1930 तक संकलित किए गए थे। दूसरा अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य और पोषण परीक्षा सर्वेक्षण से था जिसे 1971 से 1975 के बीच एकत्र किया गया था। इसी क्रम में तीसरा 2007 से 2017 तक स्टैनफोर्ड हैल्थ केयर जाने वाले वयस्क रोगियों का डेटा था। टीम ने कुल 677,423 तापमान माप के डेटा का विश्लेषण किया।

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अंत में टीम इस नतीजे पहुंची कि 21 वीं सदी में पैदा हुए पुरुषों के शरीर का औसत तापमान 1.06 डिग्री सेल्सियस था जो 19 वीं सदी की शुरुआत में पैदा हुए लोगों की तुलना में कम था। जबकि आधुनिक महिलाओं में औसतन 0.03 डिग्री सेल्सियस की कमी देखी गई जो 1890 में पैदा हुई महिलाओं की तुलना में कम था। यानि प्रत्येक दशक में अमरीकी लोगों में 0.03 डिग्री सेल्सियस तापमान गिर गया है। हालांकि यह कोई जोखिम की बात नहीं है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी सबसे अधिक आशंका तंत्र पर्यावरणीय कारकों के कारण मानव चयापचय दर में कमी होना भी हो सकती है। एक अनुमान यह भी है कि 200 वर्षों में सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार से सूजन की घटनाओं में कमी आई है, जो चयापचय को बढ़ाती है। एक कारण यह भी है कि आज लोग अधिक स्थिर वातावरण में ज्यादा आरामदायक जीवन जीने लगे हैं। दूसरे शब्दों में अब शरीर को गर्म रखने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत नहीं है, इसलिए औसत तापमान गिर गया है।
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