अमरीका की मिशीगन यूनीवर्सिटी के शोधकर्ता अदालती मामलों के वीडियो का अध्ययन करके झूठ पकडऩे वाले (लाई डिटेक्टिंग) अनोखे सॉफ्टवेयर का निर्माण कर रहे हैं
नई दिल्ली। अमरीका की मिशीगन यूनीवर्सिटी के शोधकर्ता अदालती मामलों के वीडियो का अध्ययन करके झूठ पकडऩे वाले (लाई डिटेक्टिंग) अनोखे सॉफ्टवेयर का निर्माण कर रहे हैं। यह सॉफ्टवेयर वक्ता के शब्दों और उसके हाव-भाव की जांच करके झूठ पकड़ लेगा। इसके लिए पॉलिग्राफ टेस्ट की तरह स्पर्श की जरूरत नहीं पड़ेगी। इस प्रणाली से सिक्योरिटी एजेंट, जज और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पेशेवरों को मदद मिलेगी।
शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके सामने कई ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें झूठ बोल रहा व्यक्ति अपने हाथों को ज्यादा हिलाता है और ज्यादा विश्वास के साथ अपनी बात रखने की कोशिश करता है। यहां तक कि इस तरह के लोग कई बार प्रश्नकर्ता को गुमराह करने के लिए उनसे सच बोलने वालों की तुलना में ज्यादा बार नजरें मिला कर सवालों के जवाब देते हैं। कम्प्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग के प्रोफेसर रदा मिहालसिया ने कहा प्रयोगशाला में प्रयोग के दौरान ऐसा माहौल बनाना मुश्किल है जहां लोग पूरे भरोसे के साथ झूठ बोल सके और यही वजह है कि परीक्षण के दौरान झूठ बोलने वालों की संख्या कम होती है।
शोधकर्ता इस सॉफ्टवेयर के निर्माण के लिए उन वीडियो का अध्ययन कर रहे हैं जिनमें बचाव पक्ष और गवाहों दोनों के बयान हैं और वीडियो के आधे हिस्से में उन्हें झूठ बोलता दिखाया गया है। यह पता लगाने के लिए कि उनमें से कौन झूठ बोल रहा है, शोधकर्ता उनके बयान की अदालत के फैसले से तुलना करते हैं। शोधकर्ताओं का दल ऑडियो सुनकर, चेहरे की भाव-भंगिमाएं देखकर तथा सिर, आंखों, भवों, मुंह और हाथों की गतिविधियों का अध्ययन करके इस सॉफ्टवेयर का विकास कर रहा है। यह झूठ पकडऩे के मामले में 75 फीसदी तक सही साबित हुआ है।