ऐसे काम करती है यह तकनीक
आसानी से पहने जा सकनी वाली यह माइक्रोग्रिड तकनीक तीन मुख्य भागों से मिलकर बनी है। ये तीनों ही हिस्से गति से संचालित होते हैं यानी चलने पर ही काम करते हैं। इन उपकरणों को ट्राइबोइलेक्ट्रिक जनरेटर, ऊर्जा-भंडारण के लिए सुपरकैपेसिटर और पसीने से चलने वाले बायोफ्यूल (जैव ईंधन) सेल कहा जाता है। इस माइक्रोग्रिड को 30 मिनट के लिए एक व्यक्ति पर परीक्षण किया गया। इन प्रयोगों में दस मिनट की साइकिल चलाना, दौडऩा या व्यायाम करना जैसी गतिविधियां शामिल थीं। माइक्रोग्रिड से उत्पन्न ऊर्जा एक एलसीडी कलाई घड़ी या एक छोटे इलेक्ट्रोक्रोमिक डिस्प्ले (एक उपकरण है जो एक लागू वोल्टेज के जवाब में रंग बदलता है) को बिजली देने के लिए पर्याप्त थी। इसे बनाने वाले लू यिन का कहना है कि, यह माइक्रोग्रिड शरीर के उन उपकरणों को एकीकृत करता है जो चलने, दौडऩे या साइकिल चलाने जैसी गतिविधियों के दौरान ऊर्जा उत्पन्न करता है।
ऐसे करता है एनर्जी स्टोर
इस वियरेबल माइक्रोग्रिड को विशेष रूप से पसीने से बिजली उत्पन्न करने के लिए बनाया गया है। इसका मतलब यह है कि इसके बायोफ्यूल सेल को उपयोगकर्ता की शर्ट के अंदर पहनना पड़ता है, विशेष रूप से छाती के हिस्से में। वहीं, इसके दूसरे हिस्से ट्राइब्रोइलेक्ट्रिक जनरेटर को धड़ के अग्र भाग और कमर के पास की बाजू पर शर्ट के बाहर पहना जाता है। पसीने और शारीरिक गतिविधियों के समय शरीर से निकलने वाली ऊर्जा को यह अपने सुपरकैपिसिटर में स्टोर करता है।