scriptडिड यू नो दैट: छिपकलियों की तरह एलीगेटर्स की भी दोबारा पूंछ उग आती है | Not just lizards,Alligators too can regrow tails, new study reveals | Patrika News

डिड यू नो दैट: छिपकलियों की तरह एलीगेटर्स की भी दोबारा पूंछ उग आती है

locationजयपुरPublished: Dec 04, 2020 06:02:53 pm

Submitted by:

Mohmad Imran

एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने हालिया परीक्षणों में पाया कि जिस तरह सरीसृपों में छिपकली जैसी कुछ प्रजातियों में पूंछ दोबारा उग आती है, वैसा ही अमरीका के एलिगेटर्स भी करने में सक्षम हैं

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छिपकली की पूंछ कट जाने पर कुछ सप्ताह में ही वह दोबारा निकल आती है। लेकिन, हाल ही वैज्ञानिकों ने अमरीका में पाए जाने वाले मगरमच्छों की एक अन्य प्रजाति एलीगेटर्स के बारे में एक खास गुण का पता लगाया है। वैज्ञानिकों के अनुसार युवा एलीगेटर्स अपनी शरीर की कुल लंबाई के लगभग 18 फीसदी यानी करीब तीन-चौथाई हिस्से तक अपनी पूंछ फिर से उगा सकते हैं। यानी छिपकली की ही तरह एलीगेटर्स में भी अपनी पूंछ के टूट जाने, कट जाने या अन्य कोई नुकसान होने पर उसे दोबारा उगाने की क्षमता रखते हैं। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि यह क्षमता इन चौड़े थूथन वाले मगरमच्छों को उनके जलीय आवासों में अन्य जीवों की तुलना में अतिरिक्त सक्रियता देती है। औसतन 14 फीट लंबे इन मगरमच्छों की इस विशेषता के बारे में वैज्ञानिकों ने उन्नत इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके जाना।
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जटिल संरचना वाली थी नई पूंछ
एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी (एएसयू) और लुइसियाना डिपार्टमेंट ऑफ वाइल्ड लाइफ एंड फिशरीज के शोधकर्ताओं की एक टीम ने खुलासा किया है कि युवा एलीगेटर्स मगरमच्छों में अपने पैरों की तीन-चौथाई लंबाई तक पूंछ को फिर से उगाने की क्षमता होती है। टीम ने इन दोबारा उगने वाली पूंछ की संरचना की जांच करने के लिए शरीर रचना विज्ञान और ऊतक संगठन के अध्ययन के तरीकों के साथ उन्नत इमेजिंग तकनीकों का भी उपयोग किया। उन्होंने पाया कि दोबारा उग आने वाली ये नई पूंछ जटिल संरचनाएं थीं, जिसमें हड्डी, अस्थिमज्जा, रक्त वाहिकाओं और नसों के साथ ऊत्तकों से से घिरे उपास्थि से बना था। टीम के इन निष्कर्षों को साइंटिफिक रिपोट्र्स जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

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नई मांसपेशियां बनाने में सक्षम
एएसयू के स्कूल ऑफ लाइफ स्टाइल एटम एंड सेलुलर जीवविज्ञान कार्यक्रम से हाल ही में पीएचडी स्नातक ओर शोध की प्रमुख लेखिका सिंडी जू ने कहा कि एलीगेटर्स की दोबारा उगने वाली यह पूंछ पुनर्जनन (regeneration) और घाव भरने के दोनों के लक्षण दिखाती है। सिंडी अब इस तथ्य पर खोज कर रही हैं कि यह क्षमता अन्य जीवों और मनुष्यों में क्यों नहीं है। वहीं, सह-वरिष्ठ लेखक और एसोसिएट प्रोफेसर जीन विल्सन-रॉल्स का कहना है कि विभिन्न प्रजातियों में अंगों के दोबारा उग आने की यह क्षमता स्पष्ट रूप से नई मांसपेशियों के निर्माण की उच्च क्षमता रखता है।

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25 करोड़ साल पहले अलग हो गए इंसान
मगरमच्छ, छिपकली और इंसान सभी जानवरों के एक विशेष समूह से संबंधित हैं, जिनकी रीढ़ में एम्नियोट्स होते हैं। छिपकलियों के बाद अब एलीगेटर्स में दोबारा पूंछ उग आने की इस जैविक क्षमता से एम्नियोट्स वर्ग के जीवों में पुनर्जनन प्रक्रिया के बारे में काफी नई जानकारी मिली है। इससे जीवों की ऐसी अद्भुत क्षमताओं के इतिहास और भविष्य की संभावनाओं के बारे में नई आशाएं उभरती हैं। कॉलेज ऑफ लिबरल आट्र्स एंड साइंसेज के एएसयू स्कूल ऑफ लाइफ साइंसेज के प्रोफेसर और निदेशक सह-वरिष्ठ लेखक केनरो कुसुमी का भी कहना है कि एलीगेटर एवं डायनासोर और पक्षियों के पूर्वज लगभग 25 करोड़ (250 मिलियन) साल पहले एक-दूसरे से अलग हो गए। हमारी खोज में सामने आया है कि अपने पूर्वजों की भांति एलीगेटर्स ने अब तक अपनी उन सेलुलर क्षमताओं को खोया नहीं है जो पूंछ जैसे जरूरी अंगों को देाबारा उगाने में मददगार हैं। जबकि पक्षियों ने विकसित होने की दौड़ में इस क्षमता को खो दिया है। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनके निष्कर्षों से चोटों की मरम्मत और गठिया जैसे रोगों का इलाज करने के लिए नए चिकित्सीय दृष्टिकोण की खोज में मदद मिलेगी।

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क्या संभव होगा अंगों का दोबारा उगना
हालांकि, वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने इस रहस्य का पता लगा लिया है। उनका मानना है कि जेनेटिक मैटेरियल के सही मात्रा में मिश्रण से ही यह संभव हो पाता है। दरअसल, छिपकली में पाए जाने वाले अंग पुनर्निमाण के जेनेटिक नुस्खे का पता लगाकर उन्हीं जीन को मानव कोशिका में प्रत्यारोपित कर मानव अंगों का भी निर्माण किया जा सकता है। यानी कि इस तकनीक के जरिए भविष्य में कार्टिलेज, मांसपेशी और यहां तक कि रीढ़ की हड्डी का फिर से निर्माण संभव हो सकता है। एरीजोना स्टेट यूनिवर्सिटी की केनरो कुसुमी कहती हैं कि छिपकली में भी वही जीन होते हैं जो मनुष्यों में होते हैं। वे मनुष्यों की शारीरिक संरचना से सबसे ज्यादा मेल खाने वाले जीव हैं। अंग के पुनर्निमाण में शामिल जीनों की पूरी जानकारी हासिल कर अगली पीढ़ी की तकनीक से इस रहस्य को सुलझाया जा सकता है। जर्नल प्लोज वन में प्रकाशित इस रिसर्च में कहा गया है कि इस खोज से रीढ़ की हड्डी की चोट, जन्म संबंधी विकृतियां और गठिया जैसे रोगों को ठीक करने में मदद मिल सकती है।

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