अध्ययन से पता चलता है कि 1955 और 1986 के बीच महासागरों का तापमान तेजी से बढऩे लगा। लेकिन वैज्ञानिक यह जानकर हैरान रह गए कि 1987 से 2019 के बीच करीब 32 सालों में महासागरों का तापमान पूर्व की तुलना में 450 फीसदी की दर से बढ़ा है। चीन के विज्ञान अकादमी में पेपर सेंटर के प्रमुख लेखक और इंटरनेशनल सेंटर फॉर क्लाइमेट एंड एनवायरमेंटल साइंसेज में प्रोफेसर लिजिंग चेंग ने कहा कि 2019 में समुद्र का तापमान साल 1981 से 2010 के औसत तापमान से 0.075 डिग्री सेल्सियस अधिक था। चेंग ने बताया कि इस तापमान तक पहुंचने के लिए महासागरों को 228 सेक्स्टिलियन (28 sexitilion) ऊष्मा अपने अंदर समाहित करनी पड़ी है। सरल शब्दों में बीते 25 सालों में हमने महासागरों में हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम के समान 360 करोड़ परमाणु बम विस्फोटों से उत्पन्न ऊष्मा महासागरों में प्रवाहित की है। यह एक सदी की प्रत्येक दूसरी तिमाही में समुद्रों में हिरोशिमा परमाणु बम गिराने के बराबर है। लेकिन यह सिलसिला अभी थमा नहीं है बल्कि और तेज हो गया है। अध्ययन में शामिल सेंट थॉमस विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और शोध के लेखक जॉन अब्राहम के अनुसार आज हम प्रत्येक सेकंड 5 से 6 हिरोशिमा बम के विस्फोट जितनी गर्मी पैदा कर रहे हैं।
अनुमान है कि ग्लोबल वॉर्मिंग से उबर रहे मालदीव के समुद्रों में 90 फीसदी कोरल या शैवाल नष्ट हो चुकी हैं। ocean’s का बढ़ता तापमान पृथ्वी की बदल रही भौगोलिक परिस्थितियों कें बारे में सटीक संकेत दे रही हैं। अध्ययन के अनुसार 1970 तक पृथ्वी की 90 फीसदी गर्मी समुद्र में ही समाहित हो जाती थी। जबकि 4 प्रतिशत से भी कम ऊष्मा धरातल और पर्यावरण में मिल जाती थी। समुद्र का बढ़ता तापमान इस बात का भी संकेत है कि उसके पानी में बहुत कम ऑक्सीजन बची है और वह समुद्री जीव-जुन्तुओं के लिए घातक अम्ल में बदल गया है। यह बढ़ता तापमान समुद्री धाराओं और मौसम के कारकों को भी विरुपित कर रहा है। चेंग का कहना है कि इसे रोकने का एक ही तरीका है कि हम सभी पर्यावरण के प्रति गंभीर हो जाएं और कार्बन फुटप्रिंट्स कम से कम करें।